वेस्टडीकम्पोजर के उपयोग or use of waste decomposer - Blog 13

वेस्टडीकम्पोजर के उपयोग

1 वेस्टडीकम्पोजर से गोबर खाद को सड़ा गला कर खाद में बदलना
2 भूमि में पूर्व फसलो के अवशेषों को गलाना और खाद में परिवर्तन करना
3 किचन के कचरे से खाद बनाना
4 हानिकारक फंगस से बचाव
5 स्प्रे के रूप में किसी भी फसल की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना
6 फसल को फंगस से सुरक्षा दिलाना
7 फसल के विकास में सहायक परस्थितियों  का निर्माण करना
8 फसल को सुरक्षा प्रदान करना
9 बीजोपचार भी होता है !

"वेस्ट डी-कम्पोजर" (Waste Decomposer) एक जैविक उत्पाद है जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत नेशनल सेंटर फॉर ऑर्गेनिक फार्मिंग (NCOF) द्वारा विकसित किया गया है। इसका मुख्य उपयोग कृषि में जैविक खाद, पौधों की सुरक्षा और मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने के लिए किया जाता है।


📌 वेस्ट डी-कम्पोजर के मुख्य उपयोग:

1. जैविक खाद तैयार करने के लिए (Compost Making):

  • वेस्ट डी-कम्पोजर का घोल खेत के जैविक कचरे (जैसे – पत्तियाँ, डंठल, सब्ज़ियों के अवशेष) पर छिड़का जाता है।

  • इससे कचरे का सड़न तेजी से होता है और यह 30-40 दिनों में उत्तम जैविक खाद में बदल जाता है।

2. मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने के लिए:

  • मिट्टी में मौजूद हानिकारक रसायनों को निष्क्रिय करता है।

  • मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ाकर उसे उपजाऊ बनाता है।

3. फसल अवशेषों के सड़ने में सहायता (Stubble Decomposition):

  • गेहूं, धान या अन्य फसलों के ठूंठों को सड़ाने में मदद करता है।

  • इससे जलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, जिससे प्रदूषण भी नहीं होता।

4. फसलों में रोग नियंत्रण के लिए:

  • वेस्ट डी-कम्पोजर में मौजूद सूक्ष्मजीव कई प्रकार के फफूंद और बैक्टीरिया जनित बीमारियों को नियंत्रित करते हैं।

5. फोलिएर स्प्रे (पत्तों पर छिड़काव):

  • इसका पतला घोल बनाकर पत्तियों पर छिड़काव करने से पौधे स्वस्थ रहते हैं और कीट-रोग नियंत्रण होता है।


✅ उपयोग विधि:

घोल तैयार करने की प्रक्रिया:

  1. एक वेस्ट डी-कम्पोजर की शीशी (30 ग्राम) लें।

  2. इसे 200 लीटर पानी, 2 किलो गुड़ और 2 किलो बेसन में मिलाएं।

  3. इसे किसी प्लास्टिक ड्रम में तैयार करें और 5 दिन तक रोज़ाना हिलाते रहें।

  4. 5 दिन बाद यह घोल खेत में छिड़काव या खाद बनाने में प्रयोग किया जा सकता है।


🧪 लाभ:

  • 100% जैविक और पर्यावरण के अनुकूल।

  • लागत में कमी और मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि।

  • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

  • जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार।



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