Micro Irrigation | सूक्ष्म सिंचाई | Drip irrigation | टपका सिंचाई | Sprinkler Irrigation | बौछार सिंचाई - Blog 52
- Micro Irrigation (सूक्ष्म सिंचाई)
- 1. Drip irrigation (टपका सिंचाई)
- 2. Sprinkler Irrigation (बौछार सिंचाई)
Facts Irrigation :
- वर्तमान में पृथ्वी पर 140 करोड़ घन मीटर जल है जिसका 97 प्रतिशत भाग खारा जल है जो समुद्रों में स्थित है। मनुष्यों के हिस्से में कुल 136 हजार घन मीटर जल ही बचता है। संपूर्ण विश्व में जल की खपत प्रत्येक 20 वर्ष में दुगुनी हो जाती है जबकि धरती पर उपलब्ध जल की मात्रा सीमित है।
टपक सिंचाई क्या है?
- टपक सिंचाई सिंचाई की वह विधि है जिसमें जल को मंद गति से बूँद-बूँद के रूप में फसलों के जड़ क्षेत्र में एक छोटी व्यास की प्लास्टिक पाइप से प्रदान किया जाता है।
- इस सिंचाई विधि का आविष्कार सर्वप्रथम इसराइल में हुआ था जिसका प्रयोग आज दुनिया के अनेक देशों में हो रहा है।
- इस विधि में जल का उपयोग अल्पव्ययी तरीके से होता है जिससे सतह वाष्पन एवं भूमि रिसाव से जल की हानि कम से कम होती है।
टपक सिंचाई के लाभ :
- 1. टपक सिंचाई में जल उपयोग दक्षता 95% तक होती है जबकि पारम्परिक सिंचाई प्रणाली में जल उपयोग दक्षता लगभग 50 % तक ही होती है।
- 2. टपक सिंचाई में उतने ही जल एवं उर्वरक की आपूर्ति की जाती है जितनी फसल के लिए आवश्यक होती है। अतः इस सिंचाई विधि में जल के साथ-साथ उर्वरकों को अनावश्यक बर्बादी से रोका जा सकता है।
- 3. टपक सिंचाई विधि खर-पतवार नियंत्रण में अत्यन्त ही सहायक होती है क्योंकि सीमित सतह नमी के कारण खर-पतवार कम उगते हैं।
- 4. जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिए यह सिंचाई विधि अत्यन्त ही लाभकर होती है।
- 5. इस सिंचाई विधि में कीटनाशकों (insecticides) एवं कवकनाशकों (fungicides) के धुलने की संभावना कम होती है।
- 6. लवणीय जल (saline water) को इस सिंचाई विधि से सिंचाई हेतु उपयोग में लाया जा सकता है।
- 7. टपक सिंचाई में जल का वितरण समान होता है।
टपक सिंचाई की हानियां :
- 1. टपक सिंचाई प्रणाली का आरंभिक संस्थापन (installation) खर्चीला होता है।
- 2. टपक सिंचाई में उपयोग होने वाली पाइपों को चूहों द्वारा क्षति पहुचाने का खतरा होता है।
- 3. सूर्य की रोशनी पड़ने से पाइपों की उम्र कम हो जाती है।
- 4. इस सिंचाई विधि में पादपों के समीप लवण के संचय का खतरा रहता है।
- 5. अगर पानी को छानने कार अच्छी तरीके से नहीं किया गया तो ड्रॉप्स बंद हो जाते हैं।
टपक सिंचाई के महत्वपूर्ण बिंदु :
- जल उपयोग क्षमता 80 से 90% होती है।
- पानी की बचत 50 से 70 प्रतिशत पैदावार में 40 से 50% बढ़ोतरी होती है।
- 2 से 2.5 लीटर पानी प्रति घंटा dropper से निकलता है ।
- दबाव 2.5 kg /cm2 होता है।
- मुख्य पाइप लाइन का व्यास 2 - 2.5 सेंटीमीटर होता है।
- Sub पाइप का व्यास 0.5 से 0.75 इंच होता है।

Sprinkler Irrigation System
( स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति )
- स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति बरसात की बौछार का अहसास देने वाली सिंचाई पद्धति है। इस पद्धति में पानी को दाब (प्रेशर) के साथ पाईप के जाल (नेटवर्क) द्वारा वितरित कर स्प्रिंकलर के नोजल तक पहुंचाया जाता है। जहां से यह एक समान वर्षा की बौछारो के रुप मे जमीन में फैलता है।
- लगभग सभी प्रकार की फसलों जैसे गेहूं, चना, दालें और सब्जियाँ और कपास, सोयाबीन, चाय, कॉफी के लिये उपयुक्त।
- निवासीय, औद्योगिक, होटल, रिसार्ट, सार्वजनिक और शासकीय संस्थान, गोल्फ लिंक, रेसकोर्स आदि में सिंचाई के लिये उपयुक्त।
स्प्रिंकलर सिंचाई के फायदे :
- पानी की 25 से 50% तक बचत होती है।
- भूमि में पानी सोखने की क्षमता बढ़ती है अर्थात भूमि में पानी का जमाव नहीं होता।
- बलुई मिट्टी और ऊंची नीची भूमि के लिए उपयुक्त विधि है
- इसमें मृदा की नमी अच्छी बनी रहती है जिससे उत्पादन अधिक होता है। सामान्य सिंचाई विधि की तुलना में 2 से 3 गुना अधिक क्षेत्र खींचा जाता है। पाला पड़ने से पहले इस विधि से सिंचाई करने पर तापमान बढ़ जाता है जिससे फसल पाली से बच जाती है।
स्प्रिंकलर सिंचाई की हानियाँ :
- इस विधि का प्रारंभिक खर्च अधिक होता है।
- इस विधि में अधिक प्रेशर की आवश्यकता होती है।
- हवा चलने पर पानी का वितरण समान रूप से नहीं हो पाता है ।
- Nozzle के रुक जाने पर पानी समान रूप से वितरित नहीं होता है इसलिए बार-बार निरीक्षण की आवश्यकता पड़ती है ।
- रखरखाव एवं क्लीनिंग का खर्च बढ़ जाता है।
स्प्रिंकलर सिंचाई के महत्वपूर्ण बिंदु :
- इस विधि में जल की उपयोग क्षमता 25 से 50% होती है ।
- पानी की बचत 25 से 30 प्रतिशत एवं उत्पादन 40% बढ़ता है।
- दबाव 15 pound/इंच या 0.5 - 5 kg प्रति CM2 होता है ।
- मुख्य पाइप लाइन का व्यास 5 - 20 सेंटीमीटर होता है ।
- नोजल से 1 से 10 लीटर पानी प्रति सेकंड बाहर निकलता है ।
- Nozzle 1 से 2 चक्र प्रति मिनट घूमता है ।
- 2 Risers की बीच की दूरी 10 से 12 मीटर होती है।
- 1 - 2 फीट वाले risers आलु, चना, मूंगफली, सब्जी के लिए उपयोगी है।
- 3 फीट वाले risers गेहूं, जौ, सरसों के लिए उपयोगी है।
Youtube link: https://youtu.be/OzFf0pUCpwM
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