सीएलएस (कॉन्ट्रैक्ट लेवल फार्मिंग) या अनुबंध कृषि | Contract Farming - Blog 161

 अनुबंध कृषि 
CLS Farming 

CLS Farming की Full Form है: "Contract Level Farming".

यह एक कृषि प्रणाली है जिसमें किसान और कंपनी (या व्यापारी) के बीच एक अनुबंध के तहत खेती की जाती है।

सीएलएस (कॉन्ट्रैक्ट लेवल फार्मिंग) या अनुबंध कृषि (Contract Farming) एक ऐसी प्रणाली है जिसमें किसान और एक कंपनी (या किसी व्यापारी) के बीच एक अनुबंध होता है। इस अनुबंध के अंतर्गत किसान एक निश्चित फसल उगाते हैं, जिसे कंपनी या व्यापारी खरीदने के लिए पहले से तैयार होते हैं। इस प्रकार की खेती से किसानों को उनके उत्पाद का एक सुनिश्चित बाजार मिलता है, जबकि कंपनी को सुनिश्चित आपूर्ति।

सीएलएस फार्मिंग के मुख्य बिंदु:

  1. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग क्या है?

    • अनुबंध कृषि एक ऐसा समझौता है जिसमें किसान और एक व्यापारी या कंपनी के बीच फसल उत्पादन और बिक्री की शर्तें पहले से तय की जाती हैं। इसमें उत्पादन की मात्रा, गुणवत्ता, कीमत, और समय सीमा जैसी बातें शामिल होती हैं।
  2. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कैसे काम करता है?

    • कंपनी या व्यापारी किसान के साथ अनुबंध करता है कि वह एक निश्चित फसल उगाएगा।
    • कंपनी या व्यापारी यह तय करता है कि वह फसल किस दर पर खरीदेगा और उत्पादन के लिए कुछ सहायता भी प्रदान कर सकता है जैसे बीज, खाद, तकनीकी ज्ञान, आदि।
    • फसल कटाई के बाद, कंपनी फसल की खरीद करती है और किसान को पहले से तय कीमत के अनुसार भुगतान करती है।
  3. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे:

    • निश्चित बाजार: किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए बाजार की चिंता नहीं करनी पड़ती, क्योंकि पहले से खरीददार तय होता है।
    • मूल्य स्थिरता: किसानों को पहले से तय कीमत पर भुगतान मिलता है, जिससे बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव का असर नहीं होता।
    • तकनीकी सहायता: कई बार कंपनियां किसानों को बेहतर उत्पादन के लिए तकनीकी सहायता, उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उर्वरक और आधुनिक खेती के उपकरण प्रदान करती हैं।
    • कम जोखिम: फसल की बिक्री सुनिश्चित होने से किसानों के लिए जोखिम कम होता है।
  4. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नुकसान:

    • बाजार मूल्य से कम कीमत: कई बार अनुबंध में तय कीमत बाजार मूल्य से कम हो सकती है, जिससे किसानों को कम मुनाफा मिलता है।
    • कंपनी की निर्भरता: किसान पूरी तरह से उस कंपनी पर निर्भर हो जाते हैं, जिससे स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की क्षमता कम हो सकती है।
    • गुणवत्ता मानदंड: यदि किसान फसल की गुणवत्ता को अनुबंध में तय मानकों के अनुसार नहीं बना पाता है, तो उसे कम भुगतान या अनुबंध रद्द होने का सामना करना पड़ सकता है।
  5. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के प्रकार:

    • प्रोडक्शन कॉन्ट्रैक्ट: इसमें कंपनी किसानों को उत्पादन सामग्री प्रदान करती है और फसल की गुणवत्ता, मात्रा और समयसीमा पर नजर रखती है।
    • मार्केटिंग कॉन्ट्रैक्ट: इसमें किसान अपने उत्पादन के लिए एक निश्चित कीमत और बिक्री की शर्तें तय करते हैं, लेकिन उत्पादन प्रक्रिया पर कंपनी का हस्तक्षेप कम होता है।
  6. भारत में कानूनी स्थिति:

    • भारत में अनुबंध कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 के तहत सुधार किए हैं। इसके अंतर्गत किसानों और कंपनियों के बीच निष्पक्ष और पारदर्शी अनुबंध सुनिश्चित करने के प्रयास किए गए हैं।
  7. उदाहरण:

    • कई कंपनियां जैसे अमूल, पेप्सिको, और आईटीसी भारत में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से किसानों से कच्चा माल खरीद रही हैं। वे किसानों के साथ मिलकर उनकी फसल को उचित कीमत पर खरीदने के लिए अनुबंध करती हैं।

निष्कर्ष:

सीएलएस या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसानों के लिए लाभदायक हो सकता है यदि इसे सही तरीके से लागू किया जाए। यह किसानों को बाजार और कीमत की अस्थिरता से बचाने में मदद करता है और उन्हें आधुनिक खेती की तकनीकें अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। हालांकि, किसानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनुबंध में सभी शर्तें स्पष्ट हों और उनके हितों की रक्षा हो।

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