अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस | International day of Rural Women Hindi - Blog 129

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अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस’ (International Rural Women’s Day) 15 अक्टूबर को विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है ।

यह दिन ग्रामीण परिवारों और समुदायों की स्थिरता सुनिश्चित करने, ग्रामीण आजीविका और समग्र कल्याण में सुधार करने में महिलाओं और लड़कियों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानने के उद्देश्य से मनाया जाता है ।


अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस
2022 की थीम - "सभी के लिए अच्छा भोजन पैदा कर रही ग्रामीण महिलाएं" है  
2021 की थीम -“सभी के लिए अच्छे भोजन की खेती कर रही ग्रामीण महिलाएं” है |

अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस (15 अक्टूबर)
2021 का विषय: 'रुरल वुमेन कल्टीवेटिंग गुड फूड फॉर ऑल' (Rural Women Cultivating Good Food for All)

महत्वपूर्ण तथ्य: कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ाने, खाद्य सुरक्षा में सुधार और ग्रामीण गरीबी उन्मूलन में स्थानीय महिलाओं सहित ग्रामीण महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका और योगदान को मान्यता देने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2007 में इस दिवस की स्थापना की गई थी। पहली बार यह दिवस 15 अक्टूबर, 2008 को मनाया गया था।

विकासशील देशों में कृषि श्रम शक्ति में महिलाओं की औसतन 40 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी है।

अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस कब और क्यों मनाया जाता है
अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस कब और क्यों मनाया जाता है, जाने इसके बारे में सबकुछ

विश्वभर में प्रत्येक साल 15 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया जाता है. विकासशील देशों में करीब 43 फीसदी महिलाएँ कृषि श्रमिक के रूप में कार्य करती हैं तथा खाद्य क्षेत्र से जुड़ी रहती हैं.

अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस का मुख्य उद्देश्य कृषि विकास, ग्रामीण विकास, खाद्य सुरक्षा तथा ग्रामीण गरीबी उन्मूलन में ग्रामीण महिलाओं के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करना हैं. इसका अन्य उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका और उनके योगदान को सम्मानित करना भी है.

अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस 2019 का विषय ‘Rural Women and Girls Building Climate Resilience’ है. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने ग्रामीण महिलाओं तथा लड़कियों के अधिकारों की रक्षा की अपील की है. उन्होंने ने सभी देशों के लिए समृद्ध, न्यायसंगत तथा शांतिपूर्ण भविष्य बनाने हेतु ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों के सशक्तीकरण को जरूरी बताया है.

अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस के बारे में:

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 अक्टूबर 2008 को पहला अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया था. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिवस को मनाकर ग्रामीण महिलाओं की भूमिका को सम्मानित करने का निर्णय लिया था. संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस दिवस को मनाने की घोषणा 18 दिसंबर 2007 को की गई थी. ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं और लड़कियां बहु-आयामी गरीबी से पीड़ित हैं.

पृष्ठभूमि

ग्रामीण महिलाएं विकसित तथा विकासशील देशों की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में अहम भूमिका निभाती हैं. केंद्र सरकार ने ग्रामीण महिलाओं को सशक्त करने हेतु कई योजनाएं शुरू की हैं. इनमें प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना भी शामिल है. यह योजना भारत के गरीब परिवारों की महिलाओं के चेहरों पर खुशी लाने के उद्देश्य से लाया गया था. यह योजना केंद्र सरकार द्वारा 1 मई 2016 को शुरू की गई थी. इस योजना के तहत गरीब महिलाओं को मुफ्त एलपीजी गैस कनेक्शन मिलेंगे.

आनंदधारा योजना ग्रामीण गरीबों हेतु साल 2012 में शुरू की गई एक गरीबी-उन्मूलन कार्यक्रम है जिसे महिला स्वयं सहायता समूहों के जरिए लागू कराया जाता है. ग्रामीण महिलाएँ जो अपने जीवनयापन हेतु कृषि और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहती हैं विश्व की लगभग एक चौथाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती हैं.


ग्रामीण महिलाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर साल 15 अक्टूबर को मनाया जाता है।  थीम ग्रामीण महिलाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2021 को “Rural women cultivating good food for all” विषय के तहत मनाया जाता है। मुख्य बिंदु यह दिन लैंगिक समानता पर केंद्रित है और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को सशक्त बनाने में मदद


ग्रामीण महिलाओं की कहानियां: इस गांव में रहती हैं सिर्फ महिलाएं, पुरुषों के घुसने पर भी रोक, कारण कर देगा हैरान

 International Day of Rural Women  2020 :  अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस प्रत्येक वर्ष 15 अक्टूबर को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। यह दिन ग्रामीण परिवारों और समुदायों की स्थिरता सुनिश्चित करने, ग्रामीण आजीविका और समग्र कल्याण में सुधार करने में महिलाओं और लड़कियों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानने के उद्देश्य से मनाया जाता है। भारत में, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, कृषि के क्षेत्र में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी बढ़ाने के लिए 2016 से राष्ट्रीय महिला किसान दिवस के रूप में मनाता है।

अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस 2020 की थीम : 

इन महिलाओं के संघर्षों, उनकी आवश्यकताओं और हमारे समाज में उनकी महत्वपूर्ण और महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस 2020  की थीम – “Building rural women’s resilience in the wake of COVID-19”  है।

इतिहास:

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 दिसंबर 2007 को इस दिन को मानयता दी और 2008 में यह पहली बार मनाया गया।

आज 'इंटरनेशनल डे आफ रूरल वुमन' है. यूनाइटेड नेशन्स की ओर से यह दिन 2008 से हर साल ग्रामीण महिलाओं के सम्मान में मनाया जाता है. चलिए यही सही, इस बहाने कम से कम हम देश में ग्रामीण महिलाओं के संघर्ष को याद तो कर ही लेते हैं. वरना घर-परिवार, खेती-किसानी से लेकर विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के श्रम का सम्मान तो दूर, गरिमापूर्ण व्यवहार भी कहां मिल पाता है? इस विमर्श से अलग हम आपको संघर्ष की एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आप भी ठेठ ग्रामीण महिला के हौसले को सलाम करेंगे.

तकरीबन 23 साल पहले जब जनका बाई उमरावन में ब्याह कर आईं, तो उनको लगा यह कहां आ गई. आसपास चारों ओर जंगल. शहर से दूर. पहुंचने के लिए न सड़क न कोई साधन, बुनियादी सुविधाओं का अभाव. पानी के लिए गांव से बाहर डेढ़ किलोमीटर दूर झिरी तक जाना पड़ता था. जबलपुर के एक अच्‍छे गांव से पन्ना जिले के पन्ना टाइगर रिजर्व से सटे इस गांव उमरावन में आ जाना जनका के लिए कोई सरल न था! रिश्तेदारों के कहने पर घरवालों ने यहीं शादी लगा दी, तो इसे ही उन्होंने अपने जीवन की नियति मान लिया.

थोड़ी-बहुत खेती-किसानी करते, जंगल से वनोपज लाते और उसी से घर चलता रहा. वक्त के साथ तीन बच्चे भी हो गए. दो लड़का एक लड़की. पर क्या जीवन ऐसे ही चलता रहता. अमूमन इसके बाद से ग्रामीण महिलाओं का जीवन घर-परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ से दब जाता है. पर जनका बाई के जीवन की असली कहानी तो यहीं से शुरू होती है.बच्चे बड़े होने के बाद ही जनका बाई को लगा कि उनको उनकी रुकी हुई पढ़ाई सबसे पहले शुरू करनी है. वह पढ़ी तो थीं, लेकिन आठवीं तक कर पाई थीं. यह बात उन्होंने अपने पति को बताई. पति कपूर​ सिंह गोंड को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी. किताबें लाई गईं और पढ़ाई शुरू हो गई. पहले दसवी और फिर बारहवीं. बारहवीं पास कर लेना कोई बड़ी उप​लब्धि नहीं है, लेकिन जिन परिस्थितियों में जनका बाई जैसी महिलाएं हौसला करके ऐसा कर पाती हैं, यह पढ़ाई उनके लिए कोई छोटी बात भी नहीं है.

दिन में मजदूरी करतीं, जंगल से लकड़ी लातीं, बच्चों को संभालतीं और पढ़ाई भी कर लेतीं. कई बार खेतों में काम करते-करते जो खाली वक्त मिल जाता, उसी में पढ़ लेतीं. पति साइकिल पर बैठाकर परीक्षा दिलाने ले जाते. जनका की यह पढ़ाई किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं.

लेकिन पढ़ाई करने से क्या होता है? पढ़ाई करने से जो होता है, उसे जनका बाई के काम से समझा जा सकता है. पढ़-लिखकर महिला कैसे अपने समाज में बदलाव लाती है? जनका बाई ने देखा कि उनके गांव में मूलभूत सुविधाएं ही नहीं हैं. उनको और बाकी महिलाओं को परेशान होना पड़ता है. एक बार जब उनके गांव में कलेक्टर साहब दौरे पर आए तो जनका बाई ने अपनी और गांव की परेशानियां सामने रखीं. जनका की बातों से कलेक्टर भी प्रभावित हुए और गांव में एक कुआं खुदवाया गया. इससे गांव की महिलाओं को पानी ढोने से राहत मिली. गांव में धीरे-धीरे विकास के कुछ और काम भी हुए.
 
पर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था. यह गांव एनएमडीसी की पन्ना डायमंड माइंस के अंतर्गत आता है. इस हीरा खदान से हीरा निकालने का मामला कोर्ट में गया, क्योंकि यह खदान पन्ना टाइगर रिजर्व में आने से विवादित हो गई. मामला था कि वहां से हीरा निकाला जा सकता है या नहीं, अंतत: सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि एनडीएमसी टाइगर रिजर्व में खनन कर सकती है. इसके बाद ही विवाद शुरू हुआ गांव उमरावन को लेकर. जिला प्रशासन गांव को हटाना चाहता था. यानी खदान चल सकती है, पर गांव के लोग नहीं रह सकते.

