कैसे मिलता है जैविक खेती का सर्टिफिकेट | How to get a certificate of organic farming - Blog 76
कैसे मिलता है जैविक खेती का सर्टिफिकेट
How to get a certificate of organic farming
किसानों से कैमिकल और पेस्टिसाइड का कम इस्तेमाल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने कई बार सलाह दी है. आर्गेनिक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा देने पर उनकी सरकार लगातार जोर दे रही है. लेकिन ज्यादातर किसानों को इसे लेकर कोई ठोस जानकारी नहीं है कि आखिर आर्गेनिक खेती कैसे होगी. उसके लिए सर्टिफिकेट कहां से मिलेगा और इसका बाजार क्या है? ऐसी खेती के लिए जरूरी चीजें कहां से मिलेंगी. इन सवालों का जवाब अब एक ही जगह मिलेगा. सरकार ने किसानों की सहूलियत के लिए जैविक खेती पोर्टल (https://www.jaivikkheti.in/) विकसित किया है, जिसकी आप मदद ले सकते हैं. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक केंद्र सरकार परंपरागत खेती को बढ़ावा देने के लिए 2015-16 से 2019-20 तक 1632 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं l
सरकार ने आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए PKVY (Paramparagat Krishi Vikas Yojana) बनाई है. जिससे आपको प्राकृतिक खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये मिलेंगे l
केंद्र सरकार ने जैविक खेती प्रमोट करने के लिए सरकार ने परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) बनाई है. पीकेवीवाई (paramparagat krishi vikas yojana) के तहत तीन साल के लिए प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये की सहायता दी जा रही है.
- इसमें से किसानों को जैविक खाद, जैविक कीटनाशकों और वर्मी कंपोस्ट आदि खरीदने के लिए 31,000 रुपये (61 प्रतिशत) मिलता है.
- मिशन आर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ इस्टर्न रीजन के तहत किसानों को जैविक इनपुट खरीदने के लिए तीन साल में प्रति हेक्टेयर 7500 रुपये की मदद दी जा रही है.
- स्वायल हेल्थ मैनेजमेंट के तहत निजी एजेंसियों को नाबार्ड के जरिए प्रति यूनिट 63 लाख रुपये लागत सीमा पर 33 फीसदी आर्थिक मदद मिल रही है.
पोर्टल पर कुल रजिस्ट्रेशन: देश में 14.5 करोड़ किसान हैं, लेकिन जैविक खेती पोर्टल पर सिर्फ 2,10,327 ने रजिस्ट्रेशन करवाया है. इसके अलावा 7100 लोकल ग्रुप, 73 इनपुट सप्लायर, 889 जैविक प्रोडक्ट खरीदार और 2123 प्रोडक्ट रजिस्टर्ड हैं l
- जैविक खेती का बढ़ता दायरा :
भारत में जैविक खेती की तरफ ध्यान 2004-05 में गया, जब जैविक खेती पर राष्ट्रीय परियोजना (एनपीओएफ) की शुरूआत की गई. नेशनल सेंटर ऑफ आर्गेनिक फार्मिंग के मुताबिक 2003-04 में भारत में जैविक खेती सिर्फ 76,000 हेक्टेयर में हो रही थी जो 2009-10 में बढ़कर 10,85,648 हेक्टेयर हो गई.
उधर, केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय करीब 27.77 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती हो रही है. इनमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, यूपी, ओडिशा, कर्नाटक, झारखंड और असम अच्छा काम कर रहे हैं l
- आर्गेनिक फार्मिंग और उसका बाजार :
- Family Farmer Kisan Bazzar रसायन मुक्त जैविक खेती करने वाले किसानों द्वारा बनाया गया एक ऐसा बाज़ार है जन्हा किसान अपने फसल का दाम स्वयं तय करता है l
किसानो के इस समूह द्वारा जिला स्तर पर क्रय विक्रय सेंटर / आउटलेट प्रस्तावित है l
Orgnic फार्मिंग करने वाले किसानों को अपना बाजार बनाने की यह एक अच्छी पहल है l यान्हा किसान अपनी फसल का भाव तय करने के लिए स्वतंत्र है l
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- इंटरनेशनल कंपीटेंस सेंटर फॉर आर्गेनिक एग्रीकल्चर (ICCOA) के मुताबिक भारत में जैविक उत्पादों का बाजार 2020 तक 1.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आंकड़ा हासिल कर लेगा.
