Cultivation Practice of Cotton crop | BT Cotton crop | Cotton Cultivation in India - Blog 119

Cultivation Practice of Cotton crop | BT Cotton crop | Cotton Cultivation in India
कपास की खेती कैसे करें
Cotton Farming in Hindi

Cotton (कपास)


Crop Name- Cotton ,कपास,  सफ़ेद सोना
Botnical Name- 
Crop Type- नगद फसल, मेहनती खेती, अधिक परिश्रम की आवश्यकता, 

Watering - High
Cultivation - Manual
Harvesting - Machine & Manual
Labour - Low
Sunlight - Low
pH Value - 6 - 8
Temperature - 15 - 35 °C
Fertilization - NPK @ 30:12:0 Kg/Acre 65kg/acre urea, SSP 75kg/acre
India Area- 6 मिलियन = तटीय इलाको
World -  
कपास को तीन श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है :-
1. लम्बे रेशा वाले कपास (Large Fibrous Cotton) = लम्बाई 5 सेंटीमीटर सर्वोतम, उच्च कोटि की कपड़ो /वस्तुओं में शामिल = यह किस्म भारत में दूसरे नंबर पर उगाई जाती है, तटीय हिस्सों में इसकी खेती को मुख्य रूप से किया जाता है, इसलिए यह समुद्री द्वीपीय कपास भी कहलाता है | कपास के कुल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 40% तक की होती है |
2. मध्य रेशा वाला कपास (Medium Fiber Cotton)= लम्बाई 3.5 से 5 सेंटीमीटर  मिश्रित कपास  इस तरह की किस्म का उत्पादन भारत के लगभग हर हिस्से में होता है | इस तरह के कपास का उत्पादन का लगभग 45% हिस्सा उत्पादित होता है |
3. छोटे रेशा वाला कपास  Short Fiber Cotton = लम्बाई 3.5 सेंटीमीटर  यह उत्तर भारत में अधिक उगाई जाने वाली किस्म है यह असम, हरियाणा, राजस्थान, त्रिपुरा, मणिपुर, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मेघालय में अधिक उगाई जाती है | उत्पादन की बात करे तो कपास के कुल उत्पादन का 15% उत्पादन इस राज्यों से होता है |


बीज की मात्रा :- खेत में कपास का बीज लगाना शाम के वक़्त ज्यादा अच्छा माना जाता है|
अमेरिकन हाइब्रिड कपास = 1.5 - 2 किलो प्रति एकड़ जबकि
अमेरिकन कपास = 3.5 - 4 किलो प्रति एकड़ 
देसी कपास की हाइब्रिड किस्म = 1.25 - 2 किलो प्रति एकड़ 
कपास की देसी किस्मों = 3 - 4  किलो प्रति एकड़ 
संकर बीटी - 450 gm एक बीघा
कपास की विकसित किस्मे (Developed Varieties of Cotton)



