कृत्रिम गर्भाधान | कृत्रिम वीर्यसेचन | Artificial insemination - Blog 143
कृत्रिम गर्भाधान कृत्रिम वीर्य सेचनArtificial insemination
कृत्रिम गर्भाधान वरदान
1. कृत्रिम गर्भाधान क्या है?
2. कृत्रिम गर्भाधान से लाभ
3. कृत्रिम गर्भाधान की सफलता का आधार
4. मुख्मु सुझाव
5. प्रदेश की उन्नत गौ नस्लें
कृत्रिम गर्भाधान क्या है?
नर पशु का वीर्य कृत्रिम ढंग से एकत्रित कर मादा के जननेन्द्रियों (गर्भाशय ग्रीवा) में यन्त्र की सहायता से कृत्रिम रूप से पहुंचाना ही कृत्रिम गर्भाधान कहलाता है।
कृत्रिम गर्भाधान कैसे करे?
बहुत अच्छी नस्ल के साण्ड को यदि चोट लग जाये या किसी कारण से समागम करने में असमर्थ हो जाए तो उसका वीर्य हिमकृत करके कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा प्रयोग में लाया जा सकता है। कृत्रिम गर्भाधान करने से पहले पशु चिकित्सक द्वारा मादा पशु की अच्छी तरह से जाँच की जाती है।
कृत्रिम गर्भाधान से लाभ
1. उन्नत गुणवत्ता के सांडों का वीर्य दूरस्थ स्थानों पर प्रयोग करके पशु गर्भित करना ।
2. एक गरीब पशुपालक सांड को पाल नहीं सकता, कृत्रिम गर्भाधान से अपने मादा पशु को गर्मित करा कर मनोवांछित फल पा सकता है।
3. इस ढंग से बड़े से बड़े व भारी से भारी सांड के वीर्य से उसी नस्ल की छोटे कद की मादा को भी गर्भित कराया जा सकता है।
4. विदेश या दूसरे स्थानों पर स्थित उन्नत नस्ल के सांड़ों के वीर्य को परिवहन द्वारा दूसरे स्थानों पर भेजकर पशु गर्भित कराये जा सकते हैं।
5. कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से वीर्य संग्रह किया जा सकता है। इस प्रकार एक सांड से वर्ष में कई हजार पशु गर्भित होंगे और इससे उन्नत सांडों की कमी का समाधान भी होगा। 6. रोग रहित परीक्षित सांडों के वीर्य प्रयोग से मादा को नर द्वारा यौन रोग नहीं फैलते ।
7. यदि गर्भाधान कृत्रिम रूप से कराया जाए तो मादा यौन रोग से नर प्रभावित नहीं होगा क्योंकि सहवास नैसर्गिक नहीं होता ।
8. कृत्रिम गर्भाधान करने से पहले जननेन्द्रियों का परीक्षण किया जाता है जिससे नर या मादा में बांझपन समस्या का पता लगाया जा सकता है।
8. कृत्रिम गर्भाधान करने से पहले जननेन्द्रियों का परीक्षण किया जाता है जिससे नर या मादा में बांझपन समस्या का पता लगाया जा सकता है।
9. उन्नत सांड को चोट खाने या लंगड़ेपन के कारण मादा को गाभिन नहीं कर सकता, कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा इसके वीर्य का उपयोग किया जा सकता है।
10. कृत्रिम गर्भाधान द्वारा मादा की गर्भधारण क्षमता में वृद्धि होती है क्योंकि कृत्रिम गर्भाधान अत्तिहिंमीकृत प्रणाली से 24 घन्टे उपलब्ध रहता है।
11. इस विधि के द्वारा प्रजनन व संतति परीक्षण का अभिलेख रखकर शोधकार्य किये जा सकते है।
12. गर्मी में आई मादा के लिए गर्भाधान हेतु सांड को तलाश नहीं करना पड़ता। हिमकृति वीर्यं हर समय उपलब्ध होता है।
13. चोट खाई लूली लंगडी मादा जो नैसर्गिता अभिजनन से गर्भित नहीं किये जा सकता परन्तु कृत्रिम गर्भाधान गर्भधारण कराया जा सकता है।
14. इच्छित प्रजाति, गुणों वाले सांड़ जैसे कि अधिक दूध उत्पादक अथवा कृषि हेतु शक्तिशाली अथवा दोहरे उद्देश्य प्रजाति से गर्भित करा कर इच्छित संतति प्राप्त कर सकते है ।
15. यह नैसर्गिक अभिजनन से अधिक सस्ता है, क्योंकि उन्नत सांडों से नैसर्गिक अभिजनन हेतु आज जहां 100 से 150 रुपया प्रति सेवा व्यय करना पड़ता है, तथा स्वयं का श्रम व्यय अलग होता है, वही कृत्रिम गर्भाधान पद्धत्ति से प्रति 30 से 50 रुपये धनराशि व्यय करके द्वार पर ही सेवा उपलब्ध हो जाती है।
