कृषि इंजीनियरिंग: आधुनिक खेती के सिद्धांत और अनुप्रयोग | Agricultural Engineering: Principles and Applications of Modern Farming - Blog 234
कृषि इंजीनियरिंग: आधुनिक खेती के सिद्धांत और अनुप्रयोग |
Agricultural Engineering: Principles and Applications of Modern Farming
1. शीर्षक और टैगलाइन
तत्व | हिंदी | English (मूल सुझाव) |
| शीर्षक (Title) | कृषि इंजीनियरिंग: आधुनिक खेती के सिद्धांत और अनुप्रयोग | Agricultural Engineering: Principles and Applications of Modern Farming |
| उपशीर्षक (Subtitle) | स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों, सिंचाई प्रबंधन और फार्म मशीनीकरण का एक व्यापक परिचय | A Comprehensive Introduction to Smart Agriculture Technologies, Irrigation Management, and Farm Mechanization |
| टैगलाइन (Tagline) | मिट्टी से समृद्धि तक: इंजीनियरिंग जो कृषि को बदल रही है। | From Soil to Success: The Engineering Transforming Agriculture. |
2. विवरण (Description)
यह ई-बुक कृषि इंजीनियरिंग के क्षेत्र में एक अनिवार्य मार्गदर्शिका है, जिसे विशेष रूप से छात्रों, कृषि पेशेवरों और स्मार्ट फार्मिंग तकनीकों में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए डिज़ाइन किया गया है। लेखक महेश पवार आपको कृषि मशीनीकरण, टिकाऊ (sustainable) जल प्रबंधन, मिट्टी और जल संरक्षण, और सटीक खेती (Precision Farming) की नवीनतम डिजिटल तकनीकों के माध्यम से ले जाते हैं।
आप सीखेंगे कि ट्रैक्टरों और फार्म उपकरणों के डिज़ाइन और संचालन को कैसे समझा जाए, आधुनिक सिंचाई प्रणालियों (जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर) को कैसे लागू किया जाए, और फसल की पैदावार और दक्षता को अधिकतम करने के लिए इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग कैसे किया जाए। यह पुस्तक न केवल सिद्धांत समझाती है बल्कि केस स्टडीज और व्यावहारिक अनुप्रयोगों के साथ कृषि चुनौतियों के लिए इंजीनियरिंग समाधानों पर भी ध्यान केंद्रित करती है।
आज ही पढ़ें और जानें कि कृषि इंजीनियरिंग खाद्य उत्पादन के भविष्य को कैसे आकार दे रही है!
3. कीवर्ड (Keywords)
| (हिंदी) | (English) |
| कृषि इंजीनियरिंग | Agricultural Engineering |
| फार्म मशीनीकरण | Farm Mechanization |
| सिंचाई प्रबंधन | Irrigation Management |
| सटीक खेती | Precision Farming |
| स्मार्ट कृषि | Smart Agriculture |
| जल संरक्षण | Water Conservation |
| कृषि उपकरण | Farm Equipment |
| टिकाऊ खेती | Sustainable Agriculture |
| कृषि प्रौद्योगिकी | Agrotechnology |
| ट्रैक्टर और पावर | Tractor and Power |
4. अनुक्रमणिका (Index)
यह अनुक्रमणिका कृषि इंजीनियरिंग के मुख्य विषयों को शामिल करती है, जो पुस्तक को एक संरचित और व्यापक रूप प्रदान करती है।
अध्याय 1: कृषि इंजीनियरिंग का परिचय
1.1 कृषि इंजीनियरिंग का महत्व और दायरा
1.2 भारत में कृषि का संक्षिप्त इतिहास और चुनौतियाँ
1.3 टिकाऊ कृषि (Sustainable Agriculture) में इंजीनियरिंग की भूमिका
अध्याय 2: फार्म पावर और मशीनीकरण
2.1 फार्म पावर के स्रोत (मनुष्य, पशु, यांत्रिक)
2.2 आंतरिक दहन इंजन के सिद्धांत और कार्य
2.3 ट्रैक्टर: प्रकार, चयन, और रखरखाव
2.4 जुताई (Tillage) के उपकरण: हल (Ploughs), हैरो (Harrows), और कल्टीवेटर (Cultivators)
अध्याय 3: सिंचाई और जल संसाधन इंजीनियरिंग
3.1 जल विज्ञान (Hydrology) के मूल सिद्धांत
3.2 मिट्टी-पानी-पौधे संबंध
3.3 सिंचाई के तरीके: सतही, उप-सतही और दबाव वाली प्रणालियाँ
3.4 आधुनिक सिंचाई प्रणालियाँ: ड्रिप, स्प्रिंकलर और रेन गन
3.5 सिंचाई दक्षता और जल उपयोगिता
अध्याय 4: मिट्टी और जल संरक्षण इंजीनियरिंग
4.1 मिट्टी का कटाव (Soil Erosion) और इसके प्रकार
4.2 कटाव नियंत्रण के लिए इंजीनियरिंग उपाय (बंडिंग, टेरेसिंग)
4.3 जल संचयन (Water Harvesting) संरचनाओं का डिज़ाइन
4.4 वाटरशेड प्रबंधन (Watershed Management) के सिद्धांत
अध्याय 5: कटाई उपरांत इंजीनियरिंग (Post-Harvest Engineering)
5.1 कटाई और थ्रेशिंग उपकरण
5.2 कृषि उत्पादों की सुखाने (Drying) और भंडारण (Storage) के सिद्धांत
5.3 कोल्ड स्टोरेज और नियंत्रित वातावरण भंडारण
5.4 कृषि अपशिष्ट का प्रबंधन और मूल्यवर्धन
अध्याय 6: स्मार्ट कृषि और डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ
6.1 सटीक खेती (Precision Farming): परिचय और लाभ
6.2 भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) का उपयोग
6.3 इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और सेंसर-आधारित मॉनिटरिंग
6.4 ड्रोन और रिमोट सेंसिंग कृषि में
6.5 रोबोटिक्स और ऑटोमेशन
अध्याय 1: कृषि इंजीनियरिंग का परिचय
अध्याय 1: कृषि इंजीनियरिंग का परिचय
1.1 कृषि इंजीनियरिंग का महत्व और दायरा
परिचय
कृषि इंजीनियरिंग (Agricultural Engineering) विज्ञान और प्रौद्योगिकी का एक अनुप्रयोग है जो खाद्य, फाइबर और ऊर्जा के उत्पादन और प्रसंस्करण से संबंधित है। यह इंजीनियरिंग की वह शाखा है जो कृषि उत्पादन और प्रसंस्करण में आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए भौतिक विज्ञान, गणित और इंजीनियरिंग के सिद्धांतों को लागू करती है।
महत्व (Importance)
खाद्य सुरक्षा (Food Security): बढ़ती वैश्विक आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषि इंजीनियरिंग उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण है। यह कुशल मशीनीकरण, सिंचाई और कटाई उपरांत प्रबंधन (Post-Harvest Management) सुनिश्चित करता है।
दक्षता और उत्पादकता: आधुनिक उपकरण और तकनीकें (जैसे ट्रैक्टर, सटीक बुवाई मशीनें) किसानों को कम समय और श्रम में अधिक क्षेत्र को कवर करने में सक्षम बनाती हैं, जिससे प्रति एकड़ उपज बढ़ती है।
संसाधन संरक्षण: यह जल, मिट्टी और ऊर्जा जैसे प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए प्रभावी समाधान प्रदान करता है, उदाहरण के लिए, ड्रिप सिंचाई और शून्य-जुताई (Zero-Tillage) तकनीकें।
किसानों की आय: बेहतर मशीनीकरण और कम नुकसान (कटाई उपरांत) के कारण कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार होता है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होती है।
दायरा (Scope)
कृषि इंजीनियरिंग एक बहुआयामी क्षेत्र है, जिसका दायरा निम्नलिखित मुख्य क्षेत्रों को कवर करता है:
| क्षेत्र | फोकस |
| फार्म पावर और मशीनीकरण | कृषि में उपयोग किए जाने वाले मशीनरी और उपकरणों का डिज़ाइन, विकास और परीक्षण। (जैसे- ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, बीज ड्रिल)। |
| जल संसाधन इंजीनियरिंग | सिंचाई प्रणालियों, ड्रेनेज (जल निकासी), जल संचयन (Water Harvesting), और मिट्टी और जल संरक्षण संरचनाओं का डिज़ाइन और प्रबंधन। |
| संरचनाएं और पर्यावरण इंजीनियरिंग | फार्म भवनों (गोदामों, खलिहानों), ग्रीनहाउस, पशु आवासों, और नियंत्रित भंडारण सुविधाओं का डिज़ाइन। |
| प्रसंस्करण और खाद्य इंजीनियरिंग | कटाई उपरांत उत्पादों की ग्रेडिंग, सुखाने (Drying), भंडारण, और मूल्यवर्धन (Value Addition) के लिए प्रौद्योगिकियाँ। |
| प्रणाली और प्रबंधन (स्मार्ट कृषि) | सटीक खेती (Precision Farming), सेंसर प्रौद्योगिकी, GPS/GIS, और डेटा-आधारित कृषि निर्णय लेने के लिए उपकरणों का अनुप्रयोग। |
1.2 भारत में कृषि का संक्षिप्त इतिहास और चुनौतियाँ
ऐतिहासिक परिदृश्य
पारंपरिक कृषि: प्राचीन काल से, भारतीय कृषि मुख्यतः पशु शक्ति, साधारण लकड़ी के हल और मानसून पर निर्भर थी।
औपनिवेशिक काल: इस दौरान कुछ सिंचाई परियोजनाओं (नहरों) का विकास हुआ, लेकिन समग्र मशीनीकरण बहुत धीमा रहा।
हरित क्रांति (1960-70 के दशक): यह भारतीय कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उच्च उपज वाली किस्मों (HYV) के बीज, उर्वरकों और सिंचाई के विस्तार के साथ-साथ ट्रैक्टर और आधुनिक कृषि उपकरणों की शुरूआत ने भारत को खाद्य-कमी वाले देश से खाद्य-अधिशेष देश में बदल दिया। कृषि इंजीनियरिंग ने मशीनीकरण की नींव रखी।
