दुर्गाष्टमी: देवी दुर्गा की महान पूजा - Blog 181
शारदीय नवरात्र पर्व
दिनांक 3-10-2024 से 11-10-2024 तक नवरात्र पर्व मनाया जाएगा, दुर्गाष्टमी एवं दुर्गानवमी पूजन एक ही दिन होगा, 12 को विजया दशमी मनाई जाएगी।
शुभ समय प्रातःकाल 6:35 से 8:03, दोपहर अभिजीत 12:03 से 12:50
कल 2-10-2024 को सर्वपितृ अमावस्या को सभी पितृ पूजन तर्पण श्राद्ध कर सकते है।
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दुर्गाष्टमी: देवी दुर्गा की महान पूजा
दुर्गाष्टमी : हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है। यह नवरात्रि के नौ दिनों में आठवां दिन है, जो शक्ति की देवी के विभिन्न रूपों की पूजा के लिए मनाया जाता है। दुर्गाष्टमी पर, देवी दुर्गा के महाष्टमी रूप की विशेष पूजा की जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
महाष्टमी का महत्व : दुर्गाष्टमी का विशेष महत्व है क्योंकि यह माना जाता है कि इस दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। महिषासुर एक अजेय राक्षस था, जिसने देवताओं को पराजित कर दिया था। देवताओं ने मदद के लिए देवी दुर्गा की प्रार्थना की, और वह उनके सामने प्रकट हुईं। एक भयंकर युद्ध के बाद, देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया और देवताओं को मुक्ति दिलाई।
पूजा की विधि : दुर्गाष्टमी के दिन, भक्त देवी दुर्गा के मंदिरों में जाते हैं या अपने घरों में पूजा करते हैं। पूजा की विधि में कई रस्में शामिल हैं, जैसे कि कलश स्थापना, गायत्री मंत्र का जाप, देवी की आरती और प्रसाद का वितरण। भक्त देवी दुर्गा की पूजा करते हुए उपवास भी रखते हैं और अपने घरों को फूलों और रंगोली से सजाते हैं।
दुर्गाष्टमी का महत्व और संदेश : दुर्गाष्टमी का महत्व न केवल देवी दुर्गा की पूजा में निहित है, बल्कि बुराई पर अच्छाई की विजय के संदेश में भी निहित है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि हमेशा अच्छाई की जीत होती है और बुराई का अंत होता है। दुर्गाष्टमी का उत्सव हमें देवी दुर्गा के साहस, शक्ति और बुराई के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करता है।
दुर्गाष्टमी एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हिंदू धर्म में देवी दुर्गा की महानता और शक्ति का जश्न मनाता है। यह त्योहार हमें बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देता है और हमें देवी दुर्गा से प्रेरित होने के लिए प्रोत्साहित करता है।
नौ दुर्गा देवी के नाम और काम इस प्रकार हैं:
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शैलपुत्री: शैलपुत्री का अर्थ है पर्वत की पुत्री। यह देवी ब्रह्मा की पुत्री हैं और हिमालय की पर्वत श्रृंखला में रहती हैं। शैलपुत्री का वाहन बैल है और वह हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं। शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है।
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ब्रह्मचारिणी: ब्रह्मचारिणी का अर्थ है ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली। यह देवी शिव की पत्नी हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए जंगलों में तपस्या करती थीं। ब्रह्मचारिणी का वाहन हंस है और वह हाथ में कमंडलु और रुद्राक्ष की माला धारण करती हैं। ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है।
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चंद्रघंटा: चंद्रघंटा का अर्थ है घंटी की ध्वनि वाला। यह देवी शिव की पत्नी हैं और उनके माथे पर घंटी का आकार का तिलक होता है। चंद्रघंटा का वाहन सिंह है और वह हाथ में खड्ग और ढाल धारण करती हैं। चंद्रघंटा की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है।
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कुष्मांडा: कुष्मांडा का अर्थ है ब्रह्मांड की रचना करने वाली। यह देवी शिव की पत्नी हैं और ब्रह्मांड की रचना करने के लिए तपस्या करती थीं। कुष्मांडा का वाहन सिंह है और वह हाथ में कमंडलु और अमृत कलश धारण करती हैं। कुष्मांडा की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है।
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स्कंदमाता: स्कंदमाता का अर्थ है स्कंद की माता। यह देवी शिव की पत्नी हैं और स्कंद नामक पुत्र की माता हैं। स्कंदमाता का वाहन सिंह है और वह हाथ में कमंडलु और स्कंद को गोद में लिए हुए हैं। स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है।
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कैलाशवासिनी: कैलाशवासिनी का अर्थ है कैलाश पर्वत की निवासी। यह देवी शिव की पत्नी हैं और कैलाश पर्वत पर रहती हैं। कैलाशवासिनी का वाहन सिंह है और वह हाथ में त्रिशूल और कमंडलु धारण करती हैं। कैलाशवासिनी की पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है।
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मातंगी: मातंगी का अर्थ है मातंग ऋषि की पुत्री। यह देवी शिव की पत्नी हैं और मातंग ऋषि की पुत्री हैं। मातंगी का वाहन सिंह है और वह हाथ में वीणा और पुस्तक धारण करती हैं। मातंगी की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है।
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भद्रकाली: भद्रकाली का अर्थ है भद्र काली। यह देवी शिव की पत्नी हैं और भद्र नामक राक्षस का वध करने के लिए प्रकट हुई थीं। भद्रकाली का वाहन सिंह है और वह हाथ में खड्ग और ढाल धारण करती हैं। भद्रकाली की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन की जाती है।
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दुर्गा: दुर्गा का अर्थ है दुर्ग या किले का रक्षक। यह देवी शिव की पत्नी हैं और दुर्गा नामक राक्षस का वध करने के लिए प्रकट हुई थीं। दुर्गा का वाहन सिंह है और वह हाथ में त्रिशूल, खड्ग, ढाल और कमंडलु धारण करती हैं। दुर्गा की पूजा नवरात्रि के नौवें दिन की जाती है।
Maa Durga devi ki Aarti
|| जय अम्बे गौरी, मैया जय अम्बे गौरी ||
|| तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी || टेक ||
|| मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को ||
|| उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको || जय ||
|| कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ||
|| रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै || जय ||
|| केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी ||
|| सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी || जय ||
|| कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ||
|| कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योति || जय ||
|| शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती ||
|| धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती || जय ||
|| चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू ||
|| बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू || जय ||
|| भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी ||
|| मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी || जय ||
|| कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ||
|| श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति || जय ||
|| श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ||
|| कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै || जय ||
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