बी.बी.एफ. (ब्रॉड बेड फरो) पद्धति: कृषि का एक नया आयाम - Blog 170
बी.बी.एफ. (ब्रॉड बेड फरो) पद्धति: कृषि का एक नया आयाम
बी.बी.एफ या ब्रॉड बेड फरो पद्धति, कृषि में एक आधुनिक तकनीक है, खासकर सूखे क्षेत्रों में फसलों की पैदावार बढ़ाने और मिट्टी के कटाव को कम करने के लिए। इस पद्धति में चौड़ी क्यारियों और उनके बीच गहरी नालियों का निर्माण किया जाता है।
बी.बी.एफ पद्धति के फायदे:
- पानी का बेहतर प्रबंधन: इस पद्धति में वर्षा का पानी मिट्टी में रिसकर जमा हो जाता है, जिससे सूखे की स्थिति में भी फसलों को पानी मिलता रहता है।
- मिट्टी का कटाव कम: चौड़ी क्यारियां मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करती हैं।
- खरपतवार नियंत्रण: बी.बी.एफ पद्धति में खरपतवार नियंत्रण आसान होता है।
- मिट्टी की उर्वरता में सुधार: इस पद्धति से मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है।
- फसल उत्पादन में वृद्धि: बी.बी.एफ पद्धति से फसल उत्पादन में 10-15% तक की वृद्धि हो सकती है।
बी.बी.एफ पद्धति कैसे काम करती है?
- चौड़ी क्यारियां: इन क्यारियों पर फसलें बोई जाती हैं।
- गहरी नालियां: ये नालियां वर्षा के पानी को इकट्ठा करती हैं और मिट्टी में रिसने देती हैं।
- सिंचाई: आवश्यकता पड़ने पर इन नालियों के माध्यम से सिंचाई की जा सकती है।
बी.बी.एफ पद्धति का उपयोग कब और कहाँ किया जाता है?
- सूखे क्षेत्र: यह पद्धति सूखे क्षेत्रों में विशेष रूप से उपयोगी है।
- हल्की और मध्यम काली मिट्टी: यह पद्धति हल्की और मध्यम काली मिट्टी वाली भूमि के लिए उपयुक्त है।
- सोयाबीन: सोयाबीन की खेती में इस पद्धति का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
बी.बी.एफ पद्धति के सफल संचालन के लिए सुझाव:
- खेत की तैयारी: बी.बी.एफ पद्धति को लागू करने से पहले खेत की अच्छी तरह से तैयारी करनी चाहिए।
- मशीन का उपयोग: बी.बी.एफ मशीन का उपयोग करके क्यारियां और नालियां बनाई जाती हैं।
- बीज बोने का समय: बीज बोने का सही समय का चुनाव करना महत्वपूर्ण है।
- खरपतवार नियंत्रण: खरपतवारों को समय-समय पर नियंत्रित करना चाहिए।
- सिंचाई: फसलों को आवश्यकतानुसार पानी देना चाहिए।
निष्कर्ष:
बी.बी.एफ पद्धति एक ऐसी तकनीक है जो कृषि उत्पादन को बढ़ाने और मिट्टी को बचाने में मदद करती है। यह पद्धति विशेष रूप से सूखे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। किसानों को इस पद्धति को अपनाकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं और साथ ही पर्यावरण की रक्षा भी कर सकते हैं।
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बी.बी.एफ. पद्धति वास्तव में समय की आवश्यकता है। इस पद्धति मे
समय, श्रम,
और धन की
बचत तो है ही साथ में पर्यावरण के लिए भी आवश्यक है। आधुनिक खेती किसानी में
बी.बी.एफ पद्धति को समायोजित करना समय की आवश्यकता है। मैंने इस पद्धति में पाया
कि जिन खेतो में हमनें बक्खर चलाई थी उन खेतो की तुलना में बी.बी एक पद्धति में
खरपतवार की काफी कम ऊगे। इस पद्धति मे श्रम की भी कफी बचत होती है खरीफ की फसल की