- केंद्रीय आयात निर्यात नियंत्रण बोर्ड (एपीडा-APEDA) के मुताबिक भारत ने 2017-18 में लगभग 1.70 मिलियन मीट्रिक टन प्रमाणिक जैविक उत्पाद पैदा किया.
- 2017-18 में हमने 4.58 लाख मीट्रिक आर्गेनिक उत्पाद एक्सपोर्ट किए. इससे देश को 3453.48 करोड़ रुपये मिले.
- भारत से जैविक उत्पादों के मुख्य आयातक अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा, स्विट्जरलैंड, आस्ट्रेलिया, इजरायल, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, न्यूजीलैंड और जापान हैं l
- कैसे मिलता है जैविक खेती का सर्टिफिकेट :
जैविक खेती प्रमाण पत्र लेने की एक प्रक्रिया है. इसके लिए आवेदन करना होता है. फीस देनी होती है. प्रमाण पत्र लेने से पहले मिट्टी, खाद, बीज, बोआई, सिंचाई, कीटनाशक, कटाई, पैकिंग और भंडारण सहित हर कदम पर जैविक सामग्री जरूरी है. यह साबित करने के लिए इस्तेमाल की गई सामग्री का रिकॉर्ड रखना होता है. इस रिकॉर्ड के प्रमाणिकता की जांच होती है. उसके बाद ही खेत व उपज को जैविक होने का सर्टिफिकेट मिलता है. इसे हासिल करने के बाद ही किसी उत्पाद को ‘जैविक उत्पाद’ की औपचारिक घोषणा के साथ बेचा जा सकता है. एपिडा ने आर्गेनिक फूड की सैंपलिंग और एनालिसिस के लिए एपिडा ने 19 एजेंसियों को मान्यता दी है l
- योजनाओं का मूल्यांकन और लाभ का दावा :
केंद्र सरकार ने आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए चलाई जा रही अपनी योजनाओं के लाभ का मूल्यांकन करने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल एक्टेंशन मैनेजमेंट से एक अध्ययन करवाया है. इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, इसके सकारात्मक परिणाम हैं. उत्पादन लागत में 10 से 20 तक तत्काल कमी आती है. लागत में कमी के कारण आमदनी में 20-50 फीसदी तक वृद्धि होती है. जनजातीय, वर्षा सिंचित, पहाड़ी और दूरस्थ क्षेत्रों में जैविक क्षेत्र में वृद्धि की बहुत गुंजाइश है. इस रिर्पोट का जिक्र लोकसभा में एक सांसद के सवाल के जवाब में किया गया है.
मध्य प्रदेश में आर्गेनिक खेती का सबसे ज्यादा रकबा है. यहां के कृषि विभाग ने पारंपरिक खेती के लाभ बताए हैं.
- भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृध्दि हो जाती है. सिंचाई अंतराल में वृध्दि होती है. रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है. उत्पादकता में वृध्दि होती है.
- मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है. बीमारियों में कमी आती है l
- 100 फीसदी आर्गेनिक स्टेट
सिक्किम ने खुद को जनवरी 2016 में ही 100 फीसदी एग्रीकल्चर स्टेट घोषित कर दिया था. उसने रासायनिक खादों और कीटनाशकों को चरणबद्ध तरीके से हटा दिया. एपीडा (APEDA) के मुताबिक पूर्वोत्तर के इस छोटे से प्रदेश ने अपनी 76 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि को प्रमाणिक तौर पर जैविक कृषि क्षेत्र में बदल दिया है.