16. इस विधि से संकर प्रजाति या नयी प्रजाति तैयार की जा सकती है।
16. इस विधि से संकर प्रजाति या नयी प्रजाति तैयार की जा सकती है।
17. यह दुग्ध उत्पादन वृद्धि हेतु सर्वोत्तम साधन है क्योंकि संकर प्रजनन में प्राप्त बछिया जल्दी गर्मी पर आकर ढाई वर्ष में ब्या जाती है तथा मौ से अधिक दूध देती है।
कृत्रिम गर्भाधान की सफलता का आधार
1. पूर्ण प्रशिक्षित व योग्य कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता ।
2. कृत्रिम गर्भाधान उपकरण हिमकृत वीर्य आदि की उपलब्धता ।
2. कृत्रिम गर्भाधान उपकरण हिमकृत वीर्य आदि की उपलब्धता ।
3. मादा के ऋतुकाल का पूर्ण ज्ञान व जानकारी जो इन्सेमिनेटर को दी जानी है वह समय से दी गई है या नहीं।
4. पशुपालक को पशु का पूर्ण ध्यान देना व स्वाथ्य के प्रति समझ रखना।
5. पशु का प्रजनन रोगों से मुक्त तथा उसका स्वास्थ्य उन्नत होना, अर्थात पशु में यौन रोग न हो तथा उसका भार (प्रौढावस्था का 60 से 70 प्रतिशत भार ) एवं आहार व्यवस्था हो ।
मुख्य सुझाव
1. गर्मी के मध्य या अंतिम काल में कृत्रिम गर्भाधान करना से चाहिए।
2. पशुओं में अक्सर गर्मी सांयकाल 6 बजे से प्रातः 6 बजे 14, के मध्य आती है।
3. भैंस अधिकतर अगस्त से जनवरी तथा गाय अधिकतर जनवरी से अगस्त माह के मध्य गर्मी पर आती है वैसे उत्तम वैज्ञानिक ढंग से पालन पोषण से वर्ष भर में गर्मी में आ सकती है।
4. कृत्रिम गर्भाधान के तुरन्त उपरान्त पशुको मत दौड़ायें।
5. बच्चा देने के बाद से तीन माह के अन्दर पुनः गर्भित करायें।
6. कृत्रिम गर्भाधान के समय शांत वातावरण हो तथा पशु को तनाव मुक्त रखें।
6. कृत्रिम गर्भाधान के समय शांत वातावरण हो तथा पशु को तनाव मुक्त रखें।
7. कृत्रिम गर्भाधान करने के पहले व बाद में पशु को छाया में रखें।
8. पशु को सुबह व सायंकाल के वक्त ही गर्भधारण करवाएं।
प्रदेश की उन्नत गौ नस्लें
साहीवालः- इसका जन्म स्थान पश्चिमी पाकिस्तान के मांगी हैं। परन्तु उत्तरप्रदेश के चक्रगजरिया पशुधन प्रक्षेत्र लखनऊ में सरंक्षण दिया जा रहा है। इसका लंबा सिर, औसत आकार का | माथा, सग छोटे तथा मौटे, टांगें छोटी, अन पूर्ण विकसित व बड़े, रंग लाल या हल्का लाल तथा कभी-कभी सफेद धब्बे । उन्नत पोषण से 2700 से 3200 कि.ग्रा. एक ब्यांत में दुग्ध की मात्रा तथा अधिकतम 16 से 20 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है।
क्या करें
1. आवास हवादार कायादार व भूमि समतल हो
2. हरा चारा के साथ संतुलित आहार दें।
3. समय-समय पर संक्रमण रोग से बचाव हेतु टीका लगवायें। 3. ज्यादा दूध देने वाले पशु को दिन में तीन बार दुहा जाए।
क्या न करें
1. गर्भावस्था के अन्तिम तीन महीने आहार एक बार ना देकर विभाजित करके दें।
1. गंदा पानी प्रयोग न करें स्वच्छ व साफ पानी ही उपयोग किया जाए।
3. दुधारू पशु को दौड़ाये या भगाए नहीं, इससे अयन में चोट लग सकती है।
1. बच्चा देने के तुरन्त बाद ठंडे पानी से नहलाना व पानी पिलाना हानिकारक है।
1. गंदा पानी प्रयोग न करें स्वच्छ व साफ पानी ही उपयोग किया जाए।
3. दुधारू पशु को दौड़ाये या भगाए नहीं, इससे अयन में चोट लग सकती है।
1. बच्चा देने के तुरन्त बाद ठंडे पानी से नहलाना व पानी पिलाना हानिकारक है।
पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान के बारे में जानकारी
कृत्रिम गर्भाधान के लाभ
पशुओं में गर्मी आने के लक्षण