वर्तमान चुनौतियाँ (Current Challenges)
जमीन का विखंडन (Fragmentation of Land): छोटी और बिखरी हुई जोत (Holding size) के कारण बड़े और कुशल मशीनों का उपयोग मुश्किल हो जाता है।
जल संकट: अनियमित मानसून, भूजल का अत्यधिक उपयोग और अप्रभावी सिंचाई पद्धतियों के कारण जल संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।
पोस्ट-हार्वेस्ट नुकसान: अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं, शीत श्रृंखला (Cold Chain) की कमी, और अक्षम परिवहन के कारण उपज का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है।
तकनीकी खाई (Technology Gap): आधुनिक कृषि तकनीकों (जैसे सटीक खेती) की उच्च लागत और ज्ञान की कमी के कारण छोटे किसान उन्हें अपनाने में असमर्थ हैं।
पर्यावरणीय दबाव: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी का स्वास्थ्य खराब हो रहा है और प्रदूषण बढ़ रहा है।
कृषि इंजीनियरिंग का उद्देश्य इन चुनौतियों को अभिनव, लागत प्रभावी और टिकाऊ समाधानों के साथ दूर करना है।
1.3 टिकाऊ कृषि (Sustainable Agriculture) में इंजीनियरिंग की भूमिका
टिकाऊ कृषि का अर्थ है पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना और सामाजिक रूप से न्यायसंगत तरीके से वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की खाद्य और फाइबर जरूरतों को पूरा करना। कृषि इंजीनियरिंग इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केंद्रीय है।
| भूमिका | इंजीनियरिंग हस्तक्षेप | लाभ/उद्देश्य |
| जल प्रबंधन | प्रेसिजन इरिगेशन: ड्रिप, स्प्रिंकलर और सेंसर-आधारित ऑटोमेशन सिस्टम। | पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार (WUE), जल संरक्षण। |
| मिट्टी संरक्षण | जीरो/मिनिमम टिल-फार्मिंग उपकरण: हैप्पी सीडर, रोटरी टिलर। | मिट्टी की संरचना, नमी और जैविक कार्बन को बनाए रखना, कटाव को कम करना। |
| ऊर्जा दक्षता | बायोमास गैसीकरण/बायोडीजल प्लांट: सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप। | कृषि संचालन में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना। |
| संसाधन अनुकूलन | प्रिसिजन फार्मिंग (GIS/GPS): उर्वरक और कीटनाशक अनुप्रयोग की दर को केवल आवश्यक क्षेत्रों तक सीमित करना। | रासायनिक इनपुट को कम करना, पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकना। |
| अपशिष्ट से धन | वेस्ट प्रोसेसिंग मशीनरी: कृषि अपशिष्ट से खाद, बायोगैस या बायोएथेनॉल बनाने की इंजीनियरिंग। | फार्म अपशिष्ट का प्रभावी उपयोग, प्रदूषण और जलाने को कम करना। |
संक्षेप में, कृषि इंजीनियरिंग वह सेतु (Bridge) है जो पारंपरिक कृषि पद्धतियों को भविष्य की टिकाऊ, कुशल और पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों से जोड़ता है।
अध्याय 2: फार्म पावर और मशीनीकरण
2.1 फार्म पावर के स्रोत (मनुष्य, पशु, यांत्रिक)
फार्म पावर (Farm Power) वह ऊर्जा है जो कृषि कार्यों को करने के लिए उपयोग की जाती है। कृषि की दक्षता और उत्पादकता सीधे उपलब्ध पावर के प्रकार और मात्रा पर निर्भर करती है।
1. मानव शक्ति (Human Power) 🧍
विवरण: यह कृषि में ऊर्जा का सबसे पुराना और प्राथमिक स्रोत है। इसमें शारीरिक श्रम शामिल है, जैसे कि बीज बोना, निराई, कटाई, और छोटे उपकरण चलाना।
लाभ: शून्य पूंजी निवेश, आसानी से उपलब्ध, छोटे और जटिल क्षेत्रों के लिए उपयुक्त।
सीमाएँ: बहुत कम कार्य क्षमता, ऊर्जा की उच्च लागत (भोजन के संदर्भ में), और धीमा संचालन।
2. पशु शक्ति (Animal Power) 🐃
विवरण: बैल, भैंस, ऊँट, और घोड़े जैसे जानवरों का उपयोग जुताई, ढुलाई, सिंचाई (रहट), और थ्रेशिंग के लिए किया जाता है।
लाभ: ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध, सस्ती ऊर्जा, और पशु खाद (Organic Manure) का अतिरिक्त लाभ।
सीमाएँ: जानवरों की देखभाल और पोषण की आवश्यकता, कार्यक्षमता जानवरों की शक्ति पर निर्भर करती है, मौसम की स्थिति से प्रभावित होती है, और बड़े उपकरणों को चलाने में असमर्थता।
3. यांत्रिक शक्ति (Mechanical Power) 🚜
विवरण: इसमें मुख्य रूप से ट्रैक्टर, पावर टिलर, इलेक्ट्रिक मोटर, डीजल इंजन और अन्य मशीनरी शामिल हैं। यह आधुनिक कृषि का आधार है।
लाभ: उच्च दक्षता, समय की बचत, लगातार और विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति, और भारी व बड़े उपकरणों को चलाने की क्षमता।
सीमाएँ: उच्च प्रारंभिक लागत, ईंधन और रखरखाव पर निर्भरता, और छोटे या पहाड़ी क्षेत्रों के लिए कम उपयुक्त।
आधुनिक कृषि में ट्रेंड: विकसित और विकासशील दोनों देशों में, श्रम और समय की बचत के लिए मानव और पशु शक्ति से यांत्रिक शक्ति में एक स्पष्ट बदलाव आया है।
2.2 आंतरिक दहन इंजन के सिद्धांत और कार्य
आंतरिक दहन इंजन (Internal Combustion Engine - ICE) ट्रैक्टरों, पावर टिलरों और सिंचाई पंपों के लिए यांत्रिक शक्ति का मुख्य स्रोत है।
मूल सिद्धांत
आंतरिक दहन इंजन रासायनिक ऊर्जा (ईंधन) को ऊष्मा ऊर्जा में और फिर यांत्रिक कार्य (पिस्टन की गति) में परिवर्तित करता है। दहन (Combustion) प्रक्रिया इंजन के अंदर एक बंद सिलेंडर में होती है।
कार्य चक्र (Working Cycle)
ICE मुख्यतः फोर-स्ट्रोक साइकिल (Four-Stroke Cycle) पर काम करते हैं, जिसमें पिस्टन के चार अलग-अलग चरण होते हैं:
इनटेक/सक्शन स्ट्रोक (Intake/Suction Stroke): पिस्टन नीचे जाता है, इनलेट वाल्व खुलता है, और वायु-ईंधन मिश्रण (पेट्रोल इंजन में) या केवल हवा (डीजल इंजन में) सिलेंडर में प्रवेश करती है।
कम्प्रेशन स्ट्रोक (Compression Stroke): पिस्टन ऊपर जाता है, दोनों वाल्व बंद हो जाते हैं, और मिश्रण/हवा को संपीड़ित (Compress) किया जाता है, जिससे उसका तापमान बढ़ जाता है।
पावर/वर्किंग स्ट्रोक (Power/Working Stroke): संपीड़ित मिश्रण/हवा को प्रज्वलित किया जाता है।
डीजल इंजन: अत्यधिक संपीड़ित हवा में डीजल इंजेक्ट किया जाता है, जो उच्च तापमान के कारण स्वतः प्रज्वलित हो जाता है।
पेट्रोल इंजन: स्पार्क प्लग चिंगारी उत्पन्न करता है।
दहन से उत्पन्न उच्च दबाव वाली गैसें पिस्टन को ज़ोर से नीचे धकेलती हैं, जिससे यांत्रिक शक्ति मिलती है।
एग्जॉस्ट स्ट्रोक (Exhaust Stroke): पिस्टन फिर से ऊपर जाता है, एग्जॉस्ट वाल्व खुलता है, और जली हुई गैसें सिलेंडर से बाहर निकल जाती हैं।
इस पावर स्ट्रोक से उत्पन्न ऊर्जा क्रैंकशाफ्ट के माध्यम से ट्रैक्टर के पहियों या पीटीओ (PTO) शाफ्ट तक पहुँचती है।
2.3 ट्रैक्टर: प्रकार, चयन, और रखरखाव
ट्रैक्टर कृषि में सबसे महत्वपूर्ण मशीन है, जो खींचने (Traction) और पावर देने (Power Take-Off - PTO) दोनों का कार्य करता है।
ट्रैक्टर के प्रकार (Types of Tractors)
उपयोग के आधार पर:
यूटिलिटी ट्रैक्टर (Utility Tractors): सामान्य कृषि कार्य (जुताई, बुवाई, ढुलाई) के लिए। भारत में सबसे आम।
रो-क्रॉप ट्रैक्टर (Row-Crop Tractors): पंक्तिबद्ध फसलों (जैसे गन्ना, कपास) की खेती और निराई-गुड़ाई के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए।
ऑर्चर्ड और विनियरड ट्रैक्टर (Orchard/Vineyard Tractors): छोटे, कम ऊँचाई वाले ट्रैक्टर, जो बागानों और अंगूर के बागों के नीचे काम करने के लिए उपयुक्त हैं।
टायर/ट्रेड के आधार पर:
टू-व्हील ड्राइव (2WD) / 4x2: केवल पिछले पहिये इंजन से संचालित होते हैं।
फोर-व्हील ड्राइव (4WD) / 4x4: सभी चार पहिये संचालित होते हैं, बेहतर कर्षण (Traction) और फिसलन नियंत्रण प्रदान करते हैं, खासकर गीली या ढीली मिट्टी में।
ट्रैक्टर का चयन (Tractor Selection)
ट्रैक्टर का चयन करते समय निम्नलिखित कारकों पर विचार करना महत्वपूर्ण है:
फार्म साइज़ और जोत का क्षेत्रफल: बड़े फार्मों के लिए उच्च हॉर्सपावर (HP) वाले ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है।
मुख्य ऑपरेशन: जुताई, कटाई, या ढुलाई - किस कार्य की प्रधानता है?
