गर्मियों / जायद में मूंग की खेती कैसे करें | Cultivation Practice of Green gram crop - Blog 115

जायद में मूंग की खेती कैसे करें

गर्मियों में मूंग की खेती कैसे करें


भारत में मूंग एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दालों में से एक है। मूंग गर्मी और खरीफ दोनों मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। ग्रीष्म मूंग की खेती गेहूं, चना, सरसों, मटर, आलू, जौ, अलसी आदि फसलों की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में की जा सकती है। मूंग के दानों में 24 प्रतिशत प्रोटीन, 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेटस तथा अल्प मात्रा में विटामिन-सी के साथ-साथ रेशे एवं लौह तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। मूंग में फलीया लगते समय एवं पकते समय सूखा मौसम और उच्च तापमान लाभदायक होता है। मूंग की जल्दी पकने वाली एवं उच्च तापमान को सहन करने वाली किस्मों के विकास के कारण जायद में मूंग की खेती लाभदायक हो रही है।

उन्नत किस्में : जायद मूंग की अधिक उपज देने वाली किस्मों का चयन करें. जैसे- आई पी एम -2-3 सत्या (एम एच-2-15), के-851, पूसा बैसाखीएस.एम.एल.-668, एस.-8, एस.-9, आर.एम.जी.-62, आर.एम.जी.-268, आर.एम.जी.-344 (धनू)आर.एम.जी.-492, पी.डी.एम.-11, गंगा-1 (जमनोत्री)गंगा-8 (गंगोत्री) एवं एमयूएम-2, ये किस्में 60-65 दिन में पककर 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है.

के 851- यह किस्म सभी प्रकार की मृदाओ में उगाई जा सकती है। जहां सिंचाई की उचित व्यवस्था हो। इस किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई वाले दानों का आकार मध्यम व चमकीले हरे होते है। ज्यादातर फलियां एक बार में पक जाती हैं। इसकी पैदावार 7.5-10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। टाइप 44 ( पूसा बैसाखी)- यह किस्म सिंचित इलाकों में गर्मियों के मौसम में उगाई जाती है। जो 65 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 6.25-8.75 प्रति हैक्टेयर है।

एम. एच.96 - 1 (मुस्कान)- यह किस्म की ग्रीष्म व खरीफ दोनों में उगाई जा सकती है। ग्रीष्म काल में फलियां एक साथ पकती है। अधिक पकने पर इनके दाने झड़ जाते है। इसकी पैदावार 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।

एस. एम. एल-668 इसके दाने मोटे, चमकीले व हरे व होते है। फलियां एक साथ पकती है। यह किस्म 65-70 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसकी उपज 8-9 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है।

आर. एम. जी. 344 - यह किस्म 62-72 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह खरीफ एवं जायद में बुआई के लिए। उपयुक्त है। इसका दाने चमकदार एवं मोटे होते है और उपज 7-9 क्विंटल प्रति हेक्टर है।

 

भूमि का चुनाव एवं तैयारी :- मूंग की खेती के लिए बलुई दोमट एवं दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। खेत में जल निकास का उचित प्रबन्धन होना चाहिए। क्षारीय एवं अम्लीय भूमि मूंग की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। जायद की फसल के लिये पलेवा देकर खेत की तैयारी करनी चाहिये। खेत तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके, एक जुताई हैरो से करने के बाद कल्टीवेटर से जुताई कर पाटा लगा देते है, जिससे भूमि समतल हो जाती है। और भूमि में नमी संरक्षित रहे। भूमिगत कीटों व दीमक की रोकथाम हेतु बुवाई से पूर्व क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से बुआई से पहले भूमि में मिलाकर जुताई कर देते है।

