वेस्ट डीकम्पोजर और पूसा डिकम्पोज़र कैप्सूल | West decomposer and Pusa decomposer capsules - Blog 74

नमस्कार किसान भाइयों, आज हम वेस्ट डीकम्पोजर और पूसा डिकम्पोज़र कैप्सूल के बारे में कुछ जानकारी जानेंगे| इसके उपयोग से फसल अवशेष, भूसा, तने, डण्ठल, गन्ने की पत्तियां, मूंगफली के छिलके पराली आदि सड़-गलकर खाद बन जाएगी|

Hello farmer brothers, today we will know some information about the West decomposer and Pusa decomposer capsules. By its use, crop residues, straw, stems, stalks, sugarcane leaves, peanut peel starch, etc. will become rotting and composting.

West decomposer and Pusa decomposer capsules:

फसल अवशेष:- वे पदार्थ होते हैं जो फसल कटाई एवं गहाई के उपरांत मृदा पर छोड़ दिये जाते हैं। इनमें मुख्यतः भूसा, तने, डण्ठल, गन्ने की पत्तियां, मूंगफली के छिलके आदि हैं। अभी देश में प्रतिवर्ष विभिन्न फसलों से लगभग 500 लाख टन फसल अवशेष पैदा होते है। फसल अवशेष उत्पादन  राजस्थान राज्य में लगभग 30 मिलियन टन होता है। जिसमे से लगभग 2 लाख टन फसल अवशेष प्रति वर्ष जला दिया जाता है।  जिसके मुख्य कारण निम्न है - कम्बाईन द्वारा फसलों की कटाई लगभग एक फिट छोड़कर होना। छोटे व मध्यम किसानों के पास फसल अवशेष प्रबंधन के उपयुक्त कृषि यंत्रो का अभाव होना। फसल अवशेष प्रबंधन यंत्रों का महंगा व उनके उपयोग के प्रति किसान में कम जागरुकता होना। किसानों के पास भूसा भण्डारण क्षमता का कम होना। फसल अवशेषों का व्यवसायीक मूल्य कम तथा संग्रहण व परीवहन का खर्चा अधिक होना।

फसल अवशेषों को जलाने से दुष्प्रभाव होने वाले:-
  • मृदा स्वास्थ्य पर प्रभाव - फसल अवशेष जलाने से मृदा में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में कमी आने लगती है। मृदा के भौतिक गुणों जैसेः मृदा संरचना, जल धारण क्षमता, मृदा भार घनत्व, उर्वरक उपयोग क्षमता, मृदा समुच्चय, मृदा पारगम्यता दर, पोषक तत्व प्रतिधारण (रिटेंशन) को फसल के जड़ीय क्षेत्र (राइजोस्फियर) में बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाते है। फसल अवशेषों को जलाने के कारण उनमें उपस्थित 100 प्रतिशत कार्बन, 80 प्रतिशत नाइट्रोजन, 25 प्रतिशत फॉस्फोरस, 20 प्रतिशत पोटाश एंव 50 प्रतिशत सल्फर का नुकसान होता है। मृदा सतह सख्त हो जाती है लाभदायक कीटों की संख्या में कमी आती है। 
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: - फसल अवशेषों को जलाने से निकले हुए धुएं में हजारां हानिकारक तत्व मिलें हो सकते हैं, जिनसे मानव स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें जैसे - हृदय और फेफडे़ से जुड़ी बीमारियां, बच्चों मे अस्थमा, दमा जैसी श्वांस बीमारीयां, आंख, नाक व गलें में जलन, चर्म रोग आदि होते है। 
  • पशु स्वास्थ्य पर प्रभाव:- पशुओं की आंख में जलन और अस्थायी अंधापन हो सकता है और श्वास की बीमारीयां भी हो सकती है। इस प्रकार पशु के स्वास्थ्य में गिरावट होने से उसकी दूध उत्पादन क्षमता में भी कमी आती है। 
  • वातावरण पर प्रभाव:- फसल अवशेषों को जलानें से ग्रीन हाउस गैसें जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन, सल्फर डाइऑक्साइडए नाइट्रस ऑक्साइड आदि का उत्सर्जन होता है जो पर्यावरण एवं मानव जीवन के लिए बहुत हानिकारक है।

फसल अवशेषों को खेत में मिलाना:- 
  • अवशेषों को जलाने से लाखों टन नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश जैसे जरूरी पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते है। इस प्रकार हमारी मृदा में पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है और उसकी उर्वराशक्ति कम होती जा रही है, जिसके कारण हमारी मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा तो प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही है, साथ ही पर्यावरण प्रदूषण भी लगातार बढ़ता जा रहा है। 
  • यदि हम इन फसल अवशेषों को जलाने की बजाय खेत में ही मिला दें तो उससे मृदा की उर्वराशक्ति बनी रहेगी और पोषक तत्वों के स्तर में भी सुधार होगा। जिससे हमारी रासायनिक खादों पर से निर्भरता में कमी होगी साथ ही फसल उत्पादन में वृद्धि व पर्यावरण प्रदूषण में भी कमीं होगी। 
  • कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फसल अवशेषों कें खेत में मिलाकर 2000 रुपये की प्रति हेक्टेयर उर्वरक लागत में बचत कर सकते है।