गर्भधान का उचित समय
गर्भधान क्यों आवश्यक है
कृत्रिम गर्भाधान बारे जानकारी
कृत्रिम गर्भाधान प्रणाली में उच्चकोटि के नर पशु के वीर्य को एकत्र करके प्रयोगशाला में पूर्णरूप से जांच व परख के बाद तरल नाइट्रोजन में हिमकृत रूप में संरक्षित किया जाता है जब मादा पशु गर्मी में आती है तब उस हिमकृत वीर्य को तरल अवस्था में लाकर गर्भाधान यन्त्र द्वारा मादा की जननेन्द्रिय में सेचित किया जाता है जबकि प्राकृतिक तौर पर नर समागम द्वारा गर्मी में आई मादा की योनि में वीर्य सेचन करता है। अतः वास्तव में कृत्रिम गर्भाधान प्रक्रिया में कुछ भी कृत्रिम नहीं होता । केवल वीर्य सेचन का कार्य प्राकृतिक समागम की बजाय गर्भाधान यन्त्र द्वारा किया जाता है। गर्भाधान की यह विधि एक वैज्ञानिक तकनीक है। पशुपालन ने व्यवसाय में कृत्रिम गर्भाधान विधि ने एक बहुत क्रान्तिकारी परिवर्तन किया है। इस विधि से पशुओं की नस्ल सुधार व दुग्ध उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। पशुधन के विकास हेतु अब तक इस विधि से अच्छी कोई अन्य तकनीक नहीं है। वास्तव में नस्ल सुधार हेतू इस अति उपयोगी वैज्ञानिक निधि का कोई विकल्प नहीं है।
कृत्रिम गर्भाधान के लाभ
1. इस विधि द्वारा उच्च गुणवत्ता वाले साण्ड से अधिक से अधिक मादा पशुओं को गर्भित किया जा सकता है जो कि नस्ल सुधार एवम् दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी का बहुत अच्छा साधन है।
2. उच्च गुणवत्ता वाले साण्ड के वीर्य को एकत्र करके, हिमकृत रूप से दूर दराज के इलाकों में भी भेजा जा सकता है। यहाँ तक कि हिमकृत वीर्य दूसरे देशों से भी मँगवाया / भेजा जा सकता है जिससे मनचाहे साण्ड की सन्तान विश्व के किसी भी देश में पैदा की जा सकती है। उच्च गुणवता के साण्ड हर स्थान पर उपलब्ध नहीं होते लेकिन उनका हिमकृत वीर्य किसी भी स्थान पर उपलब्ध करवाया जा सकता है।
3. साण्ड के वीर्य को एकत्र करके, उसे प्रयोगशाला में विभिन्न बीमारियों व गुणवता के लिए जाँचा जाता है इस प्रकार प्राकृतिक समागम द्वारा फैलने वाली बीमारियों से मादा को बचाया जा सकता है।
4. पशुपालक को साण्ड के पालने व रखरखाव का खर्च वहन नहीं करना पड़ता है। इसके अलावा हर 3-4 वर्ष बाद साण्ड को बदलकर वंशानुगत बीमारियों को रोका जा सकता है व इन ब्रीडिंग का खतरा नहीं होता। नजदीकी रिश्ते के हिमकृत वीर्य की उपलब्धता के कारण अलग-अलग साण्डों के वीर्य द्वारा गर्भाधान करवाया जा सकता है।
5. खूंखार साण्ड, मादा पशु को चोट पहुँचा सकते हैं, लेकिन कृत्रिम गर्भाधान करवाने में इस प्रकार का कोई खतरा नहीं होता ।
6. गाँवों में अकसर साण्डों की संख्या सीमित होती है, यदि एक गाँव में एक ही दिन में 50-60 मादा पशु गर्मी में आ जायें तो उन सभी को प्राकृतिक समागम द्वारा गर्भित नहीं करवाया जा सकता। यदि मादा पशु का गर्मी में आने का चक्र छूट जाये तो पशुपालक को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है जबकि कृत्रिम गर्भाधान द्वारा सभी पशुओं को गर्भित करवाया जा सकता है।
7. भारी व बड़े आकार के साण्ड बछड़ियों को प्राकृतिक समागम के समय चोट पहुँचा सकते हैं लेकिन कृत्रिम गर्भाधान विधि में ऐसा कोई खतरा नहीं होता ।
8. बहुत अच्छी नस्ल के साण्ड को यदि चोट लग जाये या किसी कारण से समागम करने में असमर्थ हो जाए तो उसका वीर्य हिमकृत करके कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा प्रयोग में लाया जा सकता है।
