निरोग स्वास्थ्य चालीसा - Blog 20

निरोग स्वास्थ्य चालीसा  

पानी में गुड डालिए, बीत जाए जब रात!
सुबह छानकर पीजिए, अच्छे हों हालात!!

धनिया की पत्ती मसल, बूंद नैन में डार!
दुखती अँखियां ठीक हों, पल लागे दो-चार!!

ऊर्जा मिलती है बहुत, पिएं गुनगुना नीर!
कब्ज खतम हो पेट की, मिट जाए हर पीर!!

प्रातः काल पानी पिएं, घूंट-घूंट कर आप!
बस दो-तीन गिलास है, हर औषधि का बाप!!

ठंडा पानी पियो मत, करता क्रूर प्रहार!
करे हाजमे का सदा, ये तो बंटाढार!!

भोजन करें धरती पर, अल्थी पल्थी मार!
चबा-चबा कर खाइए, वैद्य न झांकें द्वार!!

प्रातः काल फल रस लो, दुपहर लस्सी-छांस!
सदा रात में दूध पी, सभी रोग का नाश!!

प्रातः- दोपहर लीजिये, जब नियमित आहार! तीस मिनट की नींद लो, रोग न आवें द्वार!!

भोजन करके रात में, घूमें कदम हजार !
डाक्टर, ओझा, वैद्य का , लुट जाए व्यापार !!

घूट-घूट पानी पियो, रह तनाव से दूर!
एसिडिटी, या मोटापा, होवें चकनाचूर!!

अर्थराइज या हार्निया, अपेंडिक्स का त्रास!
पानी पीजै बैठकर, कभी न आवें पास!!

रक्तचाप बढने लगे, तब मत सोचो भाय!
सौगंध राम की खाइ के, तुरत छोड दो चाय!!

सुबह खाइये कुवंर-सा, दुपहर यथा नरेश!
भोजन लीजै रात में, जैसे रंक सुरेश!!

देर रात तक जागना, रोगों का जंजाल!
अपच,आंख के रोग सँग, तन भी रहे निढाल !!

दर्द, घाव, फोडा, चुभन, सूजन, चोट पिराइ!
बीस मिनट चुंबक धरौ, पिरवा जाइ हेराइ!!

सत्तर रोगों को करे, चूना हमसे दूर!
दूर करे ये बाझपन, सुस्ती अपच हुजूर!!

भोजन करके जोहिए, केवल घंटा डेढ!
पानी इसके बाद पी, ये औषधि का पेड!!

अलसी, तिल, नारियल, घी सरसों का तेल!
यही खाइए नहीं तो, हार्ट समझिए फेल!!

पहला स्थान सेंधा नमक, पहाड़ी नमक सु जान!
श्वेत नमक है सागरी, ये है जहर समान!!

अल्यूमिन के पात्र का, करता है जो उपयोग!
आमंत्रित करता सदा, वह अडतालीस रोग!!

फल या मीठा खाइके, तुरत न पीजै नीर!
ये सब छोटी आंत में, बनते विषधर तीर!!

चोकर खाने से सदा, बढती तन की शक्ति!
गेहूँ मोटा पीसिए, दिल में बढे विरक्ति!!

रोज मुलहठी चूसिए, कफ बाहर आ जाय!
बने सुरीला कंठ भी, सबको लगत सुहाय!!

भोजन करके खाइए, सौंफ, गुड, अजवान!
पत्थर भी पच जायगा, जानै सकल जहान!!

लौकी का रस पीजिए, चोकर युक्त पिसान!
तुलसी, गुड, सेंधा नमक, हृदय रोग निदान!!

चैत्र माह में नीम की, पत्ती हर दिन खावे !
ज्वर, डेंगू या मलेरिया, बारह मील भगावे !!

सौ वर्षों तक वह जिए, लेते नाक से सांस!
अल्पकाल जीवें, करें, मुंह से श्वासोच्छ्वास!!