मिट्टी का प्रकार: भारी मिट्टी को अधिक पावर वाले ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है।
उपलब्ध बजट: खरीद लागत के साथ-साथ परिचालन और रखरखाव लागत।
रखरखाव (Maintenance)
नियमित रखरखाव ट्रैक्टर की जीवन अवधि और दक्षता को बढ़ाता है:
तेल और फिल्टर: इंजन तेल, हाइड्रोलिक तेल और फिल्टर को निर्माता के निर्देशों के अनुसार नियमित रूप से बदलें।
टायर और हवा का दबाव: सही टायर प्रेशर कर्षण और ईंधन दक्षता सुनिश्चित करता है।
कूलिंग सिस्टम: रेडिएटर में पर्याप्त कूलेंट स्तर और साफ पंखे के ब्लेड की जाँच करें।
बैटरी: बैटरी टर्मिनल को साफ और चार्ज रखें।
क्लच और ब्रेक: क्लच और ब्रेक की मुक्त प्ले (Free Play) को नियमित रूप से समायोजित करें।
2.4 जुताई (Tillage) के उपकरण: हल (Ploughs), हैरो (Harrows), और कल्टीवेटर (Cultivators)
जुताई वह क्रिया है जिसके द्वारा मिट्टी को फसलों की बुवाई के लिए तैयार किया जाता है।
1. हल (Ploughs)
हल प्राथमिक जुताई (Primary Tillage) के लिए उपयोग किए जाते हैं, जिसका उद्देश्य मिट्टी को गहराई तक काटना, पलटना, और बड़े ढेलों को तोड़ना है।
मोल्डबोर्ड हल (Mouldboard Plough): सबसे आम प्रकार। यह मिट्टी को काटता है, उठाता है, और पलट देता है, खरपतवारों और फसल अवशेषों को नीचे दबा देता है।
डिस्क हल (Disc Plough): यह मोल्डबोर्ड हल की तुलना में कम घर्षण (Friction) पैदा करता है और कठोर, शुष्क और चिपचिपी मिट्टी में बेहतर काम करता है।
2. हैरो (Harrows)
हैरो द्वितीयक जुताई (Secondary Tillage) के लिए उपयोग किए जाते हैं। उनका मुख्य कार्य मिट्टी के ढेलों को तोड़कर बीज बोने के लिए एक महीन और समतल सीडबेड (Seedbed) तैयार करना है।
डिस्क हैरो (Disc Harrow): मिट्टी के बड़े ढेलों को तोड़ने, खरपतवारों को काटने और मिट्टी को मिलाने के लिए।
टाइन हैरो (Tine Harrow): हल्की मिट्टी को समतल करने और छोटे खरपतवारों को हटाने के लिए।
3. कल्टीवेटर (Cultivators)
कल्टीवेटर का उपयोग बीज बोने से पहले द्वितीयक जुताई के लिए और खड़ी फसल में इंटर-कल्टीवेशन (Inter-Cultivation) (पंक्तियों के बीच खरपतवार नियंत्रण) के लिए किया जाता है।
कार्य: यह मिट्टी को बिना पलटे ढीला करता है, खरपतवारों को हटाता है, और मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए ऊपरी परत को तोड़ता है।
लाभ: मिट्टी की ऊपरी परत को ढीला कर देता है, जिससे वातन (Aeration) में सुधार होता है।
अध्याय 3: सिंचाई और जल संसाधन इंजीनियरिंग
3.1 जल विज्ञान (Hydrology) के मूल सिद्धांत
जल विज्ञान वह विज्ञान है जो पृथ्वी पर जल की घटना, वितरण और गति का अध्ययन करता है। कृषि इंजीनियरिंग में इसका ज्ञान सिंचाई प्रणालियों के डिजाइन और जल संसाधन प्रबंधन के लिए आवश्यक है।
जल चक्र (Hydrologic Cycle)
जल चक्र पृथ्वी पर पानी की निरंतर गति का वर्णन करता है। इसके मुख्य चरण हैं:
वाष्पीकरण (Evaporation): सूर्य की ऊर्जा के कारण जल का तरल से गैसीय (वाष्प) अवस्था में बदलना।
वाष्पोत्सर्जन (Transpiration): पौधों की पत्तियों से जल वाष्प का वायुमंडल में उत्सर्जन। कृषि में, वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन को संयुक्त रूप से वाष्पीकरण-उत्सर्जन (Evapotranspiration - ET) कहा जाता है, जो फसल की कुल जल आवश्यकता को निर्धारित करता है।
संघनन (Condensation): वायुमंडल में जल वाष्प का ठंडा होकर बादलों का निर्माण करना।
वर्षण (Precipitation): बादल से वर्षा, हिम या ओलों के रूप में जल का पृथ्वी पर गिरना।
अपवाह (Runoff): वर्षा जल का सतह पर बहकर नदियों और झीलों में मिलना।
अंतःस्यंदन (Infiltration): जल का मिट्टी की सतह से अंदर रिसना और भूजल बनना।
महत्वपूर्ण पद (Key Terms)
जलग्रहण क्षेत्र (Catchment Area): वह भौगोलिक क्षेत्र जहाँ से वर्षा का जल एकत्रित होकर एक सामान्य बिंदु (जैसे नदी या जलाशय) तक बहता है।
भूजल (Groundwater): वह जल जो मिट्टी की सतह के नीचे संचित होता है। सिंचाई के लिए यह एक प्रमुख स्रोत है।
3.2 मिट्टी-पानी-पौधे संबंध
यह संबंध कृषि इंजीनियरिंग का मूल है, क्योंकि यह निर्धारित करता है कि फसल को कब और कितना पानी देना है।
मिट्टी में जल की अवस्थाएँ (Forms of Water in Soil)
संतृप्ति बिंदु (Saturation Point): जब मिट्टी के सभी छिद्र (Pores) पानी से पूरी तरह भरे होते हैं।
क्षेत्र क्षमता (Field Capacity - FC): गुरुत्वाकर्षण बल से मुक्त होने के बाद मिट्टी में बचा हुआ अधिकतम जल। यह वह सीमा है जिस पर पौधे पानी को आसानी से अवशोषित कर सकते हैं।
स्थायी मुरझान बिंदु (Permanent Wilting Point - PWP): मिट्टी में पानी की वह न्यूनतम मात्रा जिस पर पौधा मुरझा जाता है और ठीक नहीं हो सकता। इस बिंदु पर मिट्टी पानी को इतनी मजबूती से पकड़े रहती है कि पौधे उसे अवशोषित नहीं कर पाते।
उपलब्ध जल (Available Water): क्षेत्र क्षमता (FC) और स्थायी मुरझान बिंदु (PWP) के बीच का अंतर। यह वह जल है जो फसल की वृद्धि के लिए उपलब्ध होता है।
पौधों की जल आवश्यकता
फसलों को अच्छी तरह से विकसित होने के लिए पानी की आवश्यकता होती है, जिसे कंसम्पटिव यूज (Consumptive Use) या फसल वाष्पीकरण-उत्सर्जन () कहा जाता है।
जहाँ:
= फसल वाष्पीकरण-उत्सर्जन
= संदर्भ फसल वाष्पीकरण-उत्सर्जन (Reference ET)
= फसल गुणांक (Crop Coefficient), जो फसल की वृद्धि अवस्था पर निर्भर करता है।
इंजीनियरिंग का लक्ष्य सिंचाई के माध्यम से मिट्टी की नमी को FC और PWP के बीच इष्टतम स्तर पर बनाए रखना है।
3.3 सिंचाई के तरीके: सतही, उप-सतही और दबाव वाली प्रणालियाँ
सिंचाई के तरीकों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:
1. सतही सिंचाई (Surface Irrigation) 🌊
इसमें पानी को गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करके खेत की सतह पर फैलाया जाता है।
उदाहरण: बेसिन, चेक बेसिन, क्यारी (Furrow), और बाढ़ (Flooding) सिंचाई।
लाभ: कम प्रारंभिक लागत, सरल संचालन।
सीमाएँ: जल वितरण में कम एकरूपता, पानी का अत्यधिक नुकसान (अपवाह और गहरा रिसाव), और समतल जमीन की आवश्यकता।
2. उप-सतही सिंचाई (Sub-Surface Irrigation)
इसमें पानी को मिट्टी की सतह के नीचे (पौधों की जड़ क्षेत्र में) एक कृत्रिम जल स्तर बनाकर आपूर्ति किया जाता है। यह आमतौर पर रिसाव (Seepage) द्वारा काम करता है।
उदाहरण: भूमिगत पाइप या खाई (Ditche) प्रणाली।
लाभ: पानी का वाष्पीकरण नुकसान बहुत कम होता है।