बीज उपचार :- - बीज जनित रोग से बचने के लिये बीज को 10 लीटर पानी में एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या ढाई ग्राम एग्रीमाइसिन के घोल में 8 से 10 घंटे तक भिगोकर सुखा लीजिये इसके बाद बोने के काम में लेवें।
- जहां पर जड़ गलन रोग का प्रकोप होता है, ट्राइकोड़मा हारजेनियम या सूडोमोनास फ्लूरोसेन्स जीव नियंत्रक से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें या रासायनिक फफूंदनाशी जैसे कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यू पी, 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या कार्बेन्डेजिम 50 डब्ल्यू पी से 2 ग्राम या थाईरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
कुदरती ढंग से रेशा हटाने के लिए बीजों को पूरी रात पानी में भिगोकर रखें, फिर अगले दिन गोबर और लकड़ी के बुरे या राख से बीजों को मसलें। फिर बिजाई से पहले बीजों को छांव में सुखाएं।
- रासायनिक ढंग बीज के रेशे पर निर्भर करता है। शुद्ध सल्फियूरिक एसिड (उदयोगिक ग्रेड) अमेरिकन कपास के लिए 400 ग्राम प्रति 4 किलो बीज और देसी कपास के लिए 300 ग्राम प्रति 3 किलो बीज को 2-3 मिनट के लिए मिक्स करें इससे बीजों का सारा रेशा उतर जायेगा। फिर बीजों वाले बर्तन में 10 लीटर पानी डालें और अच्छी तरह से हिलाकर पानी निकाल दें। बीजों को तीन बार सादे पानी से धोयें और फिर चूने वाले पानी (सोडियम बाइकार्बोनेट 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) से एक मिनट के लिए धोयें। फिर एक बार दोबारा धोयें और छांव में सुखाएं।
- रासायनिक ढंग के लिए धातु या लकड़ी के बर्तन का प्रयोग ना करें, बल्कि प्लास्टिक का बर्तन या मिट्टी के बने हुए घड़े का प्रयोग करें। इस क्रिया को करते समय दस्तानों का प्रयोग जरूर करें।
- रेशे रहित एक किलोग्राम नरमे के बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस या 4 ग्राम थायोमिथोक्साम 70 डब्ल्यू एस से उपचारित कर पत्ती रस चूसक हानिकारक कीट और पत्ती मरोड़ वायरस को कम किया जा सकता है।
असिंचित स्थितियों में कपास की बुवाई के लिये प्रति किलोग्राम बीज को 10 ग्राम एजेक्टोबेक्टर कल्चर से उपचारित कर बोने से पैदावार में वृद्धि होती है।

बुवाई का समय :-
१. गर्मी/नरमा कपास -  अप्रैल और मई के
२. वर्षा ऋतू कपास - 

बीज रोपाई का तरीका :- आयताकार के मुकाबले वर्गाकार बिजाई लाभदायक
देसी कपास की बिजाई - मशीन का प्रयोग करें 
हाइब्रिड या बी टी किस्मों - गड्ढे खोदकर बिजाई करें। 

फासला :-
अमेरिकन कपास के लिए सिंचित स्थिति में =75x15 सैं.मी. = 50-60*40
बारानी स्थिति में = 60x30 सैं.मी. 
देसी कपास के लिए सिंचित और बारानी स्थिति में = 40-60x30-35 सैं.मी.
संकर बीटी = 100*60-80 cm

 Land Preparation & Soil Health 
भूमि :- बलुई दोमट मिट्टी और काली मिट्टी को सबसे उपयुक्त , अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी
पी.एच. मान = 5.5 से 6 
पहाड़ी और रेतीली जगहों

भूमि की तैयारी :- 
रबी की फसल की कटाई के पश्चात् = मिट्टी पलटने वाले हल = एक गहरी जुताई 
दो या तीन बार =  हैरो चलाकर खेती की मिट्टी को बारीक व भुरभुरा बना ले

तापमान :- कम से कम 16 डिग्री सेंटीग्रेट
अंकुरण के लिए = 32 से 34 डिग्री सेंटीग्रेट
बढ़वार के लिए = 21 से 27 डिग्री सेंटीग्रेट
फलन लगते समय = 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट 
रातें = ठंडी होनी चाहिए।

वर्षा :- कम से कम 75 ​सेंटीमीटर वर्षा 
 125 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा का होना हानिकारक होता है।

 Crop Spray & fertilizer Specification
खाद एवं उर्वरक :-
 बुवाई से पहले खेत तैयार करते समय = 15-20 टन प्रति हैक्टेयर = 15 गाड़ी=अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 
अमेरिकन और बीटी किस्मों = नत्रजन  75 Kg तथा फास्फोरस 35 Kg प्रति हैक्टेयर
देशी किस्मों = नत्रजन  50 Kg और फास्फोरस 25 Kg प्रति हैक्टेयर 
पोटाश उर्वरक मिट्टी परीक्षण के आधार पर देवें,
फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा और नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई से पहले देवें। नत्रजन की शेष आधी मात्रा फूलों की कलियां बनते समय देवें।
जिंक सल्फेट /सल्फर की पर्याप्त मात्रा को मिलाकर खेत में छिड़काव 