बीज उपचार :- बुआई के पहले बीज को कार्बोन्डाजिम 2 ग्राम या थाईरम 3 ग्राम या 4-5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। मूंग में बीजों को • राइजोबियम एवं पी. एस. बी. जीवाणु कल्चर द्वारा उपचारित करते हैं। राइजोबियम के कारण पौधे वातावरणीय नत्रजन का स्थिरीकरण करते है। पी. एस. बी. उपचार से फॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ती है। कल्चर से उपचारित करने हेतु सर्वप्रथम 600 मिली. पानी में 40-60 ग्राम गुड़ उबालते है। घोल के ठण्डा होने पर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से तीन पैकेट डालकर बीजों में अच्छी तरह से मिलाये। उपचार के बाद यह ध्यान रखना चाहिए कि बीजों को छाया में सुखाया जाता है।

खाद एवं उर्वरक : मूंग एक दलहनी फसल है अतः इसको कम नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। मूंग के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फॉस्फोरस, 20-30 किलोग्राम पोटाश एवं 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। सभी उर्वरकों को बुआई के समय डालना चाहिये । दो से तीन वर्ष के अन्तराल में 5 से 10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद प्रति हैक्टर देनी चाहिए।

बीज एवं बुआई - जायद मूंग की बीज दर सामान्यतः 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से रखते है । कतार से कतार की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखते है एवं बीज को 3-5 सेमी गहराई पर बोना चाहिये । जायद मूंग की बुवाई 15 फरवरी से 15 मार्च के मध्य करना उपयुक्त रहता है परंतु इसके बाद बुआई करने पर गर्म हवा तथा वर्षा के कारण फलियों को नुकसान होता हैं।

सिंचाई :- मूंग की फसल में फूल आने से पूर्व (30-35 दिन पर) तथा फलियों में दाना बनते समय (40-50 दिन पर) सिंचाई अत्यन्त आवश्यक है. तापमान एवं भूमि में नमी के अनुसार आवश्यकता होने पर अतिरिक्त सिंचाई देवें.

खरपतवार नियंत्रण

हाथ से निराई-गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण का सबसे अच्छा तरीका है । पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करने से खरपतवार नष्ट होने के साथ-साथ भूमि में वायु का भी अच्छा संचार होता है जो जड ग्रन्थियों में जीवाणुओं द्वारा वायु मण्डलीय नत्रजन स्थिरीकरण करने में सहायक होता है। रासायनिक विधि द्वारा नियंत्रण हेतु इमाजेथापायर + पेण्डीमेथालीन ( 2 प्रतिशत + 30 प्रतिशत) नामक दवा की 2400 मिली 600 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये हल्की मृदाओं में प्रयोग करना चहिये। भारी मृदाओं में पैन्डीमैथालीन 30 ई०सी० 3.3 लीटर को 800 - 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के दो तीन दिन के अन्दर (अंकुरण पूर्व) छिड़काव करें।

 

रोग एवं कीट नियंत्रण

दीमक : दीमक फसल के पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाता है। इसके नियंत्रण के लिए बुआई से पहले अन्तिम जुताई में क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत पाउडर 24 किलोग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से मृदा में मिलाते है या खड़ी फसल में क्लोरोपाइरीफोस 4 लीटर भारी मृदाओं में तथा 2.4 लीटर हल्की मृदाओं में प्रति हैक्टर की दर से सिंचाई के साथ प्रयोग करें।

 मोयला, सफेद मक्खी एवं हरा तेला : ये तीनों कीट मूंग की फसल में रस का चूषण कर अत्यधिक नुकसान पहुंचाते है। इनके नियंत्रण के लिए डाईमिथोएट 30 ईसी 1.2 लीटर प्रति प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

फली छेदक यह: कीट फलिया बनते समय अत्यधिक नुकसान करता है। इसके लिए नियंत्रण के लिए क्यूनालफॉस 25 ई.सी. 1.2 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

चित्ती जीवाणु रोग: इस बीमारी के लक्षण पत्तियों, तने एवं फलियों पर गहरे भूरे धब्बे के रूप में दिखाई देते है। इस रोग के नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 50 ग्राम या एग्रिमाइसीन 200 ग्राम को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