सीमाएँ: जल स्तर का प्रबंधन मुश्किल, मिट्टी में नमक जमने की संभावना।
3. दबाव वाली प्रणालियाँ (Pressurized Systems)
इसमें पंप और पाइपलाइन का उपयोग करके पानी को दबाव के तहत वितरित किया जाता है। ये आधुनिक और कुशल प्रणालियाँ हैं।
उदाहरण: स्प्रिंकलर (फव्वारा) और ड्रिप (टपक) सिंचाई।
लाभ: उच्च जल उपयोग दक्षता, असमान स्थलाकृति (Uneven Topography) पर भी उपयोग संभव।
सीमाएँ: उच्च प्रारंभिक लागत और रखरखाव की आवश्यकता।
3.4 आधुनिक सिंचाई प्रणालियाँ: ड्रिप, स्प्रिंकलर और रेन गन
ये प्रणालियाँ जल संरक्षण और दक्षता में क्रांति लाई हैं।
1. ड्रिप/टपक सिंचाई (Drip Irrigation)💧
सिद्धांत: पानी को सीधे ड्रिपर्स या एमिटर के माध्यम से पौधे के जड़ क्षेत्र में बूंद-बूंद करके दिया जाता है।
उपयोग: बागवानी फसलें, पंक्ति फसलें (Row Crops), और पानी की कमी वाले क्षेत्र।
दक्षता: 90% से 95% तक।
लाभ: अधिकतम जल बचत, खरपतवारों में कमी, और फर्टिलाइज़र को सीधे पानी के साथ (फर्टिगेशन) देने की क्षमता।
2. स्प्रिंकलर/फव्वारा सिंचाई (Sprinkler Irrigation)
सिद्धांत: पानी को पंप के दबाव से पाइपलाइन के माध्यम से नोजल तक पहुँचाया जाता है, जहाँ से वह वर्षा की बूंदों के रूप में हवा में छिड़का जाता है।
उपयोग: गेहूँ, चना, सब्जियां और असमान भूभाग।
दक्षता: 70% से 85% तक।
प्रकार: पोर्टेबल, सेमी-पोर्टेबल, सेंटर पिवट, और लैटरल मूव सिस्टम।
3. रेन गन सिंचाई (Rain Gun Irrigation)
सिद्धांत: एक बड़े, उच्च दबाव वाले नोजल का उपयोग करके पानी को बहुत बड़ी दूरी (30-60 मीटर) तक छिड़का जाता है।
उपयोग: बड़े खेत, चारागाह, गन्ना और चाय बागान।
लाभ: कम स्थापना समय, बड़ी दूरी कवर करना।
सीमाएँ: तेज हवा और उच्च वाष्पीकरण नुकसान की संभावना।
3.5 सिंचाई दक्षता और जल उपयोगिता
सिंचाई इंजीनियरिंग का अंतिम लक्ष्य जल दक्षता को अधिकतम करना है।
सिंचाई दक्षता (Irrigation Efficiency)
सिंचाई दक्षता यह मापती है कि खेत में लगाए गए पानी का कितना प्रतिशत वास्तव में पौधे द्वारा उपयोग किया जाता है।
वितरण दक्षता (Conveyance Efficiency): स्रोत से खेत के किनारे तक पानी पहुँचाने में होने वाले नुकसान (रिसाव और वाष्पीकरण) को मापती है।
अनुप्रयोग दक्षता (Application Efficiency): खेत में लागू किए गए पानी का कितना प्रतिशत जड़ क्षेत्र में जमा होता है। आधुनिक ड्रिप सिस्टम में यह सबसे अधिक होती है।
जल उपयोगिता (Water Use Efficiency - WUE)
WUE वह उपज (Yield) है जो प्रति इकाई जल (या तो कुल जल या वाष्पीकरण-उत्सर्जन जल) के उपयोग से प्राप्त होती है।
उच्च WUE का अर्थ है कि किसान कम पानी में अधिक उपज प्राप्त कर रहा है, जो टिकाऊ कृषि के लिए आवश्यक है। कृषि इंजीनियरिंग उपकरणों और तकनीकों का अनुप्रयोग जल दक्षता और WUE दोनों को बढ़ाकर किसानों और पर्यावरण दोनों को लाभ पहुँचाता है।
अध्याय 4: मिट्टी और जल संरक्षण इंजीनियरिंग
4.1 मिट्टी का कटाव (Soil Erosion) और इसके प्रकार
मिट्टी का कटाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी की ऊपरी और सबसे उपजाऊ परत पानी (जल कटाव) या हवा (वायु कटाव) जैसी बाहरी शक्तियों द्वारा हट जाती है और एक स्थान से दूसरे स्थान पर चली जाती है। यह कृषि भूमि की उर्वरता को कम करता है।
1. जल कटाव (Water Erosion) 💧
यह कटाव वर्षा जल या बहते पानी के कारण होता है और इसकी तीव्रता और प्रकार वर्षा की सघनता, ढलान की लम्बाई, और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है।
| प्रकार (Type) | विवरण (Description) |
| बूंद कटाव (Splash Erosion) | वर्षा की बूँदें सीधे मिट्टी पर गिरकर मिट्टी के कणों को तोड़ती हैं और बिखेर देती हैं। यह कटाव का प्रारंभिक चरण है। |
| परत कटाव (Sheet Erosion) | मिट्टी की एक पतली, समान परत पूरे क्षेत्र से हट जाती है। यह पहचानना मुश्किल होता है, लेकिन उपजाऊ मिट्टी का सबसे बड़ा नुकसान इसी से होता है। |
| रील कटाव (Rill Erosion) | पानी के बहाव से खेत की सतह पर पतली, उंगली के आकार की नालियाँ (छोटी खाइयाँ) बन जाती हैं। इन्हें सामान्य जुताई से ठीक किया जा सकता है। |
| गली कटाव (Gully Erosion) | रील कटाव के बढ़ने से गहरी और चौड़ी खाइयाँ (गुलियाँ) बन जाती हैं, जो कृषि कार्यों में बाधा डालती हैं। यह सबसे गंभीर प्रकार का जल कटाव है। |
2. वायु कटाव (Wind Erosion) 💨
यह शुष्क, रेतीले क्षेत्रों में और तेज हवाओं के दौरान होता है, जिससे मिट्टी के कण उड़कर चले जाते हैं।
उच्छलन (Saltation): मध्यम आकार के कण हवा से उछलकर छोटी दूरी तय करते हैं (सबसे अधिक होता है)।
निलंबन (Suspension): बहुत महीन कण हवा में निलंबित होकर लंबी दूरी तय करते हैं (धूल भरी आँधी)।
सतह सर्पण (Surface Creep): बड़े कण हवा के दबाव से सतह पर लुढ़कते या खिसकते हैं।
4.2 कटाव नियंत्रण के लिए इंजीनियरिंग उपाय (बंडिंग, टेरेसिंग)
इंजीनियरिंग संरचनाएँ मिट्टी के कटाव को रोकने और वर्षा जल को जमीन में समाहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
1. बंडिंग (Bunding)
बंड एक निम्न मिट्टी का तटबंध या रिज होता है जो पानी के बहाव को रोकने और उसे खेत में जमा करने के लिए समोच्च रेखा (Contour Line) के साथ बनाया जाता है।
समोच्च बंड (Contour Bunds): ये समोच्च रेखा के साथ-साथ बनाए जाते हैं और मुख्य रूप से 2% से 8% की हल्की ढलानों पर उपयोग किए जाते हैं। इनका उद्देश्य अपवाह (Runoff) को रोकना और नमी को बढ़ाना है।
श्रेणी बंड (Graded Bunds): इन्हें समोच्च रेखा से एक निश्चित ढलान (Grade) पर बनाया जाता है ताकि अतिरिक्त पानी को सुरक्षित रूप से एक जल निकासी आउटलेट (Outlet) तक पहुँचाया जा सके। यह उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जहाँ वर्षा अधिक होती है।
2. टेरेसिंग (Terracing)
टेरेसिंग (सीढ़ीदार खेत बनाना) ढलान वाली भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिए एक प्रभावी इंजीनियरिंग विधि है।
ग्रेडियंट टेरेस (Graded Terraces): एक निश्चित अनुदैर्ध्य ढलान के साथ बनाए गए टेरेस, जो पानी को धीमी गति से बाहर निकालने में मदद करते हैं (अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में)।
लेवल/पैरलेल टेरेस (Level/Parallel Terraces): समतल टेरेस, जो ढलान को रोकते हैं और पूरे वर्षा जल को संग्रहित करते हैं (कम वर्षा वाले क्षेत्रों में)।
3. अन्य इंजीनियरिंग संरचनाएँ
चेक डैम (Check Dams): छोटी खाइयों (Gullies) में बनाए गए छोटे अवरोध (पत्थर, मिट्टी, या बोरी से), जो पानी के बहाव की गति को कम करते हैं और कटाव को रोकते हैं।