हानिकारक किट एवं रोग और उनके रोकथाम :-
हानिकारक कीट -
हरा मच्छर- इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस एल की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करें। 
तेला - इसके रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल या थायोमिथाक्जाम 25 डब्लू जी की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करें। 
थ्रिप्स - थ्रिप्स की रोकथाम के लिए मिथाइल डेमेटान 25 ई सी 160 मि.ली. बुप्रोफेंज़िन 25 प्रतिशत एस सी 350 मि.ली. फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस सी 200-300 मि.ली., इमीडाक्लोप्रिड 70 प्रतिशत डब्लयू जी 10-30 मि.ली, थाइमैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयू जी 30 ग्राम में से किसी एक को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
सफेद मक्खी - इसकी रोकथाम के लिए एसेटामीप्रिड 4 ग्राम या एसीफेट 75 डब्लयू पी 800 ग्राम को प्रति 200 लीटर पानी या इमीडाक्लोप्रिड 40 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर या थाइमैथोक्सम 40 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
मिली बग - इसकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 25 ई सी 5 मि.ली. या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
चितकबरी सुंडी - अमेरिकन सुंडी - तंबाकू सुंडी - गुलाबी सुंडी :- इसकी रोकथाम के लिए क्यूनालफॉस 25 ई सी, 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर या इन्डोक्साकार्ब 14.5 एस सी, 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर या स्पाईनोसेड 45 एस सी, 0.33 मिलीलीटर प्रति लीटर या फ्लूबेन्डियामाइड 480 एस सी, 0.40 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से किसी एक कीटनाशी का छिड़काव करें|


हानिकारक रोग -
झुलसा रोग - इसकी रोकथाम के लिए काँपर ऑक्सीक्लोराइड का छिडकाव पौधे पर करना चाहिए। 
पौध अंगमारी रोग - इसकी रोकथाम के लिए एन्ट्राकाल या मेन्कोजेब 40 ग्राम/15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करे। 
अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग - इसकी रोकथाम के लिए टैबुकोनाज़ोल 1 मि.ली. या ट्राइफलोकसीट्रोबिन + टैबुकोनाज़ोल 0.6 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे बिजाई के 60वें, 90वें, और 120वें दिन बाद करें। यदि बीमारी खेत में दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कप्तान 500 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें या कार्बेनडाज़िम 12 प्रतिशत + मैनकोज़ेब 63 प्रतिशत डब्लयू पी 25 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर  छिड़काव करें।
जड़ गलन रोग - इसकी रोकथाम के लिए बीज को उपचारित करना आवश्यक होता है।

 Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण :- पहली निंदाई-गुड़ाई अंकुरण के = 15 से 20 दिन = कोल्पा या डोरा चलाकर खरपतवारनाशकों में पायरेटोब्रेक सोडियम (750 ग्रा/हे) या फ्लूक्लोरिन /पेन्डामेथेलिन 1 किग्रा. सक्रिय तत्व को बुवाई पूर्व उपयोग किया जा सकता है।

सिंचाई :- खेत में 15 दिन के अंतराल में पानी दे
कपास की फसल में 3-4 सिंचाई देनी आवश्यक होती है। पहली सिंचाई देर से करनी चाहिये। कपास की खेती को काफी कम पानी जरूरत होती हैं। अगर बारिश ज्यादा होती है तो इसे शुरूआती सिंचाई की जरूरत नही होती। लेकिन बारिश टाइम पर नही होने पर इसकी पहली सिंचाई लगभग 45 से 50 दिन बाद  चाहिए। गूलर व फूल आते समय खेत की सिंचाई अवश्य की जानी चाहिये।

 Harvesting & Storage
कपास की तुड़ाई :- सितम्बर से अक्टूबर माह
कपास की पहली तुड़ाई जब कपास की टिंडे 40 से 60 प्रतिशत खिल जाएँ तब करनी चाहिए। उसके बाद दूसरी तुड़ाई सभी टिंडे खिलने के बाद करते हैं। कपास की चुनाई का कार्य 3-4 बार में पूरा होता है।

