ट्राइकोडर्मा अब घर पर कैसे बनाइये | tricodarma verdi - Blog 18
ट्राईकोडर्मा बनाने की विधि:
एक बर्तन में १० लीटर ताजा पानी भरना है, इस पानी को गरम करना है, पानी गरम करते समय इसमें ५० ग्राम गुड या १०० मिली दूध मिला दें , जब पानी में उबाल आने लगे इसे बाजू में ठंडा होने के लिए रख दें, पानी ठंडा हो जाने पर इसमें १०० मिली ट्राइकोडर्मा के साथ निमेटोड कंट्रोल करने वाला उत्पादन मिलाकर किसी प्लास्टिक के ड्रम में डालकर ठक्कन को प्लास्टिक लगाकर बंद करें, मतलब उसमें बाहर की हवा ना जा सके !
दूसरे दिन सुबह इस ठक्कन को खोलकर किसी स्वच्छ लकड़ी से इस पानी को हलाएं, फिर ठक्कन बंद करें, ऐसा आप आठ दिन तक करें, ठंडी के दिनों में इस ड्रम को हलकी धुप आती हो ऐसी जगह पर रखें, बाकी महीनों में आप कहीं भी छाव में रख सकते है, ज्यादा ठन्डे मौसम में आपको धुप में रखना पड़ेगा अन्यथा जीवाणुओं की ग्रोथ नहीं होगी |
ऐसा करने से जो उत्पादन आपने १०० मिली डाला था अब आपके पास १० लीटर बन गया है, आप २०० लीटर पानी में १ लीटर डालकर बहते पानी के साथ खेत में दे सकते है, या टपक पद्धत के माध्यम से दे सकते है |
यह उत्पादन बार-बार देने से भी कोई नुकसान नहीं फायदा ही होगा, रासायनिक खादों के कारण हमारी मिटटी कड़क हो गई है, कड़क मिटटी में आक्सीजन कम हो जाने से हानिकारक विषाणुओं की संख्या बढ़ गई है, ये विषाणु फसल का भोजन चुराकर अपनी संख्या बढ़ाते है, परिणाम यह होता है की आपकी फसल को भोजन की कमी होने से फसल का कुपोषण होता है, कुपोषित फसल पर किट तथा रोगों का आगमन होता है |
इसलिए यह उत्पाद सभी प्रकार की फसलों के लिए भी इस्तेमाल करना फायदे का है, सेलिओ-पॉवर मिटटी में जीव-जीवाणुओं की संख्या बढाकर आक्सीजन का प्रमाण बढ़ाएगा तब यह समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी, इसलिए २ या ३ साल अगर आप यह प्रक्रिया अपनाते है तब आपकी फसलों का भोजन हानिकारक विषाणु चुरा नहीं पाएंगे, या जिन फसलों में मर रोग लगता है वो फसलें मर रोग से बच जाएँगी |
आप एक बार एक लीटर उत्पाद खरेदी करके लाते है, और उसे फ्रिज में रखते है तब यह उत्पाद आप कम से कम ३ साल तक इस्तेमाल कर सकते है, बार बार आपको पैसा खर्च करने की आवश्यकता नहीं है |
ट्राइकोडर्मा एक घुलनशील जैविक फफुंदीनाशक है जो ट्राइकोडर्मा विरडी या ट्राइकोडर्मा हरजिएनम पर आधारित है। ट्राइकोडर्मा फसलों में जड़ तथा तना गलन/सडन उकठा(फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोर्म्, स्केल रोसिया डायलेकटेमिया) जो फफूंद जनित है, में फसलों पर लाभप्रद पाया गया है।
धान,गेंहू, दलहनी फसलें, गन्ना, कपास, सब्जियों फलों एवं फल व्रक्षो पर रोगों से यह प्रभावकारी रोकथाम करता है। ट्राइकोडर्मा के कवक तन्तु फसल के नुकसानदायक फफूंदी के कवक तन्तुओं को लपेटकर या सीधे अंदर घुसकर उनका जीवन रस चूस लेते हैं और नुकसानदायक फफूंदों का नाश करते हैं इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के दुवारा तथा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते हैं जो बीजों के चारों ओर सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदों से सुरक्षा देते हैं।
ट्राइकोडर्मा से बीजों में अंकुरण अच्छा होकर फसलें फफूंद जनित रोगों से मुक्त रहती हैं एवं उनकी नर्सरी से ही वृद्धि अच्छी होती है।
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