गैबियन संरचनाएँ (Gabion Structures): तार की जाली में भरे पत्थरों के बक्से, जो बड़ी गुलियों को स्थिर करने और नदी के किनारों को कटाव से बचाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
4.3 जल संचयन (Water Harvesting) संरचनाओं का डिज़ाइन
जल संचयन वर्षा जल को एकत्रित और संग्रहीत करने की प्रक्रिया है, जिसे बाद में सिंचाई या अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है।
1. तालाब और टैंक (Ponds and Tanks)
फार्म तालाब (Farm Ponds): छोटे जलाशय जिन्हें व्यक्तिगत खेत पर वर्षा जल अपवाह को संग्रहित करने के लिए बनाया जाता है। इनके डिजाइन में जल निकासी क्षेत्र का आकार और मिट्टी की अंतःस्यंदन दर (Infiltration Rate) महत्वपूर्ण होती है।
ताल (Tals) और बंधारे (Bandharas): स्थानीय रूप से निर्मित टैंक जो अपवाह को रोकते हैं और भूजल पुनर्भरण (Groundwater Recharge) में मदद करते हैं।
2. परकोलेशन टैंक (Percolation Tanks)
उद्देश्य: भूजल को रिचार्ज करना। ये संरचनाएँ पानी को तब तक रोककर रखती हैं जब तक कि वह धीरे-धीरे जमीन में रिस न जाए।
डिजाइन विचार: टैंक को पारगम्य (Permeable) चट्टानों या मिट्टी के क्षेत्र पर स्थित होना चाहिए ताकि पानी आसानी से रिस सके।
3. चेक डैम और नाला बंध (Nala Bunds)
इंजीनियरिंग डिज़ाइन में नाले (छोटी धारा) की चौड़ाई और गहराई को ध्यान में रखा जाता है ताकि संरचना जल-प्रवाह के दबाव को झेल सके।
ये संरचनाएँ जल के बहाव को धीमा करती हैं, जिससे पानी का अधिक हिस्सा मिट्टी में रिस जाता है और भूजल स्तर ऊपर उठता है।
जल संचयन संरचनाओं के डिजाइन में इंजीनियरिंग का उपयोग सुरक्षित जल निकासी, संरचना की स्थिरता और भंडारण क्षमता की गणना के लिए किया जाता है।
4.4 वाटरशेड प्रबंधन (Watershed Management) के सिद्धांत
वाटरशेड (जलग्रहण क्षेत्र) एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ से सभी वर्षा जल अपवाह एक ही निकास बिंदु की ओर प्रवाहित होते हैं। वाटरशेड प्रबंधन का अर्थ है इस क्षेत्र के प्राकृतिक और मानव संसाधनों का इस प्रकार एकीकृत उपयोग करना कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित हो और समुदाय की भलाई को अधिकतम किया जा सके।
मूल सिद्धांत
कटाव और अपवाह नियंत्रण (Erosion and Runoff Control): 'पहाड़ी से घाटी' (Ridge to Valley) दृष्टिकोण का उपयोग करना। संरक्षण कार्य सबसे पहले वाटरशेड के ऊपरी भागों (ऊँची पहाड़ी) में शुरू किए जाते हैं।
रिज़लाइन ट्रीटमेंट (Ridgetine Treatment): ऊपरी ढलानों पर छोटे-छोटे बंड और खाइयाँ बनाना ताकि पानी वहीं रुक जाए।
भूमि उपयोग क्षमता (Land Use Capability): भूमि को उसकी क्षमता के अनुसार उपयोग करना। उदाहरण के लिए, अत्यधिक ढलान वाली भूमि को केवल वनीकरण (Afforestation) या घास के मैदान के लिए उपयोग करना, न कि गहन खेती के लिए।
एकीकृत दृष्टिकोण (Integrated Approach): जल संरक्षण, मिट्टी संरक्षण, कृषि वानिकी (Agro-forestry), और पशुधन प्रबंधन को एक साथ लाना।
सामुदायिक भागीदारी: प्रबंधन योजनाओं के विकास और कार्यान्वयन में स्थानीय लोगों (किसानों) की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना, क्योंकि वे ही वास्तविक लाभार्थी और संरक्षक होते हैं।
भूजल पुनर्भरण: ऐसी संरचनाओं (जैसे परकोलेशन टैंक, रिचार्ज शाफ्ट) का निर्माण करना जो वर्षा जल को कुशलतापूर्वक भूजल भंडारों में भेजें।
कृषि इंजीनियरिंग वाटरशेड प्रबंधन में संरक्षण संरचनाओं की लेआउट प्लानिंग, डिज़ाइन, और निर्माण की निगरानी करके वैज्ञानिक और टिकाऊ समाधान प्रदान करती है।
अध्याय 5: कटाई उपरांत इंजीनियरिंग(Post-Harvest Engineering)
कटाई उपरांत इंजीनियरिंग कृषि उत्पादों को खेत से उपभोक्ता तक पहुँचने तक की प्रक्रिया में होने वाले नुकसान को कम करने और उनके मूल्य को बढ़ाने पर केंद्रित है। यह खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
5.1 कटाई और थ्रेशिंग उपकरण
फसल कटाई (Harvesting) और थ्रेशिंग (Threshing) की प्रक्रिया में यांत्रिक उपकरणों का उपयोग श्रम और समय की बचत करके दक्षता बढ़ाता है।
कटाई उपकरण (Harvesting Equipment)
दरांती (Sickle) और हंसिया (Scythe): पारंपरिक, मानव-संचालित उपकरण। छोटे खेतों और श्रम-गहन फसलों के लिए उपयोग किए जाते हैं।
रीपर (Reaper): यह उपकरण फसल को जड़ से काटता है और या तो खेत में फैला देता है या बंडल में बांध देता है।
रीपर-बाइंडर (Reaper-Binder): कटी हुई फसल को तुरंत बंडल में बांधने की क्षमता रखता है।
कंबाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester): यह एक ही मशीन में तीन प्रक्रियाओं (कटाई, थ्रेशिंग और ओसाई/सफाई) को पूरा करता है।
सिद्धांत: यह मशीन फसल को काटती है, दानों को बालियों से अलग करती है (थ्रेशिंग), और भूसी से साफ करती है (ओसाई/सफाई)। यह बड़े पैमाने की कृषि के लिए सबसे कुशल उपकरण है।
थ्रेशिंग उपकरण (Threshing Equipment)
थ्रेशर (Thresher): यह कटी हुई फसल से दानों को अलग करने के लिए उपयोग किया जाता है।
पैडी थ्रेशर/मेज थ्रेशर: विशिष्ट फसलों (जैसे धान, मक्का) के लिए डिज़ाइन किए गए विशेष थ्रेशर।
इंजीनियरिंग का महत्व: इन उपकरणों का डिज़ाइन फसल के प्रकार, नमी की मात्रा और क्षति दर को न्यूनतम करने पर आधारित होता है।
5.2 कृषि उत्पादों की सुखाने (Drying) और भंडारण (Storage) के सिद्धांत
फसल कटाई के तुरंत बाद उसमें नमी की मात्रा अधिक होती है, जिससे कवक और कीटों का हमला हो सकता है। इसलिए, सुखाना (Drying) और उचित भंडारण (Storage) पोस्ट-हार्वेस्ट प्रबंधन के महत्वपूर्ण चरण हैं।
सुखाने के सिद्धांत (Principles of Drying)
संतुलन नमी सामग्री (Equilibrium Moisture Content - EMC): यह वह नमी सामग्री है जिसे कोई उत्पाद आसपास की हवा के तापमान और सापेक्षिक आर्द्रता के संपर्क में आने पर प्राप्त करता है। सुरक्षित भंडारण के लिए, फसल की नमी को EMC से नीचे लाना आवश्यक है (उदाहरण के लिए, अनाज के लिए 12-14% तक)।
सुखाने के तरीके:
प्राकृतिक सुखाना (Solar Drying): सूर्य की गर्मी और हवा का उपयोग करना। यह सस्ता है, लेकिन धीमा और मौसम पर निर्भर करता है।
यांत्रिक सुखाना (Mechanical Drying): गर्म हवा का उपयोग करके नमी को तेजी से और नियंत्रित तरीके से हटाना।
बैच ड्रायर (Batch Dryer): एक बार में निश्चित मात्रा में उत्पाद को सुखाने के लिए।
