जायद में उड़द की खेती | Cultivation Practice of Black gram crop - Blog 117
| जायद मौसम में उड़द की खेती |
उड़द की बुवाई के लिए मौसम अनुकूल, इसी महीने कर सकते हैं बुवाई
उड़द की बुवाई के लिए मौसम अनुकूल, इसी महीने कर सकते हैं बुवाई
भूमि का चुनाव – हल्की रेतीली दोमट या मध्यम प्रकार की भूमि जिसका पीएच 7-8 के मध्य हो व पानी की निकास की समुचित व्यवस्था हो वह उड़द के लिये उपयुक्त है।
बीज की मात्रा उपचार एवं बुआई 15-20 किग्रा बीज प्रति हे. ...
खाद एवं उर्वरक मृदा परीक्षण के उपरांत खाद एवं उर्वरक की सुझाई गई मात्रा का उपयोग करेें।
1 एकड़ में कितना उड़द होना चाहिए?
उड़द अकेले बोने पर 15 से 20 किग्रा बीज प्रति हैक्टेयर तथा मिश्रिम फसल के रूप में बोने पर 6-8 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से लेना चाहिए। उड़द की खेती के लिए बीज की मात्रा (Seed quantity for urad cultivation) खरीफ सीजन के लिए प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है. वहीं यदि आप गर्मी में उड़द की खेती कर रहे हैं, तो प्रति हेक्टेयर 20 से 25 किलोग्राम बीज की मात्रा लेना चाहिए
उड़द की उन्नत किस्में उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) के अनुसार, उड़द की पूरे उत्तर प्रदेश के लिए जारी पीला चित्रवर्ण अवरोधी (मोजैक) प्रजातियों में माश-479, आजाद उड़द-2, शेखर-2, आईपीयू 2-43, सुजाता, नरेन्द्र उड़द-1, आजाद उड़द-1, उत्तरा, प्रमुख किस्मों की बुवाई करें।
उडद बोने की विधि और समय :-
बसन्त ऋतु की फसल फरवरी-मार्च में तथा खरीफ ऋतु की फसल जून के अन्तिम सप्ताह या जुलाई के अन्तिम सप्ताह तक बुवाई कर देते है। चारे के लिए बोई गई फसल छिड़कवाँ विधि से बुवाई की जाती है तथा बीज उत्पादन हेतु पक्तियाँ में बुवाई अधिक लाभदायक होती है।
बीजोपचार
राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट (250 ग्रा0) प्रति 10 कि0ग्रा0 बीज के लिए पर्याप्त होता है। 50 ग्राम गुड़ या शक्कर को 1/2 लीटर जल में घोलकर उबालें व ठण्डा कर लें। ठण्डा हो जाने पर ही इस घोल में एक पैकेट राइजोबियम कल्चर मिला लें। बाल्टी में 10 कि0ग्रा0 बीज डाल कर अच्छी तरह से मिला लें ताकि कल्चर के लेप सभी बीजों पर चिपक जाएं उपचारित बीजों को 8-10 घंटे तक छाया में फेला देते हैं। उपचारित बीज को धूप में नहीं सुखाना चाहिए। बीज उपचार दोपहर में करें ताकि शाम को अथवा दूसरे दिन बुआई की जा सके। कवकनाशी या कीटनाशी आदि का प्रयोग करने पर राइजोबियम कल्चर की दुगनी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए तथा बीजोपचार कवकनाशी-कीटनाशी एवं राइजोबियम कल्चर के क्रम में ही करना चाहिए।
बुवाई की विधि
बुवाई पंक्तियों में ही सीड डिरल या देशी हल के पीछे नाई या चोंगा बॉंधकर करते हैं। ग्रीष्म ऋतु में अधिक तापक्रम के कारण फसल वृद्धि कम होती है। अतः बुवाई कम दूरी पर (पंक्ति से पंक्ति 20-25 से0मी0 तथा पौधा से पौधा 6-8 से0मी0) करना चाहिए तथा अधिक बीजदर का प्रयोग करना चाहिए।
अन्तर्वर्ती खेती
बसंतकालीन गन्ने के साथ अन्तर्वर्ती खेती करना अत्यन्त लाभदायक रहता है। 75 से.मी. की दूरी पर बोई गयी गन्ने की दो पंक्तियों के बीच की दूरी में उरद की दो पंक्ति आसानी से ली जा सकती है।ऐसा करने पर उरद के लिए अतिरिक्त उर्वरक की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सूरजमुखी व उरद की अन्तर्वर्ती खेती के लिए सूरजमुखी की दो पंक्तियों के बीच उरद की दो से तीन पंक्तियॉं लेना उत्तम रहता है।
उर्वरक
