कपास में विल्ट रोग और जड़ सड़न रोग से बचाव की जानकारी | Wilt of Cotton crop - Blog 120

कपास में विल्ट रोग


पैरा विल्ट या पैरा विगलन, जिसे 'अचानक होने वाली कुम्हलाहट' के रूप में जाना जाता है, खेतों में बेतरतीब ढंग से फैलती है तथा असामयिक तौर पर होती हैं। इस विकार में स्वाभाविक तौर पर खेतों में कोई संरचनाएं नहीं होती हैं और इसे लेकर अक्सर लोगों में रोगाणुओं की वजह से होने वाली बीमारियों का भ्रम रहता है। मुख्य लक्षणों में पत्तियों की कुम्हलाहट और बदरंग होना शामिल है। पत्तियां का रंग हरिमाहीन से बदलकर पीतल जैसे रंग वाला या लाल हो सकता है और बाद में ऊतक सूखने लगते हैं। यह विकार विशेष रूप से ऐसे पौधों को प्रभावित करता है जो तेज़ी से बढ़ते हैं, जिनके बड़े छत्र होते हैं, और काफ़ी भारी बीजकोष होते हैं। बीजकोषों और पत्तियों का शुरुआती दौर में गिरना और बीजकोषों का शुरुआत में ही प्रस्फुटन हो सकता है। पौधे दुबारा ठीक हो सकते हैं, लेकिन उपज नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी।
ट्रिगर
पैरा विल्ट या पैरा विगलन एक दैहिक विकार है, जिसका मतलब है कि कोई भी कवक, बैक्टीरिया, विषाणु या ऐसा कुछ इसमें शामिल नहीं है। ये कपास के पौधों में अन्य बीमारियों या बलाघात की तरह नहीं होता, बल्कि कुछ ही घंटों में और विशिष्ट स्थानिक संरचनाओं के बिना ही विकसित हो जाता है। बेतरतीब ढंग से फैलना और अचानक हो जाना इसके विशिष्ट संकेत हैं। अब यह जाना जा चुका है कि इस विकार का कारण है मूसलधार बारिश या ज़रूरत से ज़्यादा सिंचाई के बाद जड़ के आसपास पानी का अचानक जमा होना, और उसके बाद गर्म तापमान और चिलचिलाती धूप होना। इसमें पौधे की तेज़ वृद्धि और पोषक तत्वों का असंतुलन भी शामिल है। चिकनी मिट्टी या ख़राब जल निकासी वाली मिट्टी पौधों में इस विकार की संभावना को बढ़ाता है।

जैविक नियंत्रण
पैरा विल्ट के लिए कोई जैविक नियंत्रण वाले उपाय नहीं हैं। इस विकार से बचने के लिए, आवश्यक है कि सिंचाई और कपास के पौधों के उर्वरण को समायोजित किया जाए और मिट्टी से जल निकासी की अच्छी योजना बनायें।

रासायनिक नियंत्रण
यदि उपलब्ध हो, तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाएं। पैरा विल्ट के लिए कोई रासायनिक उपचार नहीं हैं। परंतु, आप जल निकासी प्रणाली के माध्यम से अधिक पानी को निकालने से शुरुआत कर सकते हैं। इसके बाद, 1 लीटर पानी में 15 ग्राम यूरिया, 15 ग्राम म्यूरेट पोटाश और 2 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड लेकर एक घोल तैयार करें। पौधे के जड़ वाली जगह के आसपास 100-150 मिलीलीटर यह घोल डालें। यह घोल पौधे को तत्काल पोषक तत्व प्रदान करता है और कवकनाशक फफूंद संक्रमण को रोकता है।

तुरंत जानिए कि क्या करना चाहिए
निवारक उपाय
ऐसी क़िस्मों या संकरों का रोपण करें जो पैरा विगलन के प्रति सहनशील हों.
जल भराव को रोकने के लिए खेतों की अच्छी जल निकासी के प्रति आश्वस्त हो लें.
एक विशिष्ट बढ़त की अवस्था और/या शुष्क स्थितियों के कारण जब तक अतिआवश्यक न हो बहुत ज़्यादा या बहुत बार सिंचाई न करें.
फ़सलों की नियमित निगरानी करें, विशेष रूप से जब भारी बारिश के बाद उच्च तापमान और चिलचिलाती धूप हो.
अत्यधिक बढ़त से बचने के लिए अधिक मात्रा में उर्वरण न करें (जैसे बड़े छत्र और भारी बीजकोष).
रोग के कारणों (भारी बारिश और धूप) से बचने के लिए बुवाई की तिथियों में बदलाव करें।.