कंटीन्यूअस फ्लो ड्रायर (Continuous Flow Dryer): औद्योगिक स्तर पर लगातार उच्च मात्रा को सुखाने के लिए।
भंडारण के सिद्धांत (Principles of Storage)
उद्देश्य: गुणवत्ता बनाए रखना, कीटों/चूहों के हमलों को रोकना और बाजार में मांग के अनुसार आपूर्ति करना।
भंडारण संरचनाएँ:
कोठार (Silos): बड़े पैमाने पर थोक (Bulk) अनाज भंडारण के लिए लंबी, बेलनाकार संरचनाएँ।
बिन (Bins) और बखार (Godowns): छोटे और मध्यम पैमाने के भंडारण के लिए उपयोग किए जाते हैं।
संरचनात्मक आवश्यकताएँ: भंडारण संरचनाओं को नमी-रोधी, कीट-प्रूफ और प्रभावी वेंटिलेशन (वायु-संचरण) वाला होना चाहिए।
5.3 कोल्ड स्टोरेज और नियंत्रित वातावरण भंडारण
उच्च मूल्य वाली, जल्दी खराब होने वाली फसलों (फल, सब्जियां, फूल) की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए उन्नत भंडारण प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता होती है।
कोल्ड स्टोरेज (Cold Storage) ❄️
सिद्धांत: उत्पाद के तापमान को कम करके उसके श्वसन दर (Respiration Rate) को धीमा करना। तापमान कम होने से फलों और सब्जियों का पकना, सड़ना और नमी का नुकसान काफी कम हो जाता है।
इंजीनियरिंग अनुप्रयोग: प्रशीतन (Refrigeration) प्रणाली का डिज़ाइन (कंप्रेसर, कंडेनसर, इवेपोरेटर), इन्सुलेशन (Insulation) और तापमान नियंत्रण (Thermostats) महत्वपूर्ण होते हैं।
चेन (Cold Chain): यह कटाई के बाद से लेकर उपभोक्ता तक उत्पाद को नियंत्रित निम्न तापमान पर बनाए रखने की एक पूरी श्रृंखला है, जिसमें रेफ्रिजरेटेड वेयरहाउस, रेफ्रिजरेटेड वाहन और डिस्प्ले यूनिट शामिल हैं।
नियंत्रित वातावरण (Controlled Atmosphere - CA) भंडारण
सिद्धांत: तापमान को कम करने के अलावा, भंडारण कक्ष के अंदर ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन गैसों के स्तर को सक्रिय रूप से नियंत्रित करना।
कार्य: ऑक्सीजन के स्तर को कम करने (जैसे 2-5%) से फलों/सब्जियों का चयापचय (Metabolism) और पकने की प्रक्रिया लगभग रुक जाती है, जिससे उनका भंडारण जीवन कई महीनों तक बढ़ाया जा सकता है (उदाहरण: सेब)।
इंजीनियरिंग अनुप्रयोग: गैस सीलिंग वाले चैंबर (Gas-tight chambers), गैस एनालाइज़र, और स्क्रबर्स का डिज़ाइन CA भंडारण इंजीनियरिंग का मुख्य भाग है।
5.4 कृषि अपशिष्ट का प्रबंधन और मूल्यवर्धन
कटाई उपरांत इंजीनियरिंग का एक महत्वपूर्ण पहलू कृषि अपशिष्ट (Agricultural Waste) का प्रबंधन करना है ताकि प्रदूषण कम हो सके और अपशिष्ट से मूल्यवान उत्पाद बनाए जा सकें।
अपशिष्ट प्रबंधन (Waste Management)
कमी और पुन: उपयोग (Reduction and Reuse): अपशिष्ट की मात्रा कम करने के लिए कुशल मशीनीकरण का उपयोग करना और कृषि अपशिष्ट (जैसे धान का पुआल, खोई) को पशु चारा या बिस्तर सामग्री के रूप में उपयोग करना।
इंजीनियरिंग समाधान:
कम्पोस्टिंग और वर्मीकम्पोस्टिंग: अपशिष्ट को खाद में बदलने के लिए वैज्ञानिक रूप से डिज़ाइन किए गए गड्ढे और मशीनरी।
पुआल बेलर (Straw Baler): पुआल और फसल अवशेषों को कॉम्पैक्ट बंडलों में दबाने के लिए, जिससे उनका परिवहन और भंडारण आसान हो जाता है।
मूल्यवर्धन (Value Addition) के अनुप्रयोग
बायोएनर्जी उत्पादन (Bioenergy Production):
बायोगैस प्लांट (Biogas Plant): पशु अपशिष्ट और फसल अवशेषों का उपयोग करके एनारोबिक पाचन (Anaerobic Digestion) के माध्यम से मीथेन युक्त गैस (बायोगैस) का उत्पादन करना।
बायोडीजल और बायोएथेनॉल: गन्ना, मक्का, या कुछ तेल बीजों से बायोडीजल और इथेनॉल का उत्पादन करने के लिए प्रोसेसिंग प्लांट का डिज़ाइन।
ईंधन ईंटें (Briquettes) और पैलेट (Pellets): चावल की भूसी, पुआल, या अन्य बायोमास को कॉम्पैक्ट, उच्च घनत्व वाली ईंटों या पैलेट में दबाने के लिए इंजीनियरिंग मशीनों का उपयोग करना, जिन्हें औद्योगिक ईंधन के रूप में बेचा जा सकता है।
खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing): फसल को सीधे बेचने के बजाय, उसे डिब्बा बंद फल, जैम, अचार, या तेल जैसे संसाधित उत्पादों में बदलकर उच्च मूल्य प्राप्त करना।
इन इंजीनियरिंग अनुप्रयोगों के माध्यम से, किसान न केवल अपने उत्पादों की शेल्फ लाइफ बढ़ाते हैं बल्कि नए आय स्रोत भी उत्पन्न करते हैं।
अध्याय 6: स्मार्ट कृषि और डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ
स्मार्ट कृषि या डिजिटल कृषि सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (ICT) का अनुप्रयोग है, जिसका उद्देश्य कृषि प्रणालियों को अधिक कुशल, टिकाऊ और उत्पादक बनाना है। यह कृषि इंजीनियरिंग के भविष्य का प्रतिनिधित्व करता है।
6.1 सटीक खेती (Precision Farming): परिचय और लाभ
परिचय
सटीक खेती (Precision Farming - PF) एक ऐसी प्रबंधन रणनीति है जो फसल की आवश्यकताओं को व्यक्तिगत रूप से पूरा करने के लिए खेत के भीतर स्थान और समय के अंतरों का अवलोकन, माप और प्रतिक्रिया करती है।
पारंपरिक खेती: खेत के हर हिस्से को एक जैसा मानकर पूरे क्षेत्र में एक समान मात्रा में बीज, उर्वरक और पानी दिया जाता है।
सटीक खेती: यह मानती है कि खेत के अलग-अलग हिस्सों में मिट्टी की गुणवत्ता, नमी का स्तर और पोषक तत्वों की उपलब्धता अलग-अलग होती है। इसलिए, यह चर दर प्रौद्योगिकी (Variable Rate Technology - VRT) का उपयोग करके केवल आवश्यकतानुसार ही संसाधन प्रदान करती है।
मुख्य सिद्धांत
डेटा संग्रह: सेंसर, जीपीएस, और सैटेलाइट इमेजरी के माध्यम से खेत के बारे में सटीक डेटा इकट्ठा करना।
विश्लेषण: भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का उपयोग करके डेटा का विश्लेषण करना और आवश्यकता के मैप (Application Maps) बनाना।
क्रियान्वयन: VRT उपकरणों (जैसे चर दर स्प्रेडर) का उपयोग करके मैप के आधार पर सटीक मात्रा में इनपुट देना।
लाभ (Benefits)
| लाभ का क्षेत्र | विवरण |
| संसाधन दक्षता | उर्वरक, पानी और कीटनाशकों का लक्षित उपयोग होता है, जिससे बर्बादी कम होती है और लागत घटती है। |
| उत्पादकता में वृद्धि | फसल को ठीक वही मिलता है जिसकी उसे आवश्यकता होती है, जिससे उपज में वृद्धि होती है। |
| पर्यावरण संरक्षण | रसायनों के कम उपयोग से मिट्टी और भूजल प्रदूषण कम होता है, जिससे टिकाऊ कृषि को बढ़ावा मिलता है। |
| समय की बचत | ऑटोमेशन और मशीनीकरण के कारण कृषि कार्यों में लगने वाला समय कम हो जाता है। |
6.2 भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) का उपयोग
सटीक खेती के लिए GIS और GPS अनिवार्य आधार स्तंभ हैं।