एकल फसल के लिए 10 कि0ग्रा0 नत्रजन, 30 कि0ग्रा0 फासफोरस एवं 20 कि0ग्रा0 सल्फर, प्रति हे0 की दर से अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए। अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन से सल्फर के प्रयोग से 11% अधिक उपज प्राप्त हुई है। नाइट्रोजन एवं फासफोरस की पूर्ति के लिए 75 कि0ग्रा डी0ए0पी0 तथा सल्फर की पूर्ति के लिए 100 कि0ग्रा0 जिप्सम प्रति है0 प्रयोग करना चाहिए। उर्वरकों को अन्तिम जुताई के समय ही बीज से 2-3 से0मी0 की गहराई व 3-4 से0मी0 साइड पर ही प्रयोग करना चाहिए।
सिंचाई
2-4 सिंचाई आवश्यकतानुसार। प्रथम सिंचाई पलेवा के रूप में तथा अन्य सिंचाईयाँ 15 से 20 दिन के अन्तराल में फसल की आवश्यकतानुसार करना चाहिए। पुष्पावस्था एवं दाने बनते समय खेत में उचित नमी होना अति आवश्यक है। स्प्रिंकलर सेट का उपयोग कर जल संवर्धन एवं फसल के उत्पादन में अप्रत्यासित बढ़त प्राप्त की जा सकती है।
खरपतवार नियंत्रण- फसल एवं खरपतवावर की प्रतिस्पर्धा की अंतिम अवधि बुवाई के 15-30 दिनों तक रहती है इस बीच निंदाई करने या डोरा चलाने से खरपतवार नष्ट हो जाते हंै साथ ही वायु का संचार होता है जिससे पौधों की ग्रंथियों में क्रियाशील जीवाणुओं द्वारा वायुमण्डलीय नत्रजन एकत्रित करने में सहायता मिलती है। रसायनिक नियंत्रण हेतु खेत तैयार करते समय, बोने से पहले पेंडीमिथालीन 3 ली. या एलाक्लोर (लासो) 2 ली. को 500 ली. पानी में मिलाकर बोने के बाद व अंकुरण से पूर्ण भूमि में फ्लेटफेन नोजल युक्त पम्प से मिलायें।
उन्नतशील जातियां – जवाहर उड़द-2, पीयू-30, पीयू-19, एलबीजी-20 का स्वस्थ, सुडौल, रोगरोधी बीज उपयोग करें।
रोग v कीट नियंत्रण – मूंग व उड़द की फसल में पानी पीला मोजेक, भभूतिया रोग व फली छेदक कीट का प्रकोप मुख्यत: होता है। पीला मोजेक एक विषाणु जनित रोग है, जो सफेद मक्खी नामक कीट द्वारा फैलता है। रोग कारक पौधे की पत्तियों में हरे पर्णिम के बीच-बीच में पीले दाग बनते हैं। जो आपस में मिलकर पूरी पत्ती को सुखा देते हैं। रोकथाम हेतु मिथाइल डिमेटान अथवा डाइमिथियेट की 300 मिली मात्रा का प्रति एकड़ छिड़काव करें। फली छेदक कीट, फलियों के दानों को नुकसान पहुंचाता है, इनके नियंत्रण हेतु क्विनाफॉस 400 मिली का प्रति एकड़ छिड़काव करें। भभूतिया रोग में पत्तियों पर सफेद चूर्ण की सतह दिखाई देती है, यह चूर्ण रोगकारक फफूंद के बीजाणु व कवकजाल होता है। पर्णदाग रोग में गहरे भूरे धब्बे पत्तियों पर बनते हैं जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं। दोनों रोगों के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम की 250 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के मान से छिड़काव करें।
कटाई एवं गहाई- जब 70-80 प्रतिशत फलियां पक जाने तक कटाई आरंभ करें। फसल को खलिहान मेंं 3-4 दिन तक सुखाकर गहाई करें। इस प्रकार उन्नत तरीके से खेती करने पर 8-10 क्विं. उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। जब 70-80 प्रतिशत फलियॉं पक जाएं, हंसिया से कटाई आरम्भ कर देना चाहिए। तत्पश्चात वण्डल बनाकर फसल को खलिहान में ले आते हैं। 3-4 दिन सुखाने के पश्चात बैलों की दायें चलाकर या थ्रेसर द्वारा भूसा से दाना अलग कर लेते हैं।
औसत उपज व लाभ
उक्त तरीके से ग्रीष्म कालीन उरद की खेती करने से 8-10 कुन्तल प्रति हे0 उपज प्राप्त होती है व लगभग आठ हजार से दस हजार रूपये प्रति हे0 की आय प्राप्त होती है।
भण्डारण : धूप में अच्छी तरह सुखाने के बाद जब दानों में नमी की मात्रा 8-9: या कम रह जाये, तभी फसल को भण्डारित करना चाहिए।
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