सितम, गर्म जल से कभी, करिये मत स्नान!
घट जाता है आत्मबल, नैनन को नुकसान!!

हृदय रोग से आपको, बचना है श्रीमान!
सुरा, चाय या कोल्ड्रिंक, का मत करिए पान!!

अगर नहावें गरम जल, तन-मन हो कमजोर!
नयन ज्योति कमजोर हो, शक्ति घटे चहुंओर!!

तुलसी का पत्ता करें, यदि हरदम उपयोग!
मिट जाते हर उम्र में,तन में सारे रोग।

कृपया इस जानकारी को जरूर आगे बढ़ाएं


यहाँ एक सुंदर, सरल और प्रभावी रूप में "🌿 निरोग स्वास्थ्य चालीसा - मौसम के अनुसार" प्रस्तुत की गई है। यह चालीसा शरीर, मन और वातावरण के संतुलन को ध्यान में रखते हुए ऋतुओं के अनुसार दिनचर्या, आहार और सतर्कता को दर्शाती है।


🌿 निरोग स्वास्थ्य चालीसा (मौसम के अनुसार)

॥ श्री स्वस्थाय नमः ॥

  1. जो ऋतुओं का ध्यान करे,

  2. रोग उसे न पास फिरे।

  3. ग्रीष्म ऋतु में जल पीवै भारी,

  4. नींबू, सत्तू, आम सुहारी।

  5. ठंडी चीजें न खा अधिक,

  6. लू लग जाए, हालत बिगड़िक।

  7. छाता, टोपी साथ रखे,

  8. दुपट्टा बाँध के धूप सहे।

  9. वर्षा में पिएँ गरम जल,

  10. खिचड़ी, सूप, सादा फल।

  11. नंगे पाँव न चलो कहीं,

  12. फंगल रोग न हो कहीं।

  13. मक्खी-मच्छर से करें बचाव,

  14. उबालें जल, न रखें तनाव।

  15. शरद ऋतु में करे परहेज़,

  16. अधिक मिठाई से बचे विशेष।

  17. तुलसी, गिलोय, शहद लें,

  18. ठंडी चीजें थोड़ा कम लें।

  19. दिन में सोना वर्जित जान,

  20. कब्ज-खांसी न करे स्थान।

  21. हेमंत में घी और लड्डू खा,

  22. गर्म पानी से दिन शुरू भा।

  23. व्यायाम से बढ़े शरीर बल,

  24. रोग भागे, चमके अँगिनत फल।

  25. शिशिर ऋतु में खा गरम भोज,

  26. सूप, साग, दलिया करें शोध।

  27. धूप सेंकना उत्तम उपाय,

  28. बंद खिड़की में न रहो साय।

  29. बसंत ऋतु में ज्वर का डर,

  30. बासी खाने से रोग उभर।

  31. हल्दी, च्यवनप्राश करें सेवन,

  32. रोग प्रतिरोध बने निर्बल से बलवन।

  33. सादा भोजन, समय पर हो,

  34. अधिक तला-भुना दूर ही रो।

  35. रोज़ चलें कुछ कदम जरूर,

  36. व्यायाम करे तन-मन भरपूर।

  37. सात्विक भोजन, नींद पूरी हो,

  38. मोबाइल से दूरी ज़रूरी हो।

  39. चिंता त्यागें, हँसी अपनाएँ,

  40. ध्यान-प्राणायाम से रोग भगाएँ।

  41. मौसम जो कहे, वो मानें,

  42. तभी तो निरोग जीवन जानें।

  43. आयुर्वेद का लें सहारा,

  44. पथ्य और अपथ्य करें विचारा।

  45. रोग न आए, तन-मन रहे हरा,

  46. जीवन बने खुशियों से भरा।

  47. मौसम अनुसार जीवन हो चाल,

  48. तभी तो बने स्वस्थ खुशहाल।

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