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) / ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) 🛰️
कार्य: खेत के भीतर किसी भी बिंदु की सटीक भौगोलिक स्थिति (अक्षांश और देशांतर) निर्धारित करना।
कृषि में उपयोग:
फील्ड मैपिंग: खेत की सीमाओं और बाधाओं का सटीक नक्शा बनाना।
ट्रैक्टर मार्गदर्शन (Guidance): ऑपरेटर को समानांतर ट्रैकिंग प्रदान करना (A-B लाइन), जिससे ओवरलैपिंग या छूटे हुए क्षेत्रों से बचा जा सके।
डेटा टैगिंग: मिट्टी के नमूने या उपज डेटा को उसके स्थान के साथ टैग करना।
भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) 🗺️
कार्य: भौगोलिक रूप से संदर्भित डेटा (जैसे मिट्टी का प्रकार, उपज मैप, स्थलाकृति) को स्टोर करना, प्रबंधित करना, विश्लेषण करना और प्रदर्शित करना।
कृषि में उपयोग:
चर दर अनुप्रयोग मैप बनाना: मिट्टी परीक्षण डेटा को उर्वरक अनुप्रयोग दरों से जोड़कर VRT मशीनों के लिए कमांड मैप बनाना।
क्षेत्रीय विश्लेषण: विभिन्न वर्षों के उपज डेटा को ओवरले (Overlay) करके खेत के उच्च-उत्पादकता (High-yielding) और निम्न-उत्पादकता (Low-yielding) क्षेत्रों की पहचान करना।
इन दोनों तकनीकों के संयोजन से खेत की विषमताओं को समझा जा सकता है और प्रबंधन के निर्णय लिए जा सकते हैं।
6.3 इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और सेंसर-आधारित मॉनिटरिंग
IoT और सेंसर तकनीकें कृषि को एक स्वचालित और डेटा-संचालित उद्योग में बदल रही हैं।
इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) का परिचय 🌐
IoT एक ऐसा नेटवर्क है जहाँ भौतिक वस्तुएँ (जैसे सेंसर, मशीनें) इंटरनेट के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं और डेटा का आदान-प्रदान करती हैं।
स्मार्ट फार्मिंग में IoT: सेंसर खेत से डेटा एकत्र करते हैं, इसे क्लाउड-आधारित सर्वर पर भेजते हैं, जहाँ इसका विश्लेषण होता है, और फिर स्वचालित रूप से मशीनों या सिंचाई प्रणालियों को कमांड भेजे जाते हैं।
सेंसर-आधारित मॉनिटरिंग (Sensor-based Monitoring)
सेंसर खेत के विभिन्न महत्वपूर्ण मापदंडों की वास्तविक समय (Real-time) निगरानी करते हैं:
मिट्टी के सेंसर: मिट्टी की नमी की मात्रा (Water Content), तापमान और पोषक तत्वों (pH, NPK) के स्तर को मापते हैं।
मौसम सेंसर (वेदर स्टेशन): हवा की गति और दिशा, वर्षा की मात्रा, और सापेक्षिक आर्द्रता को मापते हैं।
फसल सेंसर (Crop Sensors):
ऑप्टिकल सेंसर (Optical Sensors): फसल के स्वास्थ्य और नाइट्रोजन की आवश्यकता को मापने के लिए फसल से परावर्तित प्रकाश की तीव्रता को मापते हैं (जैसे NDVI - Normalized Difference Vegetation Index)।
थर्मल सेंसर: पौधे के तनाव को मापने के लिए पत्ते के तापमान को मापते हैं।
परिणाम: यह प्रणाली किसानों को दूर से खेत की निगरानी करने और केवल आवश्यकतानुसार ही सिंचाई या उर्वरक शुरू करने की अनुमति देती है, जिससे दक्षता और सटीकता में भारी सुधार होता है।
6.4 ड्रोन और रिमोट सेंसिंग कृषि में
रिमोट सेंसिंग और ड्रोन कृषि में डेटा संग्रह को क्रांतिकारी बना रहे हैं।
रिमोट सेंसिंग (Remote Sensing) 🛰️
सिद्धांत: उपग्रहों या विमानों से सेंसर का उपयोग करके पृथ्वी की सतह के बारे में डेटा एकत्र करना।
कृषि में उपयोग:
उपज अनुमान: फसल के स्वास्थ्य और घनत्व के आधार पर कटाई से पहले उपज का अनुमान लगाना।
आपदा निगरानी: सूखा, बाढ़ या कीटों के हमले से हुए नुकसान का आकलन करना।
क्षेत्रीय फसल मानचित्रण: बड़े क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों की पहचान करना।
ड्रोन (Unmanned Aerial Vehicles - UAVs) 🚁
ड्रोन, निम्न ऊँचाई पर उड़ान भरकर उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली इमेजरी एकत्र करने के कारण कृषि में विशेष रूप से उपयोगी हैं।
मानचित्रण और निगरानी: खेत के विस्तृत, उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले एरियल मैप और 3D मॉडल बनाना।
फसल स्वास्थ्य मूल्यांकन: मल्टी-स्पेक्ट्रल कैमरे का उपयोग करके फसल में कीटों, बीमारियों या पोषण संबंधी कमियों वाले विशिष्ट स्थानों की पहचान करना (हॉटस्पॉटिंग)।
स्प्रेइंग (Spraying): छोटे क्षेत्रों में कीटनाशकों, उर्वरकों या बीज की सटीक और लक्षित स्प्रेइंग (ड्रोन स्प्रेइंग)।
सिंचाई प्रबंधन: जल जमाव या अत्यधिक शुष्क क्षेत्रों की पहचान करके सिंचाई शेड्यूलिंग को बेहतर बनाना।
ड्रोन तेजी से, सस्ते में, और बहुत उच्च सटीकता के साथ डेटा प्रदान करके पारंपरिक उपग्रह इमेजरी की सीमाओं को पार करते हैं।
6.5 रोबोटिक्स और ऑटोमेशन
रोबोटिक्स और ऑटोमेशन कृषि इंजीनियरिंग के वह अनुप्रयोग हैं जो शारीरिक श्रम की जगह लेते हैं और मानवीय त्रुटियों को कम करते हैं।
रोबोटिक्स (Robotics) 🤖
कृषि रोबोट का उपयोग दोहराव वाले, गंदे और खतरनाक कार्यों को करने के लिए किया जाता है:
ऑटोमेटेड प्लांटिंग और हार्वेस्टिंग: रोबोटिक आर्म्स का उपयोग करके फल और सब्जियों की कोमल कटाई करना, खासकर बागवानी (Horticulture) में।
निराई रोबोट (Weeding Robots): कैमरा और AI का उपयोग करके खरपतवार और फसल के बीच अंतर करना। यह खरपतवारों को यांत्रिक रूप से हटाते हैं या उन्हें रसायनों की बहुत छोटी खुराक से लक्षित करते हैं।
डाटा कलेक्शन रोबोट: सेंसर से लैस छोटे रोबोट जो खेत में घूमकर मिट्टी और पौधे के स्वास्थ्य का विस्तृत डेटा एकत्र करते हैं।
ऑटोमेशन (Automation)
ऑटोमेशन का अर्थ है मशीनों को न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप के साथ स्वतंत्र रूप से कार्य करने देना।
ऑटो-स्टीयरिंग ट्रैक्टर (Auto-steering Tractors): जीपीएस और सेंसर का उपयोग करके ट्रैक्टर का स्वयं मार्गदर्शन करना, जिससे ऑपरेटर केवल मशीनी कार्य की निगरानी कर सके।
ऑटोमेटेड इरिगेशन (Automated Irrigation): IoT और मिट्टी की नमी सेंसर से जुड़े वाल्वों का उपयोग करके, सिंचाई प्रणाली आवश्यकतानुसार स्वयं चालू और बंद हो जाती है।
वेरिएबल रेट टेक्नोलॉजी (VRT): जीपीएस और प्रिस्क्राइब्ड मैप के आधार पर ट्रैक्टर पर लगे उपकरण (जैसे उर्वरक स्प्रेडर) द्वारा इनपुट दर को स्वचालित रूप से समायोजित करना।
ये प्रौद्योगिकियाँ मिलकर कृषि को अत्यधिक कुशल और श्रम-मुक्त भविष्य की ओर ले जा रही हैं।
ई-बुक "कृषि इंजीनियरिंग: आधुनिक खेती के सिद्धांत और अनुप्रयोग"
अंतिम सारांश (Final Summary)
यह ई-बुक कृषि इंजीनियरिंग के व्यापक और गतिशील क्षेत्र का एक संक्षिप्त लेकिन व्यापक अवलोकन प्रस्तुत करती है। हमने इस यात्रा की शुरुआत पारंपरिक कृषि से की और इसे स्मार्ट फार्मिंग के डिजिटल युग तक बढ़ाया।