पौधे में लक्षण उकठा (विल्ट) रोग की तरह दिखाई देते हैं पौधे के सूखने की गति तेज होती है। अचानक पूरा पौधा मुरझाकर सूख जाता है । एक ही स्थान पर दो पौधों में से एक पौधों का सूखना एवं दूसरा स्वस्थ होना इस रोग का मुख्य लक्षण है। इस रोग का प्रमुख कारण वातावरणीय तापमान में अचानक परिवर्तन, मृदा में नमी का असन्तुलन तथा पोशक तत्वों की असंतुलित मात्रा के कारण होता है। नया उकठा रोग के नियंत्रण के लिए यूरिया का 1.5 प्रतिशत घोल (100 लीटर पानी में 1500 ग्राम यूरिया) 1.5 से 2 लीटर घोल प्रति पौधा के हिसाब से पौधों की जड़ के पास रोग दिखने पर एवं 15 दिन के बाद डालें।

न्यू विल्ट से ग्रसित पौधा :
 कपास की जैविक खेती  करने से कपास में रसायनो का प्रभाव नहीं रहता है।
 मिट्टी व पर्यावरण शुद्ध रहेगा,
 एक्सपोर्ट क्वालिटी का होने के कारण बाजार भाव  अच्छा (लगभग डेढ गुना )मिलेगा।
 जैविक खेती करने के लिए  निम्न किस्मों का उपयोग कर सकते है।
 एनएच 651 (2003), सुरज (2002), पीकेवी 081 (1989), एलआरके 51 (1992) ,
 डी.सी.एच. 32 , एच-8 , जी कॉट 10 , जेके.-4, जेके.-5 जवाहर ताप्ती,
 बीजोपचार हेतु  एजोस्पीरिलियम/ एजेटोबेक्टर , पी.एस.बी., ट्राइकोडर्मा  माईकोराइजा उपयोग करे।
 पोशक तत्व प्रबन्धन हेतु जैविक खादों / हरी खाद का प्रयोग करे।
 डोरा कुल्पा चलाकर खरपतवार नियंत्राण करे।
 कीट नियंत्रण हेतु नीम की खली को भूमि में उपयोग करे, नीम का तेल का छिड़काव करें , चने की इल्ली नियंत्रण हेतु एचएनपीवी एवं बीटी लिक्विड फामूलेशन का प्रयोग करे।

यह समस्या पौधे को पूर्ण मात्रा में पोषक तत्व न मिलने के कारण होती है। ऐसे में दो ग्राम कोबाल्ट क्लोराइट को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। उन्होंने बताया कि फसल में फसल अवस्था में पोटेशियम नाइट्रेट का पानी में घोल बनाकर कपास पर छिड़काव करना चाहिए।
कृषि विशेषज्ञों ने प्राथमिक तौर पर फसलों में बाविस्टीन 20 ग्राम, मेंकोजेब 30 ग्राम, 15 लीटर पानी में मिलाकर जड़ों में टोवा देने को कहा। किसानों को बोर्डों मिक्सर घोल (1 किलो निला थोथा एवं 1 किलो बुझा चुना को 15 लीटर पानी में मिलाकर) निर्धारित मात्रा में बनाकर टोवा देने एवं मिश्रण का घोल बनाने के लिए प्लास्टिक या मिट्टी के बर्तनों के उपयोग करने की सलाह दी।
कपास में नया उखटा (पैरा विल्ट) की रोकथाम के लिए यूरिया का 1.5 प्रतिशत घोल (100 लीटर पानी में 1500 ग्राम यूरिया) 150-200 मिली घोल प्रति पौधा के हिसाब से पौधों की जड़ के पास रोग दिखने पर दें। एवं 15 दिन के बाद पुनः डालें।


कपास में कौन सी दवा का छिड़काव करें?
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बी.टी. कपास में रिफ्यूजिया का महत्व
भारत सरकार की अनुवांषिक अभियांत्रिकी अनुमोदन समिति (जी. ई.ए.सी.) की अनुशंसा के अनुसार कुल बीटी क्षेत्र का 20 प्रतिशत अथवा 5 कतारें (जो भी अधिक हो) मुख्य फसल के चारों उसी किस्म का नान बीटी वाला बीज लगाना (रिफ्यूजिया) लगाना अत्यंत आवष्यक हैं प्रत्येक बीटी किस्म के साथ उसका नान बीटी (120 ग्राम बीज) या अरहर का बीज उसी पैकेट के साथ आता हैं।

बीटी किस्म के पौधों में बेसिलस थुरेनजेसिस नामक जीवाणु का जीन समाहित रहता जो कि एक विषैला प्रोटीन उत्पन्न करता हैं इस कारण इनमें डेन्डू छेदक कीटों से बचाव की क्षमता विकसित होती हैं। रिफ्यूजिया कतारे लगाने पर डेन्डू छेदक कीटों का प्रकोप उन तक ही सीमित रहता हैं और यहाँ उनका नियंत्रण आसान होता हैं। यदि रिफ्यूजिया नहीं लगाते तो डेन्डू छेदक कीटों में प्रतिरोधकता विकसित हो सकती हैं ऐसी स्थिति में बीटी किस्मों की सार्थकता नहीं रह जावेगी ।

Source : http://mpkrishi.mp.gov.in/hindisite_New/krishi_pranaliya_kharif_kapas_rog.aspx

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