पन्ना टाइगर रिजर्व से हटाए जाने पर 10 लाख रुपए का एकमुश्त पैकेज देने का प्रावधान कि‍या गया. लोग मांग करते रहे कि विस्थापन की स्थिति में जमीन के बदले जमीन दी जानी चाहिए. प्रशासन मानता है कि एकमुश्त मुआवजा दे देना अधिक आसान काम है.

janka bai village broken house

उमरावन गांव को हटाने के लिए भी सरकार ने ऐसी ही कोशिश की. जनका बाई और दूसरे गांव वाले गांव छोड़ने के पक्ष में नहीं थे. उन्हें समझ आ रहा था कि गांव से हटकर दस लाख का मुआवजा ले लेना मतलब पूरा ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जाना. जब विवाद आगे बढ़ा और लोग हटने को तैयार नहीं हुए तो प्रशासन ने एक पर एक जन सुनवाई की. गांव में सुबह 5.30 पर जन सुनवाई हुई, यह बात आज तक समझ नहीं आ सकी कि‍ प्रशासन ने यह समय क्‍यों चुना? इस जन सुनवाई में गांव के लोगों के साथ दूसरे गांव के भी लोग थे. जमीन या मुआवजा राशि दो सवालों पर राय मांगी गई. चूंकि मुआवजा राशि के पक्ष में हाथ उठाने वाले 4 लोग अधिक थे, लिहाजा कलेक्टर ने उनके ही पक्ष में फैसला लिया.

जन सुनवाई में कुछ ऐसे परिवार भी थे, जो चार पीढ़ियों से वहां रह रहे हैं. वे गांव नहीं छोड़ना चाहते, लेकिन बहुमत मुआवजा लेकर गांव छोड़ने के पक्ष में है. गांव में तकरीबन सभी परिवारों के पास खेती की जमीन थी. गांव के 71 परिवारों में से 14 के पास वनाधिकार कानून के पट्टे भी हैं. कुल 108 परिवार थे. अंतत: प्रशासन सफल रहा.

लोगों को भगाने के लिए प्रशासन ने तमाम हथकंडे अपनाए. इस गांव की बिजली काट दी गई. जनका बाई बताती हैं कि हमारे गांव में कभी बिजली नहीं जाती थी, क्योंकि एनएमडीसी वाला इलाका था. वन विभाग चाहता था कि हम यहां से भाग जाएं, लेकिन हम अपना हक लिए बिना नहीं हटने वाले. गांव के कुछ लोग प्रशासन के साथ थे.

हमने प्रशासन से सूची निकलवाई. उससे पता चला कि गांव के मुखिया को एक करोड़ से ज्यादा का मुआवजा मिला है. बाकी लोगों को थोड़ा-थोड़ा पकड़ा दिया. हमने गांववालों को बताया कि देखो कैसे इसमें धांधली की जा रही है. जनका बाई इसमें एक कुशल नेतृत्वकर्ता की तरह सामने आईं, और अपने और गांववालों के अधिकारों के लिए लड़ीं.

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अंतत: 11 परिवारों को छोड़कर बाकी लोगों ने डरकर मुआवजा ले लिया. जनका बाई कहती हैं कि देखिए उन लोगों का क्या हुआ? जिनको पैसा मिला था, सब चौपट हो गया. किसी ने मोटरसाइकिल खरीद ली, किसी ने कुछ और में पूरा पैसा बर्बाद कर दिया. अब वह कंगाल हो गए हैं. इतने से पैसे में क्या होता है साहब? शहर में जाओ तो जरा सी जमीन नहीं मिलती है. हम चाहते थे कि हम सभी गांववालों को प्रशासन कहीं और एक साथ जमीन देकर दूसरी जगह बसा दे, लेकिन प्रशासन ने हमारी नहीं सुनी.

janka bai

उमरावन में अब केवल 11 परिवार बचे हैं. इन परिवारों में भी सभी लोगों को मुआवजा नहीं मिला है. जनका बाई कहती हैं कि 11 परिवार के 17 बच्चों को छोड़ दिया गया. यह बच्चे पात्र थे. उनका मेडिकल भी कराया है, उनके पास सभी दस्तावेज हैं, पर प्रशासन उनका मुआवजा नहीं दे रहा है. हम बिना मुआवजा लिए नहीं जाएंगे.

परिवार में एक मुखिया के पढ़ने-लिखने और संघर्ष करने का क्या असर होता है, जनका की इस कहानी से साफ नजर आता है. अपनी छोटी बहन हेमेन्द्र कुमारी की पढ़ाई के लिए भी उन्होंने जोर दिया. नतीजा उनकी छोटी बहन अब अध्यापक हैं, और उन्हें पच्चीस हजार रुपए की पगार मिलती है. जनका ने अपने बच्चों को भी अच्छा पढ़ाया-लिखाया है, उनकी लड़की बीएड कर रही है.









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