गुरु की महिमा | About Ideal Guru - Blog 43

गुरु 2 शब्दो से मिल कर बना है ।
" गु " शब्द का अर्थ अंधकार
" रु " शब्द का अर्थ उसका नाश करने वाला।

अर्थात 
अज्ञानरूपी अन्धकार का नाश करने वाला गुरु कहलाता है। 
गुरु ज्ञानरूपी सूर्य है। गुरु बिन ज्ञान कहां जगमाही ?

● गुरु कौन ?
● वह जिसने बचपन से हंसना,बोलना,चलना,उठना,बैठना,
खाना,पढना सिखया यानी हमारी " मां "
● वह जिसने जीवन का अर्थ समझाया,
आदर्शों व संस्कारों से परिपूर्ण किया, हमारे " पिता ";
● वह जिन्होंने हमें स्कूल में विभिन्न विषयों का ज्ञान करवाया
● वह जिसने हमें किसी विशेष विधा में पारंगत किया
● वह जिसने हमें यह बोध कराया कि हम कौन हैं,
कहां से आए, कैसे कर्म करेंगे तो कहां जाएंगे  
हमारा कल्याण कैसे हो सकता, 
कैसे आत्मा से परमात्मा बन सकते,
इस बार-बार के भ्रमण से छुटकारा पाकर मुक्त हो सकते ?
सभी किसी न किसी रूप में हमारे गुरु हैं;
क्या एक व्यक्ति के इतने गुरु हो सकते ? 

जीवन विशाल और ज्ञान की कोई सीमा नहीं।
आकाश, चांद, सितारे, पर्वत, नदी, पानी, वर्षा, बादल,
पुष्प, वृक्ष, सूर्य, पंछी, जानवर तक मनुष्य के गुरु हैं,
जो व्यक्ति हमें जाने-अनजाने छोटी-सी बात भी सिखाता वह भी गुरु है।
 किसी व्यक्ति के जीवन से भी हम बहुत कुछ सीखते हैं,
 हम स्वयं भी अपनी भूलों से,अनुभवों से कुछ न कुछ सीखते हैं, क्या ये सब भी हमारे गुरु हुए, हम भी अपने गुरु हुए ?

"बिन गुरु ज्ञान कहां से पाऊं
  नित उठ गुरु को शीष नमाऊं"

● गुरु कैसा हो ?
गुरु के संबंध में बहुत कुछ कहा है -
जो गुरु आत्मज्ञान से युक्त हो, समता का आचरण करे,
आत्मस्वभाव में रमण करे, परमात्मा की वाणी सुने-सुनाए
परमआज्ञा के अनुसार अपना जीवन चलाए, वही सद्गरु है।
मन में राग-द्वेष, मोह-माया, छल-कपट, विषय न हो, वह गुरु।

● गुरु के गुण -
जो पांचों इन्द्रियों को वश में करने वाला हो, ब्रह्मचर्य को धारण करने वाला हो, अहिंसा, सत्य ब्रह्मचर्य अपरिग्रह इन व्रतों से युक्त हो;  ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप इन का पालन करने में समर्थ हो, इन गुणों से सम्पन्न साधक ही गुरु है।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः!!

गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर कहा गया है।
ब्रह्मा इसलिए क्योंकि वह सृजनकर्ता होता है। शिष्य को ध्यान-संस्कार व गुणों से सुसज्जित कर उसे मनुष्य बनाता है।

विष्णु जो पालन करता है, प्राचीनकाल में विद्यार्थी गुरु की सेवा करते थे | गुरु उन्हें शिक्षा देने के साथ उनका पालन-पोषण भी करते थे।

महेश्वर; जो सृजन के साथ विलय भी करता है।
गुरु महेश्वर इसलिए क्योंकि शिष्य के दुर्गुणों का संहार करता था, अपनी वाणी, उपदेश द्वारा विद्यार्थी के दुर्गुणों, उसकी कमियों को प्रेम से, कदाचित फटकार से दूर करता था।

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