संक्षेप में, पुस्तक में शामिल मुख्य इंजीनियरिंग विषय और उनका प्रभाव:
फार्म पावर और मशीनीकरण: हमने मानव और पशु शक्ति से लेकर आधुनिक आंतरिक दहन इंजन और ट्रैक्टरों तक फार्म पावर के विकास को समझा। कुशल मशीनीकरण (जैसे सटीक जुताई उपकरण) ने कृषि कार्यों में लगने वाले श्रम और समय को कम किया है।
सिंचाई और जल संसाधन: हमने जल विज्ञान के सिद्धांतों को समझा और यह देखा कि कैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी आधुनिक दबाव वाली प्रणालियाँ पानी की बर्बादी को कम करके और जल उपयोग दक्षता (WUE) को बढ़ाकर जल संकट का समाधान करती हैं।
मिट्टी और जल संरक्षण: मिट्टी के कटाव (जल और वायु) के प्रकारों और इसके नियंत्रण के लिए बंडिंग और टेरेसिंग जैसे इंजीनियरिंग उपायों पर ध्यान केंद्रित किया गया। वाटरशेड प्रबंधन ने सिखाया कि कैसे एकीकृत तरीके से भूमि और जल संसाधनों का संरक्षण किया जाए।
कटाई उपरांत इंजीनियरिंग: इस भाग में कटाई के बाद के नुकसान को कम करने के लिए थ्रेशिंग और सुखाने के वैज्ञानिक सिद्धांतों का पता लगाया गया। कोल्ड स्टोरेज और नियंत्रित वातावरण (CA) भंडारण ने विशेष रूप से उच्च मूल्य वाली फसलों के लिए आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत किया है।
स्मार्ट कृषि और डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ: पुस्तक का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण खंड। हमने देखा कि कैसे सटीक खेती (Precision Farming), GPS/GIS, IoT सेंसर, और ड्रोन डेटा-संचालित निर्णय लेने में सक्षम बनाते हैं, जिससे किसान अपने संसाधनों का उपयोग अभूतपूर्व सटीकता के साथ कर सकते हैं।
कृषि इंजीनियरिंग केवल मशीनों के बारे में नहीं है; यह विज्ञान, प्रौद्योगिकी और प्रबंधन का उपयोग करके खाद्य उत्पादन के हर चरण में दक्षता, लाभप्रदता और स्थिरता सुनिश्चित करने के बारे में है।
निष्कर्ष (Conclusion)
कृषि इंजीनियरिंग आधुनिक विश्व में खाद्य उत्पादन के भविष्य के लिए अपरिहार्य (Indispensable) है।
बदलती भूमिका: यदि हरित क्रांति ने उच्च उपज देने वाली किस्मों पर ध्यान केंद्रित किया, तो अगली हरित क्रांति को उच्च दक्षता और टिकाऊपन पर ध्यान केंद्रित करना होगा। कृषि इंजीनियर इस बदलाव के केंद्र में हैं।
चुनौतियाँ और अवसर: बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच, कृषि इंजीनियरिंग मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने (संरक्षण), प्रति बूंद अधिक उपज प्राप्त करने (सिंचाई), और कटाई के बाद के नुकसान को कम करने (प्रसंस्करण) के लिए ठोस समाधान प्रदान करती है।
भविष्य का मार्ग: IoT, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), और रोबोटिक्स के बढ़ते एकीकरण के साथ, फार्म जल्द ही स्वायत्त (Autonomous) और अत्यधिक अनुकूलित (Optimized) प्रणालियों के रूप में कार्य करेंगे। इंजीनियरों को इन नई प्रौद्योगिकियों में कुशल होने की आवश्यकता होगी ताकि छोटे किसानों के लिए उन्हें सुलभ और लागत प्रभावी बनाया जा सके।
लेखक का अंतिम संदेश: कृषि इंजीनियरिंग में नवाचार (Innovation) न केवल किसान की जेब के लिए अच्छे हैं, बल्कि वे हमारे ग्रह और आने वाली पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
परिशिष्ट (Appendix)
यहाँ उन संदर्भों और उपकरणों की सूची दी गई है जो इस पुस्तक में चर्चा किए गए सिद्धांतों को लागू करने में सहायक हो सकते हैं।
1. महत्वपूर्ण सूत्र और इकाई रूपांतरण
जल उपयोग दक्षता (WUE) सूत्र:
दक्षता गणना (सामान्य):
पॉवर रूपांतरण:
1 हॉर्स पावर (HP) =
वॉट
1 हेक्टेयर =
एकड़
2. उपयोगी संसाधन और उपकरण
सरकारी योजनाएँ: भारत सरकार की सिंचाई और मशीनीकरण से संबंधित प्रमुख योजनाएँ (जैसे PMKSY, SMAM)।
सेंसर टेक्नोलॉजी: विभिन्न प्रकार के मिट्टी की नमी सेंसरों (जैसे TDR, कैपेसिटेंस सेंसर) की तुलना।
फसल विशिष्ट नमी सीमाएँ: सुरक्षित भंडारण के लिए प्रमुख फसलों (गेहूं, धान, मक्का) की अनुशंसित नमी सामग्री।
3. आगे के अध्ययन के लिए विषय
बायोमास से ऊर्जा रूपांतरण (Conversion of Biomass to Energy)
ग्रीनहाउस प्रौद्योगिकी और नियंत्रित पर्यावरण कृषि (Controlled Environment Agriculture)
कृषि में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग।
शब्दावली (Terminology / Glossary)
| शब्द (Term) | हिंदी अनुवाद | परिभाषा/स्पष्टीकरण |
| Tillage | जुताई | बीज बोने के लिए मिट्टी तैयार करने की यांत्रिक प्रक्रिया। |
| HP (Horse Power) | अश्व शक्ति | इंजन या मशीनरी की पावर मापने की इकाई। |
| PTO (Power Take-Off) | पावर टेक-ऑफ | ट्रैक्टर से जुड़े उपकरणों (जैसे थ्रेशर) को पावर देने के लिए एक शाफ़्ट। |
| Evapotranspiration (ET) | वाष्पीकरण-उत्सर्जन | वाष्पीकरण और पौधों से वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से पानी की हानि। |
| Field Capacity (FC) | क्षेत्र क्षमता | गुरुत्वाकर्षण बल से बहने के बाद मिट्टी में बचा पानी। |
| Drip Irrigation | टपक सिंचाई | पानी को सीधे पौधे की जड़ तक बूंद-बूंद करके पहुँचाने की विधि। |
| Gully Erosion | गली कटाव | पानी के तेज बहाव से बनने वाली गहरी, चौड़ी खाइयाँ। |
| Bunding | बंडिंग | अपवाह को रोकने के लिए ढलान के साथ मिट्टी के छोटे तटबंध बनाना। |
| Precision Farming (PF) | सटीक खेती | खेत के भीतर परिवर्तनशीलता (Variability) के अनुसार प्रबंधन करना। |
| GIS (Geographic Information System) | भौगोलिक सूचना प्रणाली | भौगोलिक डेटा को प्रबंधित, विश्लेषण और प्रदर्शित करने के लिए एक सॉफ्टवेयर प्रणाली। |
| IoT (Internet of Things) | इंटरनेट ऑफ थिंग्स | सेंसर और उपकरणों का नेटवर्क जो इंटरनेट के माध्यम से डेटा का आदान-प्रदान करता है। |
| VRT (Variable Rate Technology) | चर दर प्रौद्योगिकी | उपकरण जो स्थान के आधार पर इनपुट (जैसे उर्वरक) की दर बदलते हैं। |
| Cold Chain | शीत श्रृंखला | कटाई से लेकर उपभोक्ता तक उत्पाद को नियंत्रित निम्न तापमान पर बनाए रखना। |
| Silo | साइलो | अनाज के बड़े पैमाने पर थोक भंडारण के लिए ऊर्ध्वाधर (Vertical) संरचना। |
| NDVI | नॉर्मलाइज़्ड डिफरेंस वेजिटेशन इंडेक्स | फसल स्वास्थ्य और घनत्व मापने के लिए उपयोग किया जाने वाला ऑप्टिकल इंडेक्स। |

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