पीतशिरा मोजेक: इस रोग के लक्षण एक महीने की फसल होने पर फैले हुए पीले धब्बों के रूप में दिखाई देते है। इसके नियंत्रण के लिए डायमिथोएट 30 ई.सी. 1.2 ली. प्रति है. या मिथाइल डिमेटोन 1 मिली प्रति ली. पानी के हिसाब से सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए छिड़काव करना चाहिए क्योंकि यह रोग इस मक्खी के द्वारा फैलता है।

छाछ्या रोग : की रोकथाम हेतु प्रति हैक्टेयर ढाई किलो घुलनशील गंधक अथवा एक लिटर कैराथियॉन (0.1 प्रतिशत) के घोल का पहला छिड़काव रोग के लक्षण दिखाई देते ही एवं दूसरा छिड़काव 10 दिन के अन्तर पर करें.

 

फसल कटाई: मूंग की फलिया जब काली पड़ने लगे तथा पौधा सूखने लगते तब कटाई कर लेनी चाहिए, अधिक सूखने से फलियों में फटने की समस्या होने लगती है। वैसे वर्तमान में बोई जाने वाली किस्मों की फलियां एक साथ पकती है। खलिहान में 10-15 दिन फसल अच्छी तरह सुखाकर गहाई कर दाना निकालें.

उपज :- मूंग की उन्नत तकनीक अपनाकर जायद में 10-12 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन लिया जा सकता है।बीज के भण्डारण से पहले अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए। बीज में 8 से 10 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए। मूंग के भण्डारण में स्टोरेज बिन का प्रयोग करना चाहिए। सूखी नीम पत्ती का प्रयोग करने से भण्डारण में कीड़ों से सुरक्षा की जा सकती है।

1 एकड़ में कितनी मूंग होना चाहिए? - 8-10 किलो 

मूंग कौन से महीने में लगाना चाहिए?
मूंग के क्या भाव है?

Green gram, also known as mung bean, is a warm-season legume crop that is widely grown for its protein-rich seeds. Here are the steps to cultivate green gram crop:

Soil Preparation: Green gram grows best in well-drained, loamy soil that is rich in organic matter. The land should be plowed and harrowed to prepare a fine seedbed before sowing.

Seed Selection and Treatment: High-quality seeds should be selected for planting. Seeds can be treated with bio-fertilizers like Rhizobium and phosphorus solubilizing bacteria before planting. This will help in better germination and nutrient uptake by the plants.

Sowing: Sow the seeds at a depth of 3-5 cm and spacing of 10-15 cm between rows and 5-10 cm between plants. It is best to sow the seeds during the early summer season, around March-April or during monsoon season in June-July.

Watering: Green gram requires adequate moisture for optimum growth. Irrigate the field immediately after sowing and maintain adequate soil moisture throughout the growing season. Avoid overwatering, as it can lead to fungal diseases.

Fertilization: Green gram requires a moderate amount of nitrogen and phosphorus fertilizers. Apply fertilizers in split doses, i.e. half at the time of sowing and the remaining after the first flush of flowering.

Weed Control: Weed infestation can reduce the yield of green gram. Manual weeding or the use of herbicides can be done to control weeds.

Pest and Disease Control: Green gram is susceptible to pests and diseases like aphids, thrips, and powdery mildew. Regular scouting and use of bio-pesticides or insecticides can be used to control these problems.

Harvesting: Green gram plants mature in around 60-70 days after sowing. The pods can be harvested manually when they turn yellow or brown and the seeds inside them have hardened. The plants should be cut at the base and allowed to dry in the field for a few days.

Threshing and Storage: The pods can be threshed manually or by using a threshing machine. The seeds should be cleaned, dried, and stored in a dry and cool place to prevent insect and fungal infestation.

Green gram is a low-maintenance crop that can provide a good yield with proper care and management. 


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