खेत की तैयारी करने के लिए एक या दो बार बक्खर चलाते है जबकि बी.बी.एफ पद्धति जीरो
ट्रीलेज बूवाई की जाती है तो इस कारण एक या दो बार बक्खर चलाने की लागत लगभग 700
से 1400
रूपये की
बचत होती है और साथ समय भी बचता है ऐसा ही रबी की फसल की खेत की तैयारी करने की भी
बचत होती है इससे हमें खेती की तैयारी पर जो खर्च होता है वह सीधी बचत होती है बचत
के साथ हमारे पर्यावरण को भी कम नुकसान होता है क्योंकि एक एकड़ खेत में कम से कम 3
से 4
लीटर डिजल
को जलाना पड़ाता है जिससे हमारे पर्यावरण कार्बन-डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जीरो
ट्रीलेज मे यह मात्र 1/3 (एक तिहाई) ही रह जाती है और इसके साथ ही विदेशी मुद्रा की भी
बचत होती है क्योकि डिजल के मामले में हमारा देश दूसरे देशों पर निर्भर है। ज़ीरो
ट्रीलेज बी.बी. एफ मैंने पाया कि दूसरे खेतों की उपेक्षा में उत्पादन अधिक हुआ है
कम नहीं इस लिहाज से भी यहां पद्धति परंपरागत पद्धति से श्रेष्ठ है जीरो ट्रीलेज
विधि में मिट्टी का कटाव दूसरे खेतों की उपेक्षा में 70 से 80% कम होता है साथ में बहुत बड़ी बात
यह है कि इसमें जैविक जीवाणु और केंचुए की संख्या बहुत ही ज्यादा तादाद में होती
है इससे पौधों को कार्बनिक पदार्थों की उपलब्धता बहुत ही आसानी से हो जाती है इस
विधि में बरसात के पानी का शोषण बहुत ही आसानी से होता है क्योंकि दूसरे खेतों में
जो मिट्टी बक्खर से भुरभुरी हो जाती है वह पानी पढ़ते ही बहने लगती है और साथ ही
उसकी एक धरती पर सख्त लेयर बन जाती है इससे पानी बह जाता है और भूमि में सिपेज
नहीं हो पाता इसके साथ ही यदि वर्षा अधिक होती है तो बी.बी. एफ पद्धति में पानी
बहकर नालियों द्वारा निकल जाता है जबकि दूसरे खेतो में अधिक बरसात होने पर जड़ गलन
रोग से फसल को नुकसान हो जाता है और बरसात कम होने पर बी.बी. एफ में नालियों की
नमी और पौधों की जड़ों भी गहराई अधिक होने पर पौधे अधिक दिनों तक
सूंखा सहन करने में सक्षम होते हैं इस विधि में जीरो ट्रीलेज होने पर सूक्ष्म
जीवाणु और केंचुए की संख्या निरंतर बढ़ती रहती है इससे फसल को पोषण तत्व बहुत
आसानी से मिलते रहते हैं इस पद्धति में खरपतवार कम संख्या में उगने से इसमें हम खरपतवार
नाशी की जगह मजदूरों से बहुत कम खर्च में खरपतवार पर नियंत्रण कर सकते हैं जिससे
हमारी जमीन पर्यावरण और जल को दूषित होने से बचा सकते हैं पहले के किसान जिस जमीन
पर खरपतवार अधिक उगते थे उस जमीन को 1 वर्ष के लिए खाली छोड़ देते थे ताकि
अगले वर्ष उसमें खरपतवार कम आये भा.क्र.अनु.परिषद इंदौर के तत्वधान में जो तरीका
खेती करने का अपनाया है उसमें यह सारी विशेषताएं उपनुसार है और उसमें जो खास बात
है वह आया है कि उस खेत की मृदा एकदम मुलायम (सॉफ्ट) है दूसरे खेतों की तुलना में
और मंथन के
द्वारा दी गई सेवा भी प्रशंसनीय है भा.क्र.अनु.परिषद द्वारा
किए गए प्रदर्शन क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति देख सकता है दूसरे खेतों की तुलना में
केचुवो की तादाद बहुत ज्यादा है।
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