उत्पादन :-
देशी कपास = 20 से 25 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर
संकर कपास = 25 से 32 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर
बी टी कपास = 30 से 50 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर 
कपास का बाजारी भाव 5 हजार प्रति क्विंटल
कपास की खेती  से कमाई  = 3-4 लाख प्रति हेक्टेयर
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बी.टी. कपास में रिफ्यूजिया का महत्व

भारत सरकार की अनुवांषिक अभियांत्रिकी अनुमोदन समिति (जी. ई.ए.सी.) की अनुशंसा के अनुसार कुल बीटी क्षेत्र का 20 प्रतिशत अथवा 5 कतारें (जो भी अधिक हो) मुख्य फसल के चारों उसी किस्म का नान बीटी वाला बीज लगाना (रिफ्यूजिया) लगाना अत्यंत आवष्यक हैं प्रत्येक बीटी किस्म के साथ उसका नान बीटी (120 ग्राम बीज) या अरहर का बीज उसी पैकेट के साथ आता हैं। बीटी किस्म के पौधों में बेसिलस थुरेनजेसिस नामक जीवाणु का जीन समाहित रहता जो कि एक विषैला प्रोटीन उत्पन्न करता हैं इस कारण इनमें डेन्डू छेदक कीटों से बचाव की क्षमता विकसित होती हैं। रिफ्यूजिया कतारे लगाने पर डेन्डू छेदक कीटों का प्रकोप उन तक ही सीमित रहता हैं और यहाँ उनका नियंत्रण आसान होता हैं। यदि रिफ्यूजिया नहीं लगाते तो डेन्डू छेदक कीटों में प्रतिरोधकता विकसित हो सकती हैं ऐसी स्थिति में बीटी किस्मों की सार्थकता नहीं रह जावेगी ।

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न्यू विल्ट (नया उकठा)


न्यू विल्ट से ग्रसित पौध पौधे में लक्षण उकठा (विल्ट) रोग की तरह दिखाई देते हैं पौधे के सूखने की गति तेज होती है। अचानक पूरा पौधा मुरझाकर सूख जाता है । एक ही स्थान पर दो पौधों में से एक पौधों का सूखना एवं दूसरा स्वस्थ होना इस रोग का मुख्य लक्षण है। इस रोग का प्रमुख कारण वातावरणीय तापमान में अचानक परिवर्तन, मृदा में नमी का असन्तुलन तथा पोशक तत्वों की असंतुलित मात्रा के कारण होता है। नया उकठा रोग के नियंत्रण के लिए यूरिया का 1.5 प्रतिशत घोल (100 लीटर पानी में 1500 ग्राम यूरिया) 1.5 से 2 लीटर घोल प्रति पौधा के हिसाब से पौधों की जड़ के पास रोग दिखने पर एवं 15 दिन के बाद डालें।

न्यू विल्ट से ग्रसित पौधा :

कपास की जैविक खेती करने से कपास में रसायनो का प्रभाव नहीं रहता है।
मिट्टी व पर्यावरण शुद्ध रहेगा,
एक्सपोर्ट क्वालिटी का होने के कारण बाजार भाव अच्छा (लगभग डेढ गुना )मिलेगा।
जैविक खेती करने के लिए निम्न किस्मों का उपयोग कर सकते है।
एनएच 651 (2003), सुरज (2002), पीकेवी 081 (1989), एलआरके 51 (1992) ,
ी.सी.एच. 32 , एच-8 , जी कॉट 10 , जेके.-4, जेके.-5 जवाहर ताप्ती,
बीजोपचार हेतु एजोस्पीरिलियम/ एजेटोबेक्टर , पी.एस.बी., ट्राइकोडर्मा माईकोराइजा उपयोग करे।
ोशक तत्व प्रबन्धन हेतु जैविक खादों / हरी खाद का प्रयोग करे।
डोरा कुल्पा चलाकर खरपतवार नियंत्राण करे।
कीट नियंत्रण हेतु नीम की खली को भूमि में उपयोग करे, नीम का तेल का छिड़काव करें , चने की इल्ली नियंत्रण हेतु एचएनपीवी एवं बीटी लिक्विड फामूलेशन का प्रयोग करे।

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