खेत में फसल अवशेषों को सड़ाने के लिये किसान भाई निम्न तरीके अपना सकते है :- 
  • वेस्ट डीकम्पोजर का प्रयोग कर सकते है। वेस्ट डीकम्पोजर को राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र गाजियाबाद द्वारा गाय के गोबर से खोजा गया है। इसमें सूक्ष्म जीवाणु हैं, जो फसल अवशेष को खाते हैं और तेजी से बढ़ोतरी करते हैं, जिससे  खेत में जहां ये डाले जाते हैं वहां एक श्रृंखला तैयार हो जाती है, जो कुछ ही दिनों में फसल अवशेषों को सड़ाकर जैविक खाद बना देतें है। इस प्रकार निर्मित खाद से न केवल पोषक तत्वों की पूर्ति होती है ब्लकि मिट्टी में मौजूद हानिकारक, बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं की संख्या भी नियंत्रित होती है। वेस्ट डीकम्पोजर की 30 मिली मात्रा को 200 लीटर पानी में दो किलो गुड़ डालकर मिला कर 5-7 दिन तक ढ़क कर घोल तैयार कर लेते है। इस घोल को खेत में फैले हुए फसल अवशेषों के ऊपर छिड़कनें के साथ रिवर्सिबल मोल्डबोर्ड प्लो हल को चलाकर अवशेषों को मिट्टी के निचे दबा देते है। इस प्रकार 30-40 दिन में खेत में कम्पोस्ट खाद तैयार हो जाती है। 
  • पूसा डिकम्पोज़र कैप्सूल:- भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद द्वारा तैयार किया गया है।  एक कैप्सूल की कीमत सिर्फ 5 रू. है तथा एक एकड़ (2.5 बीघा ) क्षेत्र के 4 कैप्सूल पर्याप्त है। इसका घोल तैयार करने के लिए किसान भाई 150 ग्राम पुराने गुड़ को आधा लीटर पानी में उबाल लें तथा उबलते समय आई हुई  गंदगी की बहार निकाल  कर घोल को 5 लीटर पानी में 50 ग्राम बेसन मिलकर ठंडा कर लें।  अब इस घोल में 4 कैप्सूल मिलकर इसे ढक कर लगभग 5 दिन के लिए छोड़ दें। जब इस घोल पर परत जमे तो इसे हिलाकर मिला दें।  अब इस घोल को खेत में पड़े फसल अवशेषों पर 100 -150 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करके रिवर्सिबल मोल्डबोर्ड प्लो हल को चला दें। इस प्रकार 30-40 दिन में खेत में कम्पोस्ट खाद तैयार हो जाती है। 
  • वेस्ट डीकम्पोजर और पूसा डिकम्पोज़र कैप्सूल उपलब्ध न होने पर खेत में फसल कटाई के 5 से 7 दिन बाद लगभग 20 किलो प्रति एकड़ यूरिया उर्वरक डालकर खेत में रिवर्सिबल मोल्डबोर्ड प्लो हल चलायें।
  • वेस्ट डीकम्पोजर और पूसा डीकम्पोजर कैप्सूल का घोल बनाते समय और खेत में प्रयोग के समय मुहँ पर मास्क का इस्तेमाल जरूर करें।*
फसल अवशेषों को खेत में मिलाने से निम्न लाभ मिलतें है -
  • फसल अवशेष कम्पोस्ट खाद बनाने में सहायक है जो कि मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक क्रियाओं में लाभदायक है। 
  • मृदा के जीवांश में हो रहे लगातार ह्मस को कम करने में योगदान करता है। 
  • मृदा जलधारण क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है। 
  • मृदा वायु संचार में बढ़ोत्तरी होती है।
  • दलहनी फसलों के फसल अवशेष भूमि में नत्रजन एवं अन्य पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाने में सहायक हैं।
  • उर्वरक लागत में कमी ला सकते है।
  • मृदा स्वास्थ्य में सुधार हो कर फसल उत्पादन में वृद्धि होती है।
नोट: किसान भाइयों यह जानकारी सिर्फ ज्ञान में वृध्दि (Only Education Purpose) के लिए है| अधिक जानकारी के लिए अपने निकट कृषि अधिकारी से संपर्क करें|

<a href="ttps://bit.ly/2VRrmwE" target="_blank"> वेस्ट डीकम्पोजर</a>


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