इस राज्य ने यह खिताब यूं ही नहीं पाया है. उसने सिक्किम राज्य जैविक बोर्ड का गठन किया. सिक्किम आर्गेनिक मिशन बनाया. आर्गेनिक फार्म स्कूल बनाए. ‘बायो विलेज’ बनाए. वर्ष 2006-2007 आते-आते केंद्र सरकार से मिलने वाला रायानिक खाद का कोटा लेना बंद कर दिया. बदले में किसानों को जैविक खाद देना शुरू किया. किसानों को जैविक बीज-खाद उत्पादन के लिए प्रेरित किया l
- जैविक खेती, किसानों की चिंता और सरकारी तंत्र के दावे :
सरकार आर्गेनिक खेती करने की अपील भले ही कर रही हो लेकिन किसानों को यह डर है कि अगर हम रासायनिक खादों का इस्तेमाल बंद कर देंगे तो प्रोडक्शन घट जाएगा. यह चिंता कुछ कृषि वैज्ञानिकों की भी है. दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD) ने भारत व चीन में किए गए अध्ययनों के आधार पर इस बात की पुष्टि की है कि जैविक खेती अपनाने से किसानों की आय में काफी बढ़ोत्तरी होती है. प्रमाणिक जैविक उत्पाद का बाजार में अच्छा दाम प्राप्त किया जा सकता है. नेशनल सेंटर ऑफ आर्गेनिक फार्मिंग ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात का दावा किया है l
- रासायनिक खाद और बंजर होती धरती! :
सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट) की स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2017 रिपोर्ट के मुताबिक, देश की करीब 30 प्रतिशत जमीन खराब या बंजर होने की कगार पर है. यह कृषि के लिए मूलभूत खतरा है. राजस्थान, दिल्ली, गोवा, महाराष्ट्र, झारखंड, नागालैंड, त्रिपुरा और हिमाचल प्रदेश में 40 से 70 प्रतिशत जमीन बंजर बनने वाली है.
दरअसल, देश को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए यूरिया का इस्तेमाल हरित क्रांति (1965-66) के बाद शुरू हुआ. लेकिन कृषि क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि जिस यूरिया को हम उत्पादन बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं वह धीरे-धीरे हमारे खेतों को बंजर बना रही है l
इसके खतरे को समझने के लिए भारत ने नाइट्रोजन के आकलन के लिए साल 2004 में सोसायटी फॉर कन्जरवेशन ऑफ नेचर (एससीएन) की स्थापना की. इससे जुड़कर करीब सवा सौ वैज्ञानिकों ने इंडियन नाइट्रोजन असेसमेंट नामक एक रिपोर्ट प्रकाशित की. जिसमें इसके दुष्परिणाम बताए गए हैं.
इसलिए अब सरकार किसानों को जैविक खेती की ओर लौटने की अपील कर रही है. ऐसी खेती करने वालों को आर्थिक मदद भी दे रही है. लेकिन किसान इसके लिए फिलहाल तैयार नहीं दिखते. आम किसानों में इस बात की चिंता है कि अगर वो रासायनिक खाद कम कर देंगे तो क्या अनाज और सब्जियां का उत्पादन पहले जैसा रह पाएगा?
गोरखपुर यूनिवर्सिटी में भूगोल विभाग के प्रमुख रहे प्रो. केएन सिंह कहते हैं जैविक खेती करने में चुनौतियां बहुत हैं. लेकिन हमें अंतत: अपनाना इसे ही पड़ेगा, क्योंकि रासायनिक खाद और कीटनाशक न सिर्फ हमारी सेहत को नुकसान पहुंचा रही है बल्कि पर्यावरण के लिए भी खतरा है. हरित क्रांति आधारित खेती में जो गेहूं-चावल की प्रजातियां हैं वो ज्यादा पानी और खाद पर निर्भर हैं. इससे जमीन बंजर होने का खतरा बढ़ रहा है l
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