9. कृत्रिम गर्भाधान करने से पहले पशु चिकित्सक द्वारा मादा पशु की अच्छी तरह से जाँच की जाती है। कभी-कभी गर्भित पशु गर्मी के लक्षण देने लग जाते हैं, ऐसे पशुओं को साण्ड के पास ले जाया जाये तो साण्ड समागम कर लेता है जिससे गर्भ गिर भी सकता है।
10. कृत्रिम गर्भाधान का रिकार्ड रखना बहुत आसान होता है अतः पशु का पूरा वंशानुगत रिकार्ड रखा जा सकता है।
पशुओं में गर्मी आने के लक्षण
गाय या भैंस जब भी गर्मी में आती है तो जोर जोर से रंभाने लगती हैं। दूसरे पशुओं के उपर कूदती हैं व दूसरे पशुओं को अपने ऊपर चढ़ने देती है। मादा पशु के खानपान में कमी आ जाती है व बार बार मूत्र करती हैं। इसके अलावा योनि का रंग लाल हो जाता है, एक लेसदार द्रव योनि से निकलने लगता है व मादा बार बार अपनी पूंछ को हिलाती है।
यदि ऐसे समय पर गाय/भैंस को साण्ड / झोटे के पास ले जाया जाये तो पशु शांत होकर खड़ा हो जाता है व समागम को तैयार रहता है। पशुओं में गर्मी के लक्षणों की शुरूआत ज्यादातर सुबह के समय होती है। यदि सही समय पर बहड़ियों / झोटियों में गर्भाधान न करवाया जाये तो पहले ब्यांत तक उसकी आयु ज्यादा होगी। इसी तरह यदि गर्मी के लक्षण समय पर न देखे जायें तो एक ब्यांत से दूसरे ब्यांत के बीच अन्तर बढ़ जाता है व इस प्रकार पशुपालक को बहुत आर्थिक नुकसान होता है। कुछ भैंसों में गूंगा आमा / शांत गर्मी होती है। ऐसे पशुओं में गर्मी के लक्षण स्पष्ट नहीं होते। इन पशुओं को प्रातःकाल और देर शाम को जरूर देखें। ऐसे पशु जब बैठते हैं तो योनि से लेसदार गाढ़ा तरल पदार्थ चिपका हुआ मिलता है या निकलता हुआ दिखाई देता है।
गर्भाधान का उचित समय
मादा पशु में गर्मी के लक्षण शुरू होने के लगभग 12 घंटे पश्चात् कृत्रिम गर्भाधान करवाना उचित होता है। यदि पशु में गर्मी के लक्षण सुबह दिखाई दें तो शाम को कृत्रिम गर्भाधान करवाया जाये और यदि शाम को गर्मी के लक्षण दिखाई दें तो अगले दिन सुबह कृत्रिम गर्भाधान करवाना उचित होता है। कुछ पशुओं में 3-4 दिनों तक गर्मी के लक्षण दिखाई देते हैं ऐसे पशुओं को लगातार 2-3 दिनों तक कृत्रिम गर्भाधान करवाएं। ग्रीष्म काल में भैंसे गर्मी में कम आती हैं इसलिए भैंसों के ब्यांत का मौसम भी गर्मियों के बाद शुरू होता है। गर्मियों में भैंसों को गर्मी में लाने के लिए विशेष उपचार किया जाता है तथा कृत्रिम गर्भाधान द्वारा गर्भित करवाया जाता है। इस प्रकार विशेष उपचार द्वारा पशुओं को समयानुसार गर्भित करवाकर गर्मी के दिनों में दुग्ध उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, जिससे पशुपालकों को काफी लाभ हो सकता है।
कृत्रिम गर्भाधान क्यों?
हमारे देश की जनसंख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है तथा आवासीय क्षेत्र तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस प्रकार पशुओं के लिए खुली चरागाह लगभग समाप्त हो चुकी है। पहले पशुओं को खुले चरागाहों में चराया जाता था। उनके साथ साण्ड / झोटे भी रखे जाते थे तथा चारे की समस्या नहीं होती थी। लेकिन आज के दौर में पशुओं को लगभग खूंटे से बाँधकर ही घरों / डेयरियों में रखा जाता है। जिससे साण्ड / झोटे रखना पशुपालक के लिए अनावश्यक बोझ बन जाता है।
कृत्रिम गर्भाधान विधि का विकास होने के साथ झोटे / साण्ड रखने की जरूरत नहीं होती। झोटे / साण्ड की प्रोजनी टैस्टिंग केवल कृत्रिम गर्भाधान द्वारा ही संभव है जिससे हम झोटे / साण्ड की गुणवत्ता की जांच